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अनुराग चन्द्र मिश्रा

Born in 1984 so नऐ invention को create होते हुए देखा है इक वक़्त वो भी था जब Digital things life में कहां हुआ करती थी वक़्त बितानें के लिए वक़्त को बीतते हुए देखनां पड़ता था, आजकल तो बस....😎😎 ये यूं हीं गुम हो जाता है| येअमिनुल बहुत घनां है इंसान इस अमिनुल का 'Alien' हैं ओर ये 'Alien' बहुत mean mammal हैं| हम ज्यादा किसी से बोलतें नहीं तो इसलिए लिख दिया करते हैं अल्फ़ाज़ों को पिरोनां लहू में हैं शायद, तो ज़ज़्बात वाक्यांश जब परेशां करतें हैं तो अल्फ़ाज़ थोड़े करीनें से उतर जायां करतें हैं https://nojoto-com.cdn.ampproject.org/v/s/nojoto.com/amp/profile/a59fde1bdcced696b7eaa006ecb35611/ana-ra-ga-cana-tha-ra-ma-sha-ra/following?amp_js_v=a2&amp_gsa=1&usqp=mq331AQCKAE%3D#aoh=15728373240361&referrer=https%3A%2F%2Fwww.google.com&amp_tf=From%20%251%24s&ampshare=https%3A%2F%2Fnojoto.com%2Fprofile%2Fa59fde1bdcced696b7eaa006ecb35611%2Fana-ra-ga-cana-tha-ra-ma-sha-ra%2Ffollowing

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अनुराग चन्द्र मिश्रा

सुनसान सी ये राहें शब भर, दिनभर कितनी व्यस्त रहती हैं,
सच बता ए ज़िंदगी तू भी रहती है व्यस्त हर वक़्त, 
या वक़्त के किसी पहर में तू भी पल भर ज़रा सुकून लेती है?

©अनुराग चन्द्र मिश्रा
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अनुराग चन्द्र मिश्रा

"बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो
तो आधी इज्जत बच जाती है।"
-हरिशंकर परसाई ।
"कमबख़्त बड़े ही नादां होते हैं वो लोग,
'बेइज्जती करें दूसरों की' जिन्हें ये कला आती नहीं हैं|"

©अनुराग चन्द्र मिश्रा #Walk
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अनुराग चन्द्र मिश्रा

जब भी बादल महरबां हैं जमीं पर यूँ बरसता है,
ज़ज़्बातों को भावनाओं को कुछ यूँ भिगोता है,
कुछ ठहरे से सवालों को यूँ ही हल कर जाता है,
कुछ ठहरे से जवाब, परेशां हैं मन, बहा ले जाता है,
कुछ अनमने रिश्तों के गीले से निशां तक मिटाता है,
कुछ अनजानें रिश्तों को मजबूती से हाथों में थमा जाता है|

©अनुराग चन्द्र मिश्रा #बादल #बरसात #मौसम #ज़ज्बात #ज़िन्दगी #ए_ज़िंदगी
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अनुराग चन्द्र मिश्रा

यहाँ विचारों को खुले में रखना भी गुनाह है,
यहाँ विचारों को बंद करके रखना भी गुनाह है,
कभी कभी अंतरंगी अजनबी सी फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी,
ऐ ज़िन्दगी तेरे सफ़र में बिना विचारे विचरना भी गुनाह है|

©अनुराग चन्द्र मिश्रा
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अनुराग चन्द्र मिश्रा

हिन्दी है हम, वतन है हिन्दोस्ता हमारा,
काश्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दुस्तान को,
हमेशा हिन्दुस्तानियों ने ही तो है संभाला,
जो रौंदते हैं करते हैं नफ़रत हमसे,
हमनें तो उनको भी है गले से लगाया,
फ़लसफ़ा तो देखो वक़्त का, हमारे घरो से,
हमें बेघर करके हमारे ही ख़ून से होली खेलते पाया,
चुपचाप सहेतें रहें हैं हम, सबकुछ टूटा बिखरा पड़ा रहा,
हर तरफ से सामान, रिश्तें नातें, यादें और हर नासूर सहेज कर,
ख़ुद को विस्थापित करनें में हमनें कितना वक़्त लगाया,
किस किस को बताएंगे कहा कैसे सुनाएंगे ये दास्तां,
कैसा ये सम्प्रदाय है, कब अपना कब पराया,
लुटा तो इन्होंने ख़ुद को भी इस राजनीति में कौन पनप पाया,
हद है अब तो हर सितम की भी, पीड़ित हैं हम,
हम हीं कुसूरवार, हम ही मुजरिम, कटघरे में भी हम,
फ़िर भी हर रसूखदार नज़र में हमनें हमको ही भगौड़ा पाया|

©अनुराग चन्द्र मिश्रा #KashmiriFiles  #ए_जिंदगी  #nojoto #nojotohindi
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अनुराग चन्द्र मिश्रा

