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seemasharma9540
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Seema Sharma

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Seema Sharma

इलाज शरारती बालक का....
        पुराना किस्सा है। एक बालक बेहद शरारती था। ये समझ लीजिए बदमाश बच्चा था। बदमाश भी इतना कि कितना ही कुछ कह लो, उसने किसीकी भी बात माननी ही नहीं थी, सो नहीं मानता था। उसका रोज का काम था आते-जाते व्यक्ति को पत्थर मारना, पत्थर मारता और फिर जोर से हँसता। कोई पकड़ने का प्रयास करता तो भाग जाता। सब परेशान थे।
     इसी प्रकार एक दिन वह बालक अपने इसी प्रिय खेल में लगा था। एक व्यक्ति को सामने से आते देख, पत्थर फेंका और वह पत्थर उस व्यक्ति को जा लगा। उस व्यक्ति ने उस बालक को जरा भी बुरा-भला नहीं कहा, उल्टा मुस्कुराते हुए अपनी जेब में हाथ डाला और एक चवन्नी बाहर निकाली। फिर प्यार से अपने पास बुलाया। बालक अचंभित भी था और चवन्नी का लालच भी, सो चला गया। उस व्यक्ति ने बालक के हाथ में चवन्नी थमाई। बालक हैरान-परेशान कि सब तो गालियाँ देते हैं और इस व्यक्ति ने मुझे न मारा न पीटा न गाली दी उल्टे चवन्नी और थमा दी।
                अचंभित बालक ने प्रश्नसूचक निगाह से जैसे ही उस व्यक्ति को देखा तो व्यक्ति ने बालक से कहा कि तुमने बहुत अच्छा काम किया है इसलिए यह तुम्हारा ईनाम है। बालक ने कहा अच्छा इसका मतलब ऐसा करने से चवन्नी मिलती है। व्यक्ति ने हामी भरते हुए कहा, 'बिल्कुल' ! एक काम करना,"पीछे एक व्यक्ति आ रहा है, उसे पत्थर अवश्य मारना, वह भी तुम्हें चवन्नी देगै, बच्चे ने कहा,"सच्ची! व्यक्ति ने कहा, "हाँ" , और वहाँ से चला गया। शरारत का मज़ा और चवन्नी की आस में बालक ने जैसे ही पीछे आते व्यक्ति फर पत्थर फेंका, वह पत्थर सीधे उसके माथे पर लगा। पत्थर मारने के बाद बालक उस व्यक्ति के पास पहुंचा और बोला, "मेरी चवन्नी! व्यक्ति ने बालक से पूछा, चवन्नी? बालक ने कहा, हाँ! मैंनें अभी जो आपको पत्थर मारा, उसके बदले चवन्नी दो मेरी"। 
      दरअसल वह व्यक्ति एक पहलवान था। उसने उस बच्चे की तबीयत से कुटाई की और कहा, "एक तो पत्थर मारता है और ऊपर से च चवन्नी माँगता हैं, ले ये ले चवन्नी! उसके बाद से उस बालक ने कान पकड़ लिए कि आगे से कोई बदमाशी नहीं करेगा। आज उसे अच्छा सबक मिल चुका था....
26 जून, 2021            सीमा शर्मा 'प्रहरी'

©Seema Sharma #Mic
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Seema Sharma

तलाश...
  न तो कारवाँ की तलाश है, न तो हमसफ़र की तलाश है,
मेरे शौक ए खाना खराब को तेरी रहगुज़र की तलाश है...
    खूबसूरत कव्वाली की खूबसूरत पंक्तियाँ एक बार ज़ुबान पर चढ़ जाएँ, बस फिर उतरने का नाम कहाँ लेती हैं! एक-एक पंक्ति इतनी अच्छी है, लगता हैं बस सुनते ही रहो। पूरी कव्वाली भले ही इश्क की तलाश है लेकिन इस कव्वाली ने 'तलाश' शब्द की खूबसूरती बढ़ा दी। विशेषकर ये पंक्ति..

'तेरा इश्क है मेरी आबरू, तेरा इश्क हे मेरी आबरू,
तेरा इश्क में कैसे छोड़ दूं, मेरी उम्र भर की तलाश है...'

'उम्र भर की तलाश' ! क्या सचमुच यही उम्र भर की तलाश है? इसके आगे क्या कोई इच्छा नहीं, कोई आवश्यकता नहीं? कोई तलाश नहीं,सब तलाश खत्म? 
   'तलाश' ...  सच तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक जीव सदैव किसी न किसी तलाश में रहता है। ठहरता ही कब है? खैर ठहर जाएगा तो भी खाली बैठकर करेगा भी क्या? कोई रोजी-रोटी की तलाश में तो कोई सुकून की  तलाश में रहता है। किसीको ईश्वर की तलाश है तो कोई सत्य की तलाश में रहता है। 'महात्मा बुद्ध भी सत्य की तलाश में निकल गए थे एक सत्य पीछे छोड़कर, उस सत्य को छोड़कर जिसका तेज़ उनके सत्य से कहीं अधिक तेज़स्वी था। सत्य की तलाश में निकले और सत्य पा भी लिया, लेकिन जिस परिवार को छोड़कर आए थे फिर भी एक दिन वहाँ पहुँच गए। सबकुछ त्यागने वाले महात्मा बुद्ध की आँखे तलाशती रहीं पीछे छोड़ आए उस सत्य के सत्य को जिस सत्य का वो सामना नहीं कर पाए, जिस तेज़ से उनकी आँखे चुधिया गई और सामने उस तेज़ के सत्य का सामना न कर पाऐ जिसे तलाशने वे वापस आए थे, वह था 'यशोधरा का सत्य'...

     शिशु के रूप में सदैव माँ के आँचल को तलाशता है, विद्यालय में जाना आरंभ करता हो तो दरवाज़े और गेट पर टकटकी लगाए माँ-बाप को तलाशता है। बचपन में खिलौने तलाशता है, नए-नए खेल तलाशता है, किशोरावस्था में संगी-साथी तलाशता है तो युवावस्था में जीवनयापन के तरीके तलाशता है, हमसफ़र तलाशता है और ये सब मिलते ही लगता है कि ज़िंदगी भर की तलाश पूरी हो गई लेकिन 'जीवन' और 'तलाश का तो चोली-दामन का साथ है, जब तक जीवन है तब तक "तलाश' जारी रहती है। फिर निकल पड़ता है बच्चों की खुशी तलाशने, उनके लिए अच्छे स्कूल की तलाश में, उनको सुख-सुविधा मुहैया कराने की तलाश में, बच्चों के लिए उनका जीवनसाथी तलाशने में और कभी तलाशता सूकून के पल दो पल और इनकी तलाश में ही दौड़ता रहता है ताउम्र! 
    तलाश' के बीच यह भूल जाता है कि कोई उसे भी तलाश रहा है, आरंभ से ही, जब से वह पैदा हुआ तभी से उसकी मौत साए की तरह उसके साथ है और वक्त आने पर उसे तलाश ही लेती है। लेकिन अंत समय जब आता है  तो भी आँखे तलाशती ही रहती, एक बार सभी अपनों को अपने पास देखने की चाह में। और किसीके चले जाने के बाद हमारी आँखे ज़िंदगी भर उसे तलाशती रहती हैं, ये पता होने के बाद भी कि वह कभी लौट कर नहीं आएगा...
25 जून, 2021                         सीमा शर्मा

©Seema Sharma #Mic
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Seema Sharma

मुस्कुराते रहना

©Seema Sharma

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Seema Sharma

यूं तो चलते हैं बहुत, साथ डगर में,
लेकिन साथ देने वाला 
तो कोई विरला ही होता है...

        सीमा शर्मा, 'प्रहरी'

©Seema Sharma #Mic
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Seema Sharma

योग का महत्व
 आज सातवाँ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। 'योग' शब्द संस्कृत के शब्द योग: से बना है। यूं तो योगसके कई अर्थ हैं लेकिन हम यहाँ जिस योग की बात कर रहे हैं उसका अर्थ व्यायाम से है। साधारण शब्दों में, योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम है। योग ही है जो न केवल आपको स्वास्थ्य देता है अपितु सत्य से भी परिचित कराता है। सत्य अर्थात तन, मन, और आध्यात्मिकता की वास्तविकता, सत्य अर्थात् ईश्वर को, इस ब्रह्मांड को समझना। सभी ऋषि-मुनि योग के आधार पर ही सत्य का पता करते थे। स्वस्थ एवं दीर्घायु रहते थे। योग एक विज्ञान है जो न केवल आपको स्वस्थ बनाता है अपितु आपके जीवन को आपकी सोच को संतुलित बनाता है। शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है। अंदरूनी सफाई करती है, न केवल शरीर की बल्कि मन व मस्तिष्क की भी। योग आपके शरीर से सभी दूषित व विषाक्त तत्वों को बाहर कर आपको निर्मलता, सौम्यता, वे तेज़ व ओज़ प्रदान करता है।
               योग के बल पर ही हमारे ऋषि व मुनियों ने इस ब्रह्मांड को समझा उसका विवरण हम तक पहुंचाया। जिस ब्रह्मांड को जानने के लिए नासा समेत सभी वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र बेहिसाब खर्च करके जो खोज करते हैं उनकी गणना योग के बल पर ही बहुत पहले हो चुकी थी। सच तो यही है कि हमारा मस्तिष्क ही ब्रह्मांड का प्रारूप है। कहते हैं योग के बल पर ही आप पूरा ब्रह्मांड घूम सकते हैं। बचपन में जब यह सब सुनती थी तो घोर आश्चर्य होता है कि क्या ऐसा भी होता है? बड़े होने पर सबकुछ धीरे-धीरे समझ आने लगा और विश्वास भी प्रगाढ़ होता गया। योग में बहुत शक्ति है और यह व्यक्ति को शक्ति प्रदान करता है। इसलिए आज से ही योग को अपनाएँ।
21 जून, 2021            सीमा शर्मा 'प्रहरी'

©Seema Sharma #FathersDay
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Seema Sharma

कर्मो पर आधारित

©Seema Sharma

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Seema Sharma

'मेरे पिता' मेरे जीवन का सूर्य...
          तिथि 18 जून, 1945...मेरे जनक के जन्म के साथ ही मेरा जन्म लेना भी विधाता ने तय कर दिया था, उनका और मेरा नाता कहीं न कहीं उसी दिन से उनसे जुड़ गया था। आपको शायद ये पढ़कर कुछ अजीब लग रहा हो, लेकिन मुझे नहीं, क्योंकि जब भी कोई व्यक्ति जन्म लेता है तो विधाता उस व्यक्ति की तकदीर और उससे जुड़ने वाले संबंधों को भी लिख देता है। 
         ज्योतिष के अनुसार पिता आपके जीवन के सूर्य का कारक है, अर्थात आपके जीवन को रोशन करने वाला, आपका जीवनदायक, आपका पालन-पोषण करने वाला। आपका यश व अपयश, आपका ,आपके पिता से कैसा व्यवहार है ये उस पर निर्भर करता है। देखा जाए तो ये वास्तविकता ही तो है, कुछ गलत है भी कहाँ !
        बच्चे और माँ के संबंधों की गाथा तो बहुत मिलती हैं लेकिन पिता की भूमिका का उस नजरिए से कहीं कुछ हद तक कम ही वर्णन मिलता है। माँ और बच्चों की निकटता इतनी अधिक दर्शाई जाती है तो ऐसा लगता है पिता दूर कहीं खड़ा, माँ और बच्चे को बेहद गंभीरता लेकिन हल्की सी मुस्कुराहट होठों पर लिए, निहार रहा है।  शायद बच्चे की खुशी को अनुभव करने का सारा सुख माँ की झोली में डालकर, और इस सोच में डूबा कि किस तरह से बच्चों की खुशी को बनाए रखूं, या पूरा करूं? 
न जाने अपनी कितनी आवश्यकताओं व इच्छाओं को चुपके से कहीं दबाकर छुपा देता है और एक मजबूत आवरण बन हँसते-खिलखिलाते हुए चेहरे के साथ सामने खड़ा हो जाता है, बच्चों के दामन में खुशियाँ भरने के लिए।
         माँ की मार और डाँट से भी पिता ही बचाता है भले ही माँ दिन भर यहो कहती रहे, "आज आने दे तेरे पापा को, फिर वही देखेंगे अच्छी तरह से'...।" लेकिन पापा तो ज्यादातर हँसते हुए बचा ही लेते थे। सच है पिता को बेटियों से अधिक प्यार होता है पल तो बेटे के लिए भी प्रेम,व गर्व मिश्रित भाव होता है दिल में। 
             मैंनें देखा है आधुनिकता के बहाव में बहते लोगों को पितृसत्ता का विरोध करते हुए, नफ़रत करते हुए। हैरान होती हूँ ये सब देख-सुनकर। एक विशाल वृक्ष की छाँव से पिता से कोई नफ़रत भी कर सकता है भला? सुनकर ही अचंभा होता है! उंगली पकड़ कर चलाते, आपके साथ हँसते-खिलखिलाते, कभी गोद में झुलाते, हवा में उछालते, कपड़े इस्त्री कर, पूरा बना-ठनाकर उंगली थामे स्कूल ले जाना व मेरे कक्षा के अंदर तक जाने तक गेट पर खड़े होकर उनका एक प्यारी सी मुस्कुराहट होठों पर लिए, मुझे देखता रहना।।कुछ भी तो नहीं भूला है, सभी कुछ तो कैद है मेरी आँखों में, मेरे दिल में।
         खुली हवा में साँस लेने की आज़ादी दी, आसमान में ऊँची उड़ान भरने के लिए पंख दिए, कभी पाबांदियाँ नहीं लगाईं, हाँ लेकिन अपनी नज़रें हमेशा हमारे पास अवश्य रखीं एक सुरक्षा-कवच के रूप में। मैनें तो पिता का यही रूप पाया है, पिता को सदैव अपने साथ खड़े पाया, हमेअं कहीं कभी लगा ही नहीं कि वो कोई सत्ता का रूप हैं। हमेशा एक मित्र, एक सहयोगी, एक मार्गदर्शक के रूप में फिर कैसे कह दूं हम पितृसत्ता के अधीन हैं! अगर यही पितृसत्ता है तो ये पितृसत्ता मेरे लिए वरदान है, प्रकृति का सबसे अनमोल उपहार है। आज का दिन केवल और केवल मेरे पापा के नाम व उनकी अनेक स्मृतियों के साथ। पापा, आज आप हमारे बीच तो नहीं हैं पर हमारे साथ और हमारे दिल में हैं। आज 
           आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ पापा।🙏
18 जून, 2021                                 सीमा शर्मा

©Seema Sharma #पापा

#Music
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Seema Sharma

मेरी गुड़िया...
            गुड़िया बचपन से ही लड़कियों की साथी होती है, लड़कियाँ ही क्यों लड़कों की भी। गुड़िया सभी के जीवन में अहम् किरदार निभाती है। सभी के लिए हमेशा बाजार से गुड़िया खरीद कर लाना संभव ही नहीं होता थी और अक्सर माएँ या घर में कोई और अपने हाथ से गुड़िया बना कर दे देता था। गुड़िया के साथ-साथ एक गुड्डा भी अवश्य बनाया जाता था। गरमी में जब दो महीने की छुट्टी होती थी तो सभी बुआ अपने बच्चों के साथ आती थी तो समझ लीजिए ये दो महीने घर में जश्न का माहौल रहता था। पूरा दिन उधम मचाना, कभी गुड़िया का जन्मदिन मनाना तो कभी उसकी शादी रचाना। गुड़िया की शादी हो और मिठाई न हो ये भला कैसे हो सकता था! इसके लिए हम सभी बच्चे अपनी जेब-खर्च के पैसे इकट्ठा करते और उनसे मिठाई लाते। सच पूछो तो उस एक मिठाई से ही इतनी खुशी मिलती थी जितनी आज की शादी की बड़ी-बड़ी दावतों से भी वो खुशी शायद नहीं मिल पाती है। संयुक्त परिवार था बड़ा घर, बड़ा आँगन इसलिए कमी तो कोई थी ही नहीं। यहाँ तक की मंगलवार के दिन घर में हनुमानजी का प्रसाद आता था थो हम बच्चे अपने-अपने हिस्से का प्रसाद भी इकट्ठा करते और फिर शुरू हो जाते गुड़िया के नाम का कोई न कोई उत्सव मनाने। 
         गुड़िया केवल एक खिलौना नहीं आत्मा होती है, जीवन होती है। कौन कहता है कि गुड़िया से प्यार केवल लड़कियों की ही होता है, लड़कों को नहीं? भाई के लिए छोटी बहन हमेशा एक छोटी से गुड़िया होती है जिसके साथ वह हँसता है, खेलता है, उसके ईर्द-गिर्द घूमता है, मजाल है कि कोई उसकी उस प्यारी सी गुड़िया को कोई हाथ भी लगा दे!
बड़े होने पर दुल्हन के रूप में भी एक गुड़िया सी लड़की की चाहत रखता है। और पुरुष होने पर बेटे से अधिक अपनी गुड़िया ( बेटी ) को सबसे अधिक प्यार करता है। और जब कोई गुड्डा आकर उसकी ( पिता ) गुड़िया को ब्याह लेकर जाता है तो अपनी गुड़िया को विदा करते समय कितना भारी कलेजा हो जाता है उस पिता का!
जीवन की असली और सबसे कीमती गुड़िया तो बेटियाँ ही होती हैं, जिनसे सारा घर खुशियों से चहकता है, उसकी आवाज़ से गूँजता है। नन्हीं सी गुड़िया की किलकारी झोली में अनंत खुशियाँ बिखेर देती है।
          सच तो यह है कि किसीके जीवन में आरंभ से से लेकर अंत तक गुड़िया साथ रहती हैं, और किसीको जीवन में कभी एक भी गुड़िया नसीब नहीं होती। किसीकी गुड़िया उससा छिन जाती है या तोड़ दी जाती है। गुड़िया छिनने और तोड़े जाना का दर्द सदैव ही असहनीय होता है। जब कोई आपकी जान से प्यारी जीवंत गुड़िया को कोई छिन्न-भिन्न कर देता है उस तोड़ ( मार ) देता है, या ऊपर वाला किसीके हाथों से, उसकी गोद से उसकी गुड़िया छीन लेता है तो उसका दर्द कितना असहनीय होता है इसका वर्णन शब्दों में कर पाना असंभव है, उसकी वेदना को अनुभव कर पाना भी अकल्पनीय है...
        कभी किसीकी गुड़िया को मत तोड़ना, उसे छिन्न-भिन्न मत करना और न ही किसीको ऐसा करने देना...
ये सच है कि ईश्वर जो करता है वह भले के लिए ही करता है पर फिर भी ईश्वर से यही प्रार्थना करूँगी कि है ईश्वर किसी माता-पिता की गोद से उनकी मासूम सी, प्यारी सी गुड़िया को कभी मत छीनना। बरस दर बरस बीतते हैं लेकिन अपनी गुड़िया की छवि, उसकी मासूम बाल-सुलभ मुस्कान कभी दिल से नहीं जाती, बस किसी तरह से उसे एक बार पाने की इच्छा रोज़ दम तोड़ती है...
16 जून, 2021                            सीमा शर्मा।

©Seema Sharma #गुड़िया

#Music  indian hum ANURAG SINGH  S C Tiwari DRDB  Riya Soni

#गुड़िया #Music indian hum ANURAG SINGH S C Tiwari DRDB Riya Soni #ज़िन्दगी

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Seema Sharma

देश का अपमान न ही देश का अपमान करने वालों को,
हम नहीं सहेंगे राम का अपमान करने वालों को,
हम नहीं सहेंगे नारी का अपमान करने वालों और उसकी अस्मिता पर हाथ डालने वालों को,
हम नहीं सहेंगे अपने स्वार्थ के लिए देश से खिलवाड़ करने वालों को,
हम नहीं सहेंगे आपद में कालाबाजारियों को,
हम नहीं सहेंगे लाश का कफ़न बेचने वाले सौदागरों को।
        सीमा शर्मा 'प्रहरी'

©Seema Sharma #CannotTolerate
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Seema Sharma

मन जीता तो जग जीता...
    ये मन भी बहुत अजीब है, बेलगाम अश्व की तरह। कभी इथर भाग जाता है, कभी उधर, पल में न जाने कितने मिलों या यूं कहो कि पूरा जगत घूम आता है। चाँद-तारों की सैर कर आता है। कभी कुछ पाने के लिए मचल जाता है और कभी विरक्ति से भर जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मन का हाल यही है,  ' पल में माशा, पर में तोला'। ये मन ही तो जिस पर अध्यात्म में कितने शोध मिलेंगे, गीतों में, बातों में बस और तो और हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी, 'मन की बात' ही नाम रखा अपने कार्यक्रम का।,
   कहने को तो बहुत छोटा सा शब्द है, 'मन', लेकिन देखो तो कितना विस्तृत और कितनी तेज़ उड़ान भरता है! किसी का मन बहुत कच्चा होता है तो किसीका पक्का।किसीका मन कमज़ोर होता है तो किसीका मजबूत। किसी का मन ज़रा-सी बात पर टूट जाता है तो किसी का मन इतना मजबूत होता है कि पहाड़ को भी संभाल ले।
'तोरा मन दर्पण कहलाए', 'मन रे तू काहे न धीर धरे' जैसे गीत, 'मन के हारे-हार है, मन के जीते जीत', मन जीता तो जग जीता', 'मन पर लगाम कस कर रख', ' मन का क्या है', सुनो औरों की, करो अपने मन की ....आदि न जाने कितने ही वाक्य सुनने के लिए मिल जाते हैं। 
      और तो और बीमारी भी तन से अधिक मन की ही होती है। मन मजबूत हो अर्थात आपकी इच्छाशक्ति मजबूत हो तो आप बड़ी से बड़ी बीमारी, बड़ी से बड़ी मुसीबत और समस्या से पार पा सकते हैं।  किसीको आप शक्ति से नहीं जीत सकते लेकिन हाँ उसका मन जरूर जीत सकते हैं। इस समय मन पर मन भर बोझ है भी आपने सुना होगा, 'मन पर बोझ है', आज मन हल्का लग रहा है आदि-आदि...जैसे अनेक वाक्य सुने ही होंगे। मन का क्या है! मन तो कर रहा है कि 'मन' पर लिखती ही जाऊँ लेकिन डर यही है कि लेख अधिक लंबा हो गया तो आपका मन पढ़ने का ही न हो, या फिर आपका मन कहे कि 'मन तो कर रहा है कि...' मतलब आपका मन फिर कुछ भी कह सकता है! इसलिए मन को थामते हुए, बस इतना ही कहूँगी कि प्रत्येक परिस्थिति में अपने मन को मजबूत बनाए रखना, मन को विचलित मत होने देना, मन रूपी अश्व की लगाम कसकर रखना, कभी मन के हाथों मजबूर होकर कोई गलत काम या गलत कदम मत उठाना वर्ना ज़िंदगी भर आपका मन अपराधबोध के बोझ से दबा रहेगा, फिर आप चाहे कुछ भी कर लेना,आपके मन को शांति नहीं मिलेगी क्योंकि, 'जग से चाहे भाग ले कोई, मन से भाग न पाए'...
 15 जून, 2021                                 सीमा शर्मा

©Seema Sharma #WorldBloodDonorDay
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