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sanshul6841
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S ANSHUL'यायावर'

engineer by profession, poet by heart. dreamer,writer . kindly follow on insta account - anshulsao

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S ANSHUL'यायावर'

हर एक को यहां 
किसी की तलाश है।
किसी को दौलत
किसी को शोहरत 
तो किसी को हमसफ़र की,
दरकार है।
हर कोई लिए चल रहा है 
अपनी ही एक दुनिया,
जिस दुनिया का 
वो मालिक बेताज है।
करने को अपना कद ऊंचा,
वो बड़ा बेताब है।
अपनी आम जिंदगी में उसे,
चाहिए कुछ खास है।
इसी सपने को करने पूरा,
वो खो रहा अपना आज है।

©S ANSHUL'यायावर' बेताब

बेताब

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S ANSHUL'यायावर'

मुझे उससे प्यार है,
उसकी यादों से मेरी रातें गुलज़ार है।
हां वो मुझसे दूर है,
इसलिए तो खोया मेरा करार है ।
तीशनगी के अंगार से,
सुलगती रूह यह कई बार है।
उसे पाने का मजा,
उससे बिछड़ने के बाद है।
मैं हूं उसका साया,
और वो मेरी कायनात है।
मै हूं उसका वसंत,
और वो मेरी बरसात है।
हमारा साथ है ऐसा,
जैसे अम्बर - मेहताब है।

©S ANSHUL'यायावर' तीशनगी

तीशनगी

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S ANSHUL'यायावर'

इतने गौर से ना देखिए,
कहीं कोई नुक्स ना निकल आए।
जिसको समझते थे  जूही,
कांटों का गुलाब ना निकल आए।
शरीफों के दामन पर
कहीं कोई दाग ना निकल आए।
शराफत का दुशाला ओढ़,
चलते है जो अकड़ कर,
गौर से देखो,कहीं
भेड़िया ना निकल आए।
सब को है यहां ओ यायावर,
दूसरों से तकलीफ।
जरा झाकिए अपने गिरेबान में,
कोई गुनहगार ना निकल आए।
जो करते है ज़ुल्मो सितम की बाते,
कहीं खुद सितमगर ना निकल आए।
हम तो ठहरे मुसाफिर ओ यारा,
जेब से कहीं 
 टिकट ना निकल आए।

©S ANSHUL'यायावर' #OneSeason
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S ANSHUL'यायावर'

तुम्हारा गम ही काफी है,
मेरे जीने के लिए।
हमे और कुछ ना चाहिए,
संजोने के लिए।
तेरी खुदगर्जिया गवाह है,
हमे डुबोने के लिए।
ओ फरेबी,
क्या कुछ ना किया हमने,
तेरा होने के लिए।
जब कोई ना था तेरे साथ,
तो भी था मैं,
तेरे रोनें के लिए।
अब तो सारी दुनिया है,
तेरा होने के लिए।
फिर भी जब तन्हाईयो में तुम घिरोगी,
बहुत पछताओगी तुम, मुझे खोने के लिए।

©S ANSHUL'यायावर' revenge

revenge

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S ANSHUL'यायावर'

दिल करना चाहता है खुलासा,
तेरी जुल्मी दास्तां का।
वादों का इरादो का,
तेरी सितमगर करामातों का।
खोलने है कई पन्ने,
जो तूने अधूरे लिख छोड़े थे।
कुछ अफसाने ,
जो फिजा में तूने छोड़े थे।
छत की मुंडेर में,
सूरज की मद्धम रौशनी में,
जब तुमने बुलाया था,
इशारे से।
अब सोचा करता हूं,
क्या वो मेरा वहम था।
हा शायद वो मेरा वहम ही था,
तेरे तस्सुवर का।

©S ANSHUL'यायावर' खुलासा

खुलासा

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S ANSHUL'यायावर'

