"मुझे पता था ऐसा होने वाला है। जीवन के अंतिम पड़ाव पे सबकुछ शान्त सा दिख रहा था। अभिनय के अंतिम चरण में समय का चक्र गतिमान लग रहा था, और माया प्रभावी। मैं नहीं चाहता था कि मेरे अकस्मात से कोई प्रभावित हो लेकिन ये हो न सका। सभी माया में संबंध के मायावी प्रलोभन में आसक्त थे।
मुझे भी सब याद आ रहा है, कभी भी मैं कूच कर सकता हूँ, लेकिन ये पलायन नहीं था, ये स्वाभाविक और स्वीकार्य था। जीवन के गंतव्य के प्रभंजन से कौन बच सका था अबतक, स्वयम्भू भी उसके गत्य से खुद को अलग नहीं कर सके जब।"
मैं खो सा गया थ
दीवाली,माँ और मैं
दीवाली हमेशा से ही स्याह और काली रही है, इस बार भी कुछ अलग नहीं है। अमावस्या सैदव की तरह ऊर्जावान है और तटस्थ भी। मगर सदैव प्रकाश और उत्साह उसके स्याह को मलिन किये रहता था।
ये दीवाली हमारे लिए कुछ ज्यादा ही घनघोर और रंगहीन सा लग रहा है। वैसे ही जैसे स्याम रंग का प्रकृति है, सारे रंग को अवशोषित करने या अपने में समाहित करने की। ऐसा प्रतीत हो रहा है की ये वास्तविक में हमारे जिंदगी के सारे रंगो को लील लिया हो जैसे। प्रकृति का ये बदरंग दीवाली का शायद कोई विकल्प नहीं है, इसकी कोई क्
दीवाली,माँ और मैं
दीवाली हमेशा से ही स्याह और काली रही है, इस बार भी कुछ अलग नहीं है। अमावस्या सैदव की तरह ऊर्जावान है और तटस्थ भी। मगर सदैव प्रकाश और उत्साह उसके स्याह को मलिन किये रहता था।
ये दीवाली हमारे लिए कुछ ज्यादा ही घनघोर और रंगहीन सा लग रहा है। वैसे ही जैसे स्याम रंग का प्रकृति है, सारे रंग को अवशोषित करने या अपने में समाहित करने की। ऐसा प्रतीत हो रहा है की ये वास्तविक में हमारे जिंदगी के सारे रंगो को लील लिया हो जैसे। प्रकृति का ये बदरंग दीवाली का शायद कोई विकल्प नहीं है, इसकी कोई क्
लहू का रंग
लहू का रंग मेरा भी लाल था
धमनियों में भी वही रक्त स्त्राव था
हौसलों की उड़ानें मेरी भी मुकम्मल थी
मुझमे भी वही जोश और सम्मान था
हाँ लहू का रंग मेरा भी लाल था
हवा, धरा और गगन मेरे लिए भी समान था
लहू का रंग
लहू का रंग मेरा भी लाल था
धमनियों में भी वही रक्त स्त्राव था
हौसलों की उड़ानें मेरी भी मुकम्मल थी
मुझमे भी वही जोश और सम्मान था
हाँ लहू का रंग मेरा भी लाल था
हवा, धरा और गगन मेरे लिए भी समान था
"वो कान्हा है"
जो ब्रह्म है स्वयम्, ब्रह्माण्ड लिए
जो स्वयम् में ही है सम्पूर्ण सदा
वो मानव है, वो ज्ञानी भी
वो शाम है और सवेरा भी
वो लाल है माँ का प्यारा है
वो तेजस्वी ललाट कान्हा है।
"वो कान्हा है"
जो ब्रह्म है स्वयम्, ब्रह्माण्ड लिए
जो स्वयम् में ही है सम्पूर्ण सदा
वो मानव है, वो ज्ञानी भी
वो शाम है और सवेरा भी
वो लाल है माँ का प्यारा है
वो तेजस्वी ललाट कान्हा है।