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praveensinghsind5333
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Praveen Singh Sindal

न जाने कैसे आग लग गई बहते हुए पानी में, हमने तो बस कुछ खत बहाऐ थे उसके नाम !!

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Praveen Singh Sindal

Shadi  इसलिए ये महीना ही शामिल नही उम्र की जनतरी मे हमारी,
क्योंकि हमने अब कह दिया है की इस फरवरी में शादी है हमारी।

प्रवीण,,

©Praveen Singh Sindal शादी है हमारी,,,,,

#Marriage

शादी है हमारी,,,,, #Marriage #लव

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Praveen Singh Sindal

कही जुमका बिंदी आंखे और उनके काजल का सहारा है
हमे तो उनके मासूम चेहरे पे होठ के नीचे तिल ने ही मारा है

©Praveen Singh Sindal #kajal
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Praveen Singh Sindal

ये शहर तेरे किनारे पर बैठें,
बाहों में शामे गुजारी न होती,
हम जो तुमसे मोहब्बत न करते,
ये आंखों में लाली न होती,

अपने फूलों को उजाडे है तब ही,
उनके घर खुशनुमा हुये है,
गुल ये देख कर हस रहे है,
मैरे पैरो में छाले हुए है,

कर्ज देकर हसाये हुए है,
सुध लेकर रूलाये हुए है,
मस्तियो का किनारा था कुछ ही कदम पर
कश्तियों से उतारे गए है,

जिनको अपना समझा था अपने
वो भी बैगेरत पराये हुए है,
रहनुमा तुम हो रोशनी के,
हम अंधेरों के पाले हुए है,

हम जो देकर निवाले गए है,
उनके चौखट से उछाले गए है,
जो घर मैंने बना कर दिया था,
हम उस घर से निकाले गए है,

आंखे राह तक रही है हमेशा,
दूर हमसे उजाले गए हैं
रहनुमा तुम हो रोशनी के,
हम अंधेरों के पाले हुए है,

अपने फूलों को उजाडे है तब ही,
उनके घर खुशनुमा हुये है,
गुल ये देख कर हस रहे है,
मैरे पैरो में छाले हुए है,
प्रवीण मेरे पैरों के छाले हुए है,,,,,,,,,,,

#प्रवीण

मेरे पैरों के छाले हुए है,,,,,,,,,,, #प्रवीण #poem

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Praveen Singh Sindal

ए जुबाँ बता की कैसे,अपने घर गया कोई,
घर के रास्ते में ही,मर गया कोई,


इस काल का, आइना सामने रख कर,
जरा सी देर लगी,खून से सन् गया कोई,

ये मामला रोटी का था,अपने हाथ में रख कर,
रोटी हाथो में लेकर,अब मर गया कोई,

मै अपने गाँव का हु,गाँव का रहूंगा मै,
हजार बार, ये बात कहकर,शहर से चल दिया कोई,


दुआ को मैंने अकीदत को हाथ उठाये क्या,
मै न जा सका,मेरा खून घर गया कोई,

किसी सेठ की पेढ़ी,पैसो से इश्क था प्रवीण,
इसी फ़िराक से सुनकर,जब शहर गया कोई,

जिगर के टुकड़े को कैसे माँ चुप कराये कोई,
ये निशब्द  लिखकर ही प्रवीण रो गया था कोई,


प्रवीण Covid-19 
#migrations 
#praveen

#बचके_शहर_ने_मेरे_गाँव_तक_चलने_न_दिया, #प्रवीण
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Praveen Singh Sindal

शहर का दिल देखकर,मन मचलने लगा,
खुदा अपनी गर्दिश,बदलने लगा,
एक मासूम के हाथो में रोटियों की सबब,
पटरियों से कतरा कतरा खून टपकने लगा।

-प्रवीण औरंगाबाद covid-19 #प्रवीण

औरंगाबाद covid-19 #प्रवीण

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Praveen Singh Sindal

मां की कमर, पिता के कंधे पर आने वाली नींद अब साईकिलों के डंडे, ट्रॉली बैग पर ट्रांसफर हो गई है. कई दिनों तक चलते रहने की वजह से चेहरे मैले हो गए हैं. पानी से खेलने वाली उमर में पानी मिलना बड़ी बात हो गई है.
रास्ते में कोई पूछेगा कि बड़े होकर क्या बनना है? तुतलाती सी आवाज़ में शायद ये बच्चे जवाब देंगे- अंकलजी, अंकलजी बड़े होकर घर पहुंचना है
सफ़र इतना लंबा है और मुश्किलें इतनी ज़्यादा,
हर चौराहे मिलता है वादे पर एक नया वादा,
*प्रवीण*

कुछ मंजिले इतनी खूबसूरत होती है की,
पैरो की थकान, और पेट की भूख महसूस तक नही होती।. ... अपने घर चलो, #प्रवीण

अपने घर चलो, #प्रवीण

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Praveen Singh Sindal

मै सोया ही था की, चन्द आँसु आ गिरे थे,
वो मेरे नही थे वो कहते जो मेरे थे,

चटक धुप तड़के में, अब सजा दे रहे थे,
खड़ी सामने वो, नेह राह तक रहे थे,

मै  सोया ही था की,चंद आँसु आ गिरे थे,
वो मेरे नही थे वो कहते जो मेरे थे,

उजाले थे आँखों में,आँसु पथरा रहे थे,
वादों की हथेली से, आँसु छुपाये जा रहे थे,

मैें सोया ही था की, चन्द आँसु आ गिरे थे,
वो मेरे नही थे वो कहते जो मेरे थे,

सुन मेरे पतवार मुझको, भँवर में फंसा दे,
सुना था की गोते,अपनों से खा रहे थे,


प्रवीण तेरे गीतों की, सजर साफ़ करदे,
बताया इशारों में,नाम के इशारे आ रहे थे,

बताऊ किस कदर की, वो बेवफ़ा थे,
कहु कैसे खुद से की, हम बा-वफ़ा थे,

जिंदगी थी खाली,हम नये सफर को चले थे,
बंधनो के धागे,अब सड़क पे पड़े थे,

मैें सोया ही था की, चन्द आँसु आ गिरे थे,
वो मेरे नही थे वो कहते जो मेरे थे, #प्रवीण,  आँसु आ गये थे,,,,,,,,,

#प्रवीण, आँसु आ गये थे,,,,,,,,, #कविता

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Praveen Singh Sindal

मोहब्बत के इंतजार में,
मेरी चमकती आँखे,
अब पथरीली हो गयी,
अब तो आजा,,,,,,
मेरी जवानी भी बूढी हो गयी,

--------प्रवीण अब आजा,
#प्रवीण

अब आजा, #प्रवीण

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Praveen Singh Sindal

ये दुनिया का पहला युद्ध है,
जो घर में रहेगा,
वहीँ जीतेगा,,,,,



-प्रवीण #stayhome, #praveensingh
@प्रवीण सिंह

#stayhome, #praveensingh @प्रवीण सिंह

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Praveen Singh Sindal

आप मुझसे न ही तो मेरे नज्मो से मोहब्बत करलें,
फिर तपते हुए मौसम को जन्नत करलें,


हम इसी पुस्तक के दफ़्न,और इसी में होंगे,
अब तो मुमकिन ही नही है,फिर मोहब्बत करलें,


हमने बांधे थे,पीपल, अल्लाह के ताबीज़ वहाँ,
 आप तो अपने ही,ताबीज़ की हिफ़ाजत करलें,


 मुझको मालूम है मोहब्बत की रिवायत ए सनम,
         अब तो कितने ही तस्वो के,तमाशा करलें,


-प्रवीण न फिर मोहब्बत करलें,#प्रवीण

न फिर मोहब्बत करलें,#प्रवीण

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