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chenaramdepan4776
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ChenaRam Depan

CR DEPAN, MERTA, NAGAUR

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ChenaRam Depan

good morning 🙂

#krishna_flute

good morning 🙂 #krishna_flute

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ChenaRam Depan

तू जिंदा है तो जिन्दगी की जीत में यक़ीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो
उतार ला ज़मीन पर उम्मीद

#solitary

उम्मीद #solitary

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ChenaRam Depan

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गयी
पाँव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गयी
पात-पात झर गए कि शाख-शाख जल गयी
चाह तो सकी निकल न पर उमर निकल गयी

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ChenaRam Depan

It was raining outside अब्र बरसे तो इनायत उसकी......
साख़ तो सिर्फ दुआ करती हैं......! अजनबी....

अजनबी....

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ChenaRam Depan

तुम्हारे लिए जो तत्काल है...
मेरे लिए वह चिरकाल है...।
तुम क्षणों में जीती हो...
मैं युगों में जीता हूँ....।
तुम छोड़ते हो बन्धन हो जाते हो मुक्त
मैं बन्धता हूँ तुमसे,तुममें अनुरक्त
तुम तुमसी हो...मैं मुझसा हूँ
चलो मिलकर साथ चले..
दो कदम सफर के लिए....। CR Depan

CR Depan

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ChenaRam Depan

मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है 
कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है 

मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है 
मेरी फ़ितरत को ख़ूँरेज़ी के अफ़सानों से रग़्बत है 
मेरी दुनिया में कुछ वक्त नहीं है रक़्स-ओ-नग़्में की 
मेरा महबूब नग़्मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है 

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ChenaRam Depan

 संसद 

ज़हरीली शहद की मक्खी की ओर उंगली न करो 

जिसे आप छत्ता समझते है 

वहां जनता के प्रतिनिधि रहते है।

                      
                                   अवतार सिंह "पास"

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ChenaRam Depan

मौसम खुशनुमा हो गया' इसलिए....
सुप्रभात

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ChenaRam Depan

हालांकि वफाओं से मुकरना भी नहीं है...
इस बार मगर प्यार में मरना भी नहीं है...।
बचपन की, मौहब्बत की, तरह लोगों से छुपकर.....।
मिलना है,मगर हद से गुजरना भी नहीं है...!

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ChenaRam Depan

क्या दूं मैं तुम्हें...?
नहीं दे सकता कुछ भी
बस दुआ है मेरे पास
यूं ही रहो सरसराती...
नीलिमा दमकती रहे तुम्हारी
उग उठे तुम्हारी स्थिप्रग्ज्ञा में हरी कोंपले...
खिल उठे तुम्हारे लहू में बर्दाश्त के फुल
झूलते रहे तुम्हारी यादों के चन्द्रमा
मेरी देह और मन की डालिये पर
शब्द तो नहीं दे सकता
दूर हूँ कोसों तुमसे
कैसे आ पाता छाया की तरह पिछे-पिछे?
मिलते रहें तुम्हें तुम्हारे मनचाहे आकार....।
संयम के पेड़ के अधीर पक्षी
चहचहाते रहें आकाश के लगाव में
पुकार ही तो, नहीं पहुंच रही तुम तक
पुकारों का ही बन गया समन्दर
एक-एक लहर पर लौट आई है पुकार
फूट पड़ेगी यहीं से एक जम चुकी नदी अहसासों की...
करती रहे कलकल, पसीज उठे तुम्हारे भीतर
मिल जाएं तुम्हारी अंजुली संगमरमर से
हो मुलाकात तुम्हारी....कविता से, यहीं इसी मोड़ पर....।

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