Alone  'वक़्त के हाशिए'
वक़्त की अजीब फितरत है,
पल पल की ख़बर पलभर में बदल जाते हैं
किसी मोड़ ये राहें किस ओर मुड़ जाती हैं
कभी-कभी राहें कब समझ आती हैं,
इंसान भटकता है क़दम भी बहक जाते हैं,
बहके बहके क़दम कभी कभी कहाँ सम्भल पाते हैं,
गुनाह भी करते हैं प्रायश्चित भी करते हैं,
सब समझते हैं सब नजरअंदाज कर जाते हैं,
ए ज़िंदगी कभी कर बयां, वक़्त के हाशिए क्या चाहते हैं|

©अनुराग चन्द्र मिश्रा 'वक़्त के हाशिए'
वक़्त की अजीब फितरत है,
पल पल की ख़बर पलभर में बदल जाते हैं
किसी मोड़ ये राहें किस ओर मुड़ जाती हैं
कभी-कभी राहें कब समझ आती हैं,
इंसान भटकता है क़दम भी बहक जाते हैं,
बहके बहके क़दम कभी कभी कहाँ सम्भल पाते हैं,
गुनाह भी करते हैं प्रायश्चित भी करते हैं,

'वक़्त के हाशिए' वक़्त की अजीब फितरत है, पल पल की ख़बर पलभर में बदल जाते हैं किसी मोड़ ये राहें किस ओर मुड़ जाती हैं कभी-कभी राहें कब समझ आती हैं, इंसान भटकता है क़दम भी बहक जाते हैं, बहके बहके क़दम कभी कभी कहाँ सम्भल पाते हैं, गुनाह भी करते हैं प्रायश्चित भी करते हैं, #Life #Hindi #alone #nojothindi #ए_ज़िंदगी

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अनुराग चन्द्र मिश्रा

इश्क़ आजकल

दो इंसान जब इक दुसरे के इश्क़ में होते हैं,
एहसास कैसे इक दुसरे के इक दुसरे तक पहुंचते हैं,
तन्हां शब भर कैसे इक दुसरे को चाँद में तराशते हैं,
बिना बयां किए कैसे इक दुसरे से ख़ुशी और दर्द बाटते हैं,
बिन अल्फ़ाज़ों के कैसे नज़रों से किस ज़ुबां में बतियाते हैं,
ये इश्क़ में डूबे हुऐ को ज़िंदा कौन से जहां में चले जाते हैं,
है इश्क़ ख़ूबसूरत इतना जिसे भी हुआ वो इसी के हो जाते हैं,
लगता है अब ख़्वाब इश्क़, कैसे इश्क़ में इंसान नज़र आते हैं,
आज इससे कल उससे, रोज़ नए इश्क़ में जनाब नज़र आते हैं,
आजकल का इश्क़ भी जानें कैसा इश्क़ है, होते थे आबाद,
जो इंसान इक दुसरे के इश्क़ में,अब ज़्यादातर बर्बाद नज़र आते हैं|

©अनुराग चन्द्र मिश्रा इश्क़ आजकल

दो इंसान जब इक दुसरे के इश्क़ में होते हैं,
एहसास कैसे इक दुसरे के इक दुसरे तक पहुंचते हैं,
तन्हां शब भर कैसे इक दुसरे को चाँद में तराशते हैं,
बिना बयां किए कैसे इक दुसरे से ख़ुशी और दर्द बाटते हैं,
बिन अल्फ़ाज़ों के कैसे नज़रों से किस ज़ुबां में बतियाते हैं,
ये इश्क़ में डूबे हुऐ को ज़िंदा कौन से जहां में चले जाते हैं,

इश्क़ आजकल दो इंसान जब इक दुसरे के इश्क़ में होते हैं, एहसास कैसे इक दुसरे के इक दुसरे तक पहुंचते हैं, तन्हां शब भर कैसे इक दुसरे को चाँद में तराशते हैं, बिना बयां किए कैसे इक दुसरे से ख़ुशी और दर्द बाटते हैं, बिन अल्फ़ाज़ों के कैसे नज़रों से किस ज़ुबां में बतियाते हैं, ये इश्क़ में डूबे हुऐ को ज़िंदा कौन से जहां में चले जाते हैं, #Love #kavishala #nojotohindi #window #hindinama #ए_ज़िंदगी

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अनुराग चन्द्र मिश्रा

किसान & व्यवस्था

ज़िंदगी और ज़िंदगी की राहें भी अजीब हैं,
मौसम और मौसमी हवाएं भी अजीब हैं
समाज की सामाजिकता सामाजिक नहीं हैं,
सरकारी महकमों की व्यवस्था सुचारू नहीं है,
राजनीती राजनीतिक किचड़ में धसी पड़ी है,
राजनेताओं का नीतियों से कोई मेल नहीं है,
देश की जड़ ज़मीन की पैदावार बेमोल पड़ी है,
किसान की आमदनी भी सरकारी लाभ का हिस्सा बनी है,
देशव्यापी व्यवस्था असल में किसानों के ही पीछे खड़ी हैं|

