मैं इतने बड़े न ख्वाब हैं मेरे। न इतनी बड़ी कोई हस्ती है। शब्द पिरोकर लिख लेता हूं। कलम ही मेरी कस्ती है। इश्क़ मोहब्बत सब लिखता हूं। अंदर जैसा बाहर दिखता हूं। हार कभी न मानी मैंने। बस यही बात है ठानी मैंने। ना मैं कोई क़लमकार हूं। ना सुशोभित अलंकार हूं। शब्द मिलाना सीख रहा हूं। इस राह पर अब मैं सवार हूं। दर्द का जाल मेरे दिल से कभी जुदा नहीं होता। अपनी तबाही का किस्सा मुझसे कहा नहीं होता। अपने ही दर्द को मैं अल्फ़ाज बनाकर लिखता हूँ। फिर भी ये कमबख्त दर्द है कि कभी बयां नहीं होता।
NAVEEN UPRETI
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