रात दिन बीत रहे ऐसे,
कोई अपना बिछड़ता हो जैसे।
ना तन का पता ,
ना मन का पता।
कोई कर गया हो,
तनहा जैसें।
जीने में ना कशिश है,
ना मरने में दिलचस्पी।
बस कट रही अपनी ,
ये जिंदगानी ऐसे।
कोई मंजिल है ,
ना राह है।
खड़े हो बीच 
समुंदर जैसे।
अब कहा जाएंगे ,
किसको बुलाएंगे ,
यहां हर शक्स  है,
अजनबी जैसे।
मेरे ख्वाब की तस्वीर कुछ ऐसे टूटी,
कोई झकझोर गया हो मुझे,
दफ्फ्तन नींद में जैसे ।

©S ANSHUL'यायावर'

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S ANSHUL'यायावर'

बीती बातों को भूल जाना
आसान नहीं होता।
अपनों का सितम सहना
आसान नहीं होता।
रखते थे जिनसे हम 
उम्मीद - ए - उल्फत,
वहीं जब धोखा दे,
तो संभलना आसान नहीं होता।
मुसालहत के चश्मे में दाल दी
हमने अपनी सब ख्वाहिशें,
यूं बेसबब जीना,
आसान नहीं होता।
यूं तो रहता है आसमान में खुदा,
पर पाना उसे ,आसान नहीं होता।
जब पासबा ही डाल दें,
घर में सेंध,
तो फिर बचना आसान नहीं होता ।

हमने तो करदिए खाक अपने हर अरमान
ओ ' यायावर ' ,
पर फिर भी जीना हमारा आसान नहीं होता।

©S ANSHUL'यायावर' आसान नहीं होता।

आसान नहीं होता।

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S ANSHUL'यायावर'

राजपूताना की शान थे,
मेवाड़ की जान थे।
वीरों में वीर,
वो महाराणा प्रताप थे।
युद्ध में पारंगत,
राज में निपुण,
मातृभूमि के 
योद्धा महान् थे।
वीरों में वीर,
वो महाराणा प्रताप थे।
मुगलों को धूल चटाने वाले,
रणबांकुरे बलवान थे।
मेवाड़ की मिट्टी के,
सपूत वो प्रताप थे।
आखिरी क्षण तक,
जो ना माने हार थे,
ऐसे निर्भीक 
वो  महाराणा प्रताप थे।
पराक्रम में अव्वल,
 शत्रुओं 
के  काल थे।
वो तो हल्दीघाटी वाले,
महाराणा प्रताप थे।

©S ANSHUL'यायावर'
  #MaharanPratapJayanti
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S ANSHUL'यायावर'

राजपूताना की शान थे,
मेवाड़ की जान थे।
वीरों में वीर,
वो महाराणा प्रताप थे।
युद्ध में पारंगत,
राज में निपुण,
मातृभूमि के 
योद्धा महान् थे।
वीरों में वीर,
वो महाराणा प्रताप थे।
मुगलों को धूल चटाने वाले,
रणबांकुरे बलवान थे।
मेवाड़ की मिट्टी के,
सपूत वो प्रताप थे।
आखिरी क्षण तक,
जो ना माने हार थे,
ऐसे निर्भीक 
वो  महाराणा प्रताप थे।
पराक्रम में अव्वल,
 शत्रुओं 
के  काल थे।
वो तो हल्दीघाटी वाले,
महाराणा प्रताप थे।

©S ANSHUL'यायावर' #MaharanPratapJayanti
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S ANSHUL'यायावर'

घात प्रतिघात,
सृजन  नाश।
प्रकृति के है ये
सिद्धांत अविनाश।
काल चक्र,
का फेरा गहरा,
लीलता ये जीवन का पहरा।
मनुष्य बंधा इस दुष्चक्र में,
पिसता जैसे कोल्हू का बैला।
फिर भी नहीं टूट ती उसकी,
सुनहरी स्वप्न बेला।
नाचता हैं वो,
बनके कठपुतला।
जीवन उसका
मिट्टी का ढेला।

©S ANSHUL'यायावर' ढेला

ढेला

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