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dikshitasarmah7330
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Dikshita Sharma

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Dikshita Sharma

तुम आना ज़रूर :

अभी ना सही पर कभी तो तुम हमसे मिलना जरूर 
किसी प्रातः समुद्र के उस किनारे जहा
सूरज की किरणों के अलावा कोई ओर न पहुंच पाय,
या फिर किसी चांदनी रात में जीवन की उस पड़ाव में जहा 
तुम्हारे मुख भी हमारे आखों को दूर से कुछ चांद सा ही नजर आय ।

अभी ना सही पर कभी तो तुम हमारे करीब आना ज़रूर,
ढलती किसी शाम में पक्षियों की कलरव के बीच
हम तुम्हारे आंखो में लिखे हुए उन गजलों को 
पढ़ेंगे।
तुम्हारे घायल हृद में लगे कच्चे घावो को धीरे से 
बस  एक अन्तिमबार अपनी उंगलियों से सहला देंगे ।

अभी ना सही पर कभी तो तुम सुनना ज़रूर
वो सारी नज़्मे जो मैंने आज तक कभी किसी 
लफ्ज़ो में उतारी नहीं है,
या फिर वो सारी शिकायतें जो हक़ की पहाड़ों से 
टकराकर हमारी ही हृदय में गूंजती रहती हैं ।

अभी ना सही पर कभी तो तुम आकर कहना ज़रूर
सावन की किसी बरसात में वो सारी बाते जो तुम 
कहते रहते हो हमारी कल्पनाओ में,
और हो सके तो कभी तो तुम आजाद कर देना,
नीले गगन की तले उन सारी स्मृतियों को
 जो एक बुलबुल सा ही कैद है कब से हमारी अंदर की पिंजरे में।
अभी ना सही पर कभी तो 
तुम आना ज़रूर!!

©Dikshita Sharma #SunSet #सायरी
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Dikshita Sharma

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Dikshita Sharma

#myvoice
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Dikshita Sharma

बाते अब खत्म होने लगी हैं,
और तुमसे मिलने की बहाने भी...
कहानी
तुम्हारी मेरी
छोटी ही थी सायद
पर थी बेहद मजेदार ।

©Dikshita Sharma #शायरी 
#quotation
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Dikshita Sharma

বিশ্ব শিল্পীৰ স্মৃতিত:

তেওঁ আছিল এগৰাকী শিল্পী...
শিল্পী...নিজৰ সাধনাৰ অস্ত্ৰেৰে
সমাজ পৰিৱৰ্তনৰ সপোন দেখা
এন্ধাৰৰ স'তে প্ৰৱল যুঁজ কৰি 
নৱ আালোকৰ স'তে মিতিৰালী পাতা 
      ৰূপান্তৰৰ শিল্পী!!
শিল্পী... জনতাৰ হকে গৰজি
শোষিত শ্ৰেণীক সাৱধান বাণী শুনোৱা
নিজ চিন্তাৰ উত্তৰণ ঘটাই 
নতুনত্বৰ স্বাক্ষৰ বহন কৰি চলা 
   এগৰাকী নতুন যুগৰ শিল্পী!!
অসমীয়া বীৰ বীৰাংগনা 
আৰু তেওঁলোকৰ ভাবনা
অসমীয়া ডেকা আৰু ছোৱালীৰ উক্তিক 
নিজৰ কলমেৰে স্বীকৃতি দিব জনা
জনতাৰ দীনতা হীনতা ভীৰুতা আতৰাই 
অৰুণ পৃথিৱীৰ দিশে আগুৱাই যোৱা
   এগৰাকী আজীৱন শিল্পী!!
সত্যৰ মহাজয়ৰ মহাবিশ্বাস লৈ 
অন্যায়কাৰীৰ সৈতে যুঁজিবলৈ 
সষ্টম
   তেঁও এগৰাকী বিপ্লৱী শিল্পী
মনুষ্য জাতিক ন ৰূপ দিব খোজা
পৃথিৱী খনকো পুনৰ গঢ়িব খোজা
বিশ্ববেশ পৰিহিত 
তেওঁ শিল্পী 
অতীত বৰ্তমান 
আৰু ভৱিষ্যতৰ শিল্পী
   তেওঁ বিশ্বশিল্পী!!

©Dikshita Sharma
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Dikshita Sharma

বিশ্ব শিল্পীৰ স্মৃতিত:

তেওঁ আছিল এগৰাকী শিল্পী...
শিল্পী...নিজৰ সাধনাৰ অস্ত্ৰেৰে
সমাজ পৰিৱৰ্তনৰ সপোন দেখা
এন্ধাৰৰ স'তে প্ৰৱল যুঁজ কৰি 
নৱ আালোকৰ স'তে মিতিৰালী পাতা 
      ৰূপান্তৰৰ শিল্পী!!
শিল্পী... জনতাৰ হকে গৰজি
শোষিত শ্ৰেণীক সাৱধান বাণী শুনোৱা
নিজ চিন্তাৰ উত্তৰণ ঘটাই 
নতুনত্বৰ স্বাক্ষৰ বহন কৰি চলা 
   এগৰাকী নতুন যুগৰ শিল্পী!!
অসমীয়া বীৰ বীৰাংগনা 
আৰু তেওঁলোকৰ ভাবনা
অসমীয়া ডেকা আৰু ছোৱালীৰ উক্তিক 
নিজৰ কলমেৰে স্বীকৃতি দিব জনা
জনতাৰ দীনতা হীনতা ভীৰুতা আতৰাই 
অৰুণ পৃথিৱীৰ দিশে আগুৱাই যোৱা
   এগৰাকী আজীৱন শিল্পী!!
সত্যৰ মহাজয়ৰ মহাবিশ্বাস লৈ 
অন্যায়কাৰীৰ সৈতে যুঁজিবলৈ 
সষ্টম
   তেঁও এগৰাকী বিপ্লৱী শিল্পী
মনুষ্য জাতিক ন ৰূপ দিব খোজা
পৃথিৱী খনকো পুনৰ গঢ়িব খোজা
বিশ্ববেশ পৰিহিত 
তেওঁ শিল্পী 
অতীত বৰ্তমান 
আৰু ভৱিষ্যতৰ শিল্পী
   তেওঁ বিশ্বশিল্পী!!

©Dikshita Sharma
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Dikshita Sharma

: इज़हार-ए-मोहब्बत

की मैं आजकल बिन बात ही कभी मुस्कुराने लगती हूं 
तो कभी मैं अपनी ही बातों में खोई सी रहती हूं,
शायद मैं आज कल हकीकत से ज्यादा ख्वाबो में जीने लगी हूं ।

कभी तुम्हारी छोटी छोटी बातो में ही बिन बताई रूठ जाती हूं,
तो कभी मैं तुम्हे खुश देख ख़ुद-ब-ख़ुद मान भी जाती हूं ।
मै कभी गुमसुम, तो कभी तुम सा बन जाती हूं ।

पता नहीं कैसा रुख है इन हवा का
जो मैं आजकल दुपट्टे से ज्यादा जुल्फें संभालने में लगी हूं ,
पोंछ के आंसू बिते हुए कल का, मैं अपनी आंखो में काजल लगाती फिरती हूं ।
बिखरे हुए जिन्दगी समेट, मैं आज कल कुछ यूं निखरने लगी हूं...

की देख लो तुम मुझे बस एक पल के लिए ही सही मैं कभी इतनी सी तमन्ना करती हूं,
तो कभी तुमसे नज़रें मिलते ही मैं आंखें चुरा लिया करती हूं ।
मैं आजकल खुदा से शिकायतें नहीं तुम्हारे लिए दुआ करती हूं ।

कभी मैं अपने हाल-ए-दिल तुमसे छुपाती रहती हूं ,
तो कभी खुद से जो नहीं कहीं कभी वो सारी बातें तुम्हे बता देती हूं ...
हा, हकीक़त में तो कह नहीं पाती हूं कभी पर ख्यालो में ही मैं तुम से इज़हार-ए-मोहब्बत करती हूं ।।

©Dikshita Sharma #booklover
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Dikshita Sharma

वार्तालाप

अभी ना सही पर कभी तो तुम हमे मिलना जरूर 
किसी प्रातः समुद्र के उस किनारे जहा
सूरज की किरणों के अलावा कोई ओर न पहुंच पाय,
या फिर किसी चांदनी रात में जीवन की उस पड़ाव में जहा 
तुम्हारे मुख भी हमारे आखों को दूर से कुछ चांद सा ही नजर आय ।
अभी ना सही पर कभी तो तुम हमारे करीब आना ज़रूर,
ढलती किसी शाम में पक्षियों की कलरव के बीच
हम तुम्हारे आंखो में लिखे हुए उन गजलों को
 प्रथम बार के लिए पढ़ लेंगे ।
तुम्हारे घायल हृद में लगे कच्चे घावो को धीरे से 
बस  एक अन्तिम बार अपनी उंगलियों से सहला देंगे ।
अभी ना सही पर कभी तो तुम सुनना ज़रूर
वो सारी नज़्मे जो मैंने आज तक कभी किसी 
लफ्ज़ो में उतारी नहीं है,
या फिर वो सारी शिकायतें जो हक़ की पहाड़ों से टकराकर
 हमारी ही हृदय में गूंजती रहती हैं ।
अभी ना सही पर कभी तो तुम आकर कहना ज़रूर
सावन की किसी बरसात में वो सारी बाते जो तुम 
कहते रहते हो हमारी कल्पनाओ में,
और हो सके तो कभी तो तुम आजाद कर देना..
नीले गगन की तले उन सारी स्मृतियों को
 जो कब से एक बुलबुल सा ही कैद है मन की पिंजरे में !!

©Dikshita Sharma #MereKhayaal
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Dikshita Sharma

वार्तालाप

अभी ना सही पर कभी तो तुम हमे मिलना जरूर 
किसी प्रातः समुद्र के उस किनारे जहा
सूरज की किरणों के अलावा कोई ओर न पहुंच पाय,
या फिर किसी चांदनी रात में जीवन की उस पड़ाव में जहा 
तुम्हारे मुख भी हमारे आखों को दूर से कुछ चांद सा ही नजर आय ।
अभी ना सही पर कभी तो तुम हमारे करीब आना ज़रूर,
ढलती किसी शाम में पक्षियों की कलरव के बीच
हम तुम्हारे आंखो में लिखे हुए उन गजलों को
 प्रथम बार के लिए पढ़ लेंगे ।
तुम्हारे घायल हृद में लगे कच्चे घावो को धीरे से 
बस  एक अन्तिम बार अपनी उंगलियों से सहला देंगे ।
अभी ना सही पर कभी तो तुम सुनना ज़रूर
वो सारी नज़्मे जो मैंने आज तक कभी किसी 
लफ्ज़ो में उतारी नहीं है,
या फिर वो सारी शिकायतें जो हक़ की पहाड़ों से टकराकर
 हमारी ही हृदय में गूंजती रहती हैं ।
अभी ना सही पर कभी तो तुम आकर कहना ज़रूर
सावन की किसी बरसात में वो सारी बाते जो तुम 
कहते रहते हो हमारी कल्पनाओ में,
और हो सके तो कभी तो तुम आजाद कर देना..
नीले गगन की तले उन सारी स्मृतियों को
 जो कब से एक बुलबुल सा ही कैद है इमन की पिंजरे में !!

©Dikshita Sharma #nojohindi #nojato #hindi_poetry #midnightthoughts
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Dikshita Sharma

जज़्बात

तन्हा रातो सेे मेरी ये बढ़ती करिबी
मुझे भी इतना पसंद नहीं,
मुझे तो बस भिगी हुई तकियों में छिपी 
कुछ अनकही बातो से मतलब हैं,
हा,शायद मुझे बिते हुए लम्हों की तलब हैं ।
मुझे ख्वाहिशो ने मारा हैं, 
ख्वाहिशों मे ही मैं अब तक जिंदा हूं !
अपनों के उछाले हुए पत्थर से 
गिरने वाले मैं एक घायल सा परिंदा हूं ।
जायज हैं लोगों की मुझसे ये नाराज़गी...
मैं खुद भी तो आजकल खुद से खुश हूं नहीं 
जिस मोड़ पे बिखरी थी मैं,शायद आज भी हूं वहीं ।
खुद से खुद की ये घटती नजदीकी
मुझे अंदर ही अंदर काटती रहती हैं ।
रह गई जो भी कुछ बाते अनकही सी
बन्द खिड़की से ही वो मुझे आज भी ताकती रहती हैं ।
फस गई हूं मैं सही गलत की दीवारों के बीच
पर वो दीवार तोड़ ना पाऊं मैं इतना भी कमजोर नहीं
गिरी हूं ,थकी हूं,हारी हूं , 
पर फिर से उठ,जीतने का जज्बा 
अब भी हैं मुझमें कहीं ना कहीं ।

©Dikshita Sharma #saynotosmoking
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