©अनुराग चन्द्र मिश्रा किसान & व्यवस्था

ज़िंदगी और ज़िंदगी की राहें भी अजीब हैं,
मौसम और मौसमी हवाएं भी अजीब हैं
समाज की सामाजिकता सामाजिक नहीं हैं,
सरकारी महकमों की व्यवस्था सुचारू नहीं है,
राजनीती राजनीतिक किचड़ में धसी पड़ी है,
राजनेताओं का नीतियों से कोई मेल नहीं है,

किसान & व्यवस्था ज़िंदगी और ज़िंदगी की राहें भी अजीब हैं, मौसम और मौसमी हवाएं भी अजीब हैं समाज की सामाजिकता सामाजिक नहीं हैं, सरकारी महकमों की व्यवस्था सुचारू नहीं है, राजनीती राजनीतिक किचड़ में धसी पड़ी है, राजनेताओं का नीतियों से कोई मेल नहीं है, #Life #farmer #goverment #farmersprotest

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अनुराग चन्द्र मिश्रा

"अल्फ़ाज़"
वक़्त के पल पल को अल्फ़ाज़ बयां करते हैं,
कभी संगीत में कभी शायरी में पिरोए हुए होते हैं,
ज़िंदगी कितनी गुज़री है कितनी गुज़रनी बाकी हैं,
ज़िंदगी की किताब में अल्फ़ाज़ हर्फ दर हर्फ बयां होते हैं|

©अनुराग चन्द्र मिश्रा "अल्फ़ाज़"
वक़्त के पल पल को अल्फ़ाज़ बयां करते हैं,
कभी संगीत में कभी शायरी में पिरोए हुए होते हैं,
ज़िंदगी कितनी गुज़री है कितनी गुज़रनी बाकी हैं,
ज़िंदगी की किताब में अल्फ़ाज़ हर्फ दर हर्फ बयां होते हैं|

#Light  #अल्फ़ाज़  #ए_ज़िंदगी  #ज़िन्दगी  #Life  #nojato  #nojohindi  #kavishala #hindinama

"अल्फ़ाज़" वक़्त के पल पल को अल्फ़ाज़ बयां करते हैं, कभी संगीत में कभी शायरी में पिरोए हुए होते हैं, ज़िंदगी कितनी गुज़री है कितनी गुज़रनी बाकी हैं, ज़िंदगी की किताब में अल्फ़ाज़ हर्फ दर हर्फ बयां होते हैं| #Light #अल्फ़ाज़ #ए_ज़िंदगी #ज़िन्दगी #Life #nojato #nojohindi #kavishala #hindinama

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अनुराग चन्द्र मिश्रा

पन्नें

कभी-कभी कहानी पन्नों में सिमट जाती है,
और कभी यही कहानी उपन्यास पर जाती है,
हैं कुछ जज़्बात बहे हुए, कुछ ज़िंदगी गढ़ी गई,
बयां नहीं जो लबों से, पिरोया होता है अल्फ़ाज़ों में,
भीगे हैं दास्तां ए अश्क़ थोड़े दुःख थोड़े ख़ुशी में,
सिमटे हैं जो कहानी और उपन्यास इन पन्नों, जुड़ती हैं,
किसी की ज़िंदगी से तो क़िताबें नहीं तो रद्दी हो जाती हैं|

©अनुराग चन्द्र मिश्रा पन्नें

कभी-कभी कहानी पन्नों में सिमट जाती है,
और कभी यही कहानी उपन्यास पर जाती है,
हैं कुछ जज़्बात बहे हुए, कुछ ज़िंदगी गढ़ी गई,
बयां नहीं जो लबों से, पिरोया होता है अल्फ़ाज़ों में,
भीगे हैं दास्तां ए अश्क़ थोड़े दुःख थोड़े ख़ुशी में,
सिमटे हैं जो कहानी और उपन्यास इन पन्नों, जुड़ती हैं,

पन्नें कभी-कभी कहानी पन्नों में सिमट जाती है, और कभी यही कहानी उपन्यास पर जाती है, हैं कुछ जज़्बात बहे हुए, कुछ ज़िंदगी गढ़ी गई, बयां नहीं जो लबों से, पिरोया होता है अल्फ़ाज़ों में, भीगे हैं दास्तां ए अश्क़ थोड़े दुःख थोड़े ख़ुशी में, सिमटे हैं जो कहानी और उपन्यास इन पन्नों, जुड़ती हैं, #Books #kavishala #nojotohindi #ए_ज़िंदगी

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