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जगदीश निराला

मंचीय कवि. अभिनेता.वृक्ष मित्र.समाजसेवी.

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जगदीश निराला

सर्द रातें और चाय  कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक मेला लगता है रामगढ़ में.यही वो ऐतिहासिक 
भन्डदेवरा मंदिर यानी शिल्प कला काअकूत ख़जाना लिए पौराणिक
शिवमंदिर है.जोघने जंगल के मध्य स्थिति है. जिसे देखने काफी संख्या में देशी विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगा ही रहता है।
हम भी रामगढ़ की दृश्यावली को देख अभीभूत  थे.भन्डदेवरा को देख इसीलिए तो महान इतिहासकार ने लिखा कि जैसे विश्व की सारी कलाकृति
यहीं सिमट कर रह गई हो।कई देशी विदेशी जोड़े मंदिर के विभिन्न एगंलो से फोटोशूट कर रहै थे।
 पुरातत्व अवशेष बता रहे थे कि ये नवी शताब्दी का तांत्रिक क्रियाओं का साधना केन्द्र रहा था.जिसे मलयवर्मा नामक राजा ने जिर्णोद्धार करवाया था.
जिसके बाद वर्त्तमान सरकार ने कुछ राशी बिखरी संम्पदा को यथा स्थान स्थापित करने की घौषणा तो की पर कार्य अभीतक भी न हो पाया।
साहित्यकार कवि कलाकार भी एकत्रित थे इस मीटिंग में.
रात घिर सी आई थी. लकडिय़ों इक्कठी कर अलाव जलाया गया था.
भोजनकर सभी केम्पफायर में शामिल थे. कंजर बालाओं का अद्भूत चकरी नृत्य मनलुभावन था.तो विदेशी एक जोड़े ने हार्मोनियम तबले पर हनुमान चालीसा गाकर मंत्रमुंग्ध कर दिया. अब महेन्द्र कौशिक ने भजन मीरा हो गई मगन सुनाया तो विपिन बीच संगीत में खो गए हम.पश्चात मांगीलाल राणावत ने  भी चदरिया झीणी रे झीणी के सुरों में पूरर्णिमां की चांदनी मैं चांदी घोल दी वही मांगरोल की मशहूर मांड़ गायिका विमला सारस्वत ने निराला नखराल़ा म्हारा केसरिया भरतार .छेड़ा .गीतकार निराला ने जवाब में सुर छैड़े .रुप की रूपाल़ी म्हारी केसर की कल़ी .सासरिये ले चाला आओ चालो तो सणीं ।संगीत सातवें आसमान पर जादू बिखेर रहा था.सभी को चाय की तलब लगी थी।
गौशाला में चाय बनाई जा रही थी।एकाएक हल्ला मचा शेर आ गया शेर सभी सहम से गये.हडबडाहट में चाय का भगौना औंधा हो किसी दिवाली की बची आतिशबाजी चला दी.शेर दहाड़ा दौड़ता केम्पफायर की और लपका सभी लोगों कलाकारों ने जलती लकडिया उठा ली थी.तरक़ीब कामयाब रही शेर दहाड़ते हुए जंगल में दाखिल हो गया कार्यक्रम समापन की घौषणा की गई. हम सभी चाय की तलब लिए गाडियों मेंं बैठ वापस मांगरोल आ गए।घटना जब भी याद आती कलेजा मुंह को आ जाता है।

जगदीश निराला मांगरोल रंग में भंग

रंग में भंग

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जगदीश निराला

कलम और कागज़ ना कलम रही ना कागज़.
सब स्क्रीन हो गया है.
अंगुलिया ही कलम हुई. 
कागज़ मोबाइल की स्क्रीन हो गया।
है ना फंड़ा एकदम नया।
आंखें ही कान बन गई.शौक बन गया ये नशा.
जो शायद उतरेगा नही.वर्तमान पीढ़ी के दिमाग से।
सब जानते है घातक हे ये रेडिएशन किरणें
मनचाहे ऐपिसोड. ओर बहुत कुछ जो
परोसा जा रहा है.
इस सलेट पर.लिखते ही ख़ाना हाजिर हे।
पचा रही है भावी पीढ़ी इस घातक खुराक कोः
नये कागज़ ओर नयी कलम के कमाल को।
हम जो ना संभले तो ना जाने क्या होगा 
अंजाम ख़ुदा जाने।

जगदीश निराला मांगरोल ख़ुदा जाने

ख़ुदा जाने

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जगदीश निराला

चलना ही जिन्दगी हे.
रुकना नही हे तुझको.
अचल तो मरने का नाम है.
दुनिया देखती है तो चलना
मचलना ठहरना फुदकना
गुनगुनाना ही जिन्दगी हे
चल चला चल
चंचल ही नटखट. नटखट ही
चैतन्य
जो चला सकता है इस जहान को
नचा सकता हैअपने इशारे पर।
थकना नही जानता समय.
हमेशा चलते हुए बीते करोडों साल
 जिनको गिनना हे मुश्किल काम
जो चलता हे.वो बनाता है
इतिहास।
जगदीश निरालाःमांगरोल चल चला चल

चल चला चल

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जगदीश निराला

इस गुलाबी ठंड में, बड़ा मजा आता है.
जब गुनगुने पानी से नहाते है.
धूप का रूप चुराने की करते हें कोशीश।
बड़ा मजा आता है.
बदन को ऊनी कपड़ों से ढ़ककर निकलने में.
ट्रिपल सूट पहन टाई बांध कर
घूमने जाने में।
बड़ा मजा आता है.
गर्मागर्म पकोड़े गर्म चाय के साथ
 खाते खाते गपशप लड़ाने में.
बड़ा मजा आता है।

जगदीश निरालाःमांगरोल गुलाबी ठंड में

गुलाबी ठंड में

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जगदीश निराला

झील हो तुम जमीं हुई. मेरी क़श्ती उलझी गई
साहिल भी उलझ गया.पतवार भी ख़सक गई।

ख़ुशबू को तलाशा था.नफ़रत फैली तो कैसै.
आह सुनी आया ही नही.मेहबूबे ख़ुदा ऐसा कैसे।
।
जगदीश निराला मांगरोल ऐसा कैसे

ऐसा कैसे

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जगदीश निराला

किस्मत वाले किस्मत वाले है हम.हिन्दुस्तान में जनम लिया है.
यहां का वैभव स्वर्ग धरा सा.पाकर गर्व किया है।

हमने वो सब भोगा .जिसको दुनियां तरस रही है.
हर इंसा के ऊपर उसकी .यहां रहमत बरस रही है।

जगदीश निराला
मांगरोल किस्मत वाले

किस्मत वाले #कविता

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जगदीश निराला

My feelings दुनियां का स्वर्ग

इन हाथों से मैने अपनी.सोई तक़दीर जगाई है.
कई हाथ ऐसे भी.जिनने. बस्ती मेरी जलाई है।
इन्हीं हाथों से मैने ग़र्दिश.को उल्टा लौटाया है.
यहीं हाथ जिनने दुश्मन को.मिट्टी में मिलाया है।
हाथों की ताक़त से हमने.हिन्दुस्तान बनाया है. 
हाथो ने ही दुनियां का.भारत को स्वर्ग बनाया है।
।
जगदीश निरालाःमांगरोल #feelings स्वर्ग बनाया है

#feelings स्वर्ग बनाया है #कविता

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जगदीश निराला

रूठना-मनाना रुठे को मनाया जाता है. जब दिल टूटे तो क्या कहिए.

वो ये समझै आदत अपनी.टूटी तस्वीरें जोड़ने की है।

किरचें कांचों की चुभती रही.देख लहूं वो हंसते रहे.
 
इश्क़ में जब हम पगलाए.वो नागिन बनके ढ़सते रहे।
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जगदीश निराला मांगरोल रुठना मनाना

रुठना मनाना #शायरी

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जगदीश निराