#दर्द-ए-दास्ताँ.....
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कुछ बातें सिर्फ पन्नो तक ही सिमित रह जाती है। कहने को तो उन लफ्जों में दर्द बहुत होता है पर उन्हे सुनने के लिए उसे भी किसीका इन्तजार रेह्ता है।
....की मै दर्द हूँ,
चिंखती हूँ , चिल्लाती हूँ।
क्युंकि मेरी पुकार एक पुकार बन गई है,