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karansahar2660
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Karan Sahar

तुम्हारे बाग़ में कितने ग़ुलाब बैठे हैं, बसेक हम ही तो खाना-खराब बैठे हैं

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Karan Sahar

आप ने जिस पाँव में काँटा चुभा रहने दिया,
हमने भी उस पाँव को कुछ दिन खुला रहने दिया

जानता हूँ इश्क में कितना नफ़ा, नुकसान है
इसलिए जो थे ख़फा उनको ख़फा रहने दिया

बंद कमरे में कहाँ तक रोशनी जाए बता
घर वही रोशन हुआ, जो घर खुला रहने दिया

बीज दफना दें अगर तो फल उगल देगी ज़मी
बस यही सब सोच कर ग़म को दबा रहने दिया

साहिलों की बात ही कुछ और है शायद तभी
कश्तियों में डूबने का हौंसला रहने दिया

ज़िंदगी टूटे हुए ख्वाबों का मलबा है 'सहर'
मौत ने सब कुछ चुना, हमको पड़ा रहने दिया

©Karan Sahar My Ghazal for #poetryunplugged 

#steps

My Ghazal for #poetryunplugged #steps

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Karan Sahar

रास्ते कितना घुमाते हैं हमें
पाँव, घर की ओर लाते हैं हमें

दोपहर में भूल जाने के लिए
रात में तारा बनाते हैं हमें

हम बगीचे की महक, मुस्कान हैं
फूल शिद्दत से निभाते हैं हमें

इसलिए भी धूप से बचते रहे
धूप में साये चिढाते हैं हमें

तब ये कपड़े चाव से पहने गए
अब ये कपड़े काट खाते हैं हमें

डूब कर मरने को कहते हैं मगर
तैरना ही क्यों सिखाते हैं हमें

अब ये झगड़ा देख कर जाना 'सहर'
देखना कैसे मनाते हैं हमें

©Karan Sahar My Ghazal for #poetryunplugged 

#CloudyNight
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Karan Sahar

बस  तुझे  सोचता  हूँ  खिड़की से
मैं  कहाँ   घूरता   हूँ   खिड़की  से

मैं  परिंदा  ,  हूँ   कैद   दुनिया   में
उड़ने  की  सोचता  हूँ खिड़की से

बीज  बोता  हूँ  सतह पर दिल की
और फसल काटता हूँ खिड़की से

जब  कि  उस  पार  तू  नहीं होगा
फिर भी मैं झाँकता हूँ खिड़की से

क्योंकि  हर  द्वार  बंद  हैं दिल के
ज़िंदगी  माँगता   हूँ  खिड़की   से

जो  सफर   के  लिए   ज़रूरी  हैं
मैं  वो  सब  बेचता हूँ खिड़की से

कब  वो  दीवार  मान  ले मुझको
बस  यही  सोचता  हूँ खिड़की से

©Karan Sahar My Ghazal for Poetry Unplugged Contest
#poetryunplugged

My Ghazal for Poetry Unplugged Contest #poetryunplugged

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Karan Sahar

कभी  क़ातिल  कभी रहबर बनाते  हो
मुझे   क्यों  डूबता  पत्थर   बनाते   हो

जलाते हो ख़ुद अपने  हाथ से गुलशन
जले फूलों से फिर  लश्कर  बनाते  हो

हुकुम का एक इक्का क्या हुए तुम तो
सभी  पत्तों को अब जोकर  बनाते हो

करिश्मा  ये  कहाँ  से  सीख आए तुम
सुना  है  ख़ाब   से  पैकर   बनाते   हो

यहाँ  कितने सुकूँ  से  हल  चलाते  थे
वहाँ   रोते    हुए   बर्गर    बनाते    हो

___________________करन सहर Shayari Ghazal

Shayari Ghazal

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Karan Sahar

खींचा तानी में जब रिश्ते थोड़े ढीले हो जाते हैं,
आँसू जम जातें है लेकिन पत्थर गीले हो जाते हैं

क़ुदरत हम लोगों पर यूँ भी अपना प्यार जताती है,
ज़्यादा गर्मी पड़ती है तो आम रसीले हो जाते हैं

आप किसी को दिल से चाहो इतनी चाहत काफी होगी,
लेकिन यूँ बेकार दिखावे तो ज़हरीले हो जाते हैं

जिस शजरे ने सब से ज़्यादा दुनियादारी देखी होगी,
उस शजरे के पत्ते उस के हक में पीले हो जाते हैं #Ghazal #Shayari #KaranSahar
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Karan Sahar

तेरे बारे में भी कितनी बातें लिक्खूँ सारा दिन,
जितना लिक्खा है पहले तू उन सब को तो आ कर गिन

सूरज, चँदा, बारिश, बादल, बेशक ये सब ज़िंदा हैं,
लेकिन सब के सब बेचारे मुश्किल में हैं तेरे बिन #nojoto #shayari #poetry
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Karan Sahar

आप ने जिस पाँव में काँटा गड़ा रहने दिया,
हमने भी उस पाँव को कुछ दिन खुला रहने दिया ।

जानता हूँ इश्क में कितना नफ़ा, नुकसान है,
इसलिए जो थे ख़फा उनको ख़फा रहने दिया

बीज दफना दें अगर तो फल उगल देगी ज़मी,
बस यही सब सोच कर ग़म को दबा रहने दिया

ज़िंदगी टूटे हुए ख्वाबों का मलबा है सहर,
मौत ने सब कुछ चुना, हमको पड़ा रहने दिया #shayari #ghazal #hindipoetry #poetrt #urdu #inspirational
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Karan Sahar

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Karan Sahar

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Karan Sahar

घर की इन दीवारों ने ये कैसा जामा पहना है,
किसके कत्ले आम में ऐसा मंज़रनामा पहना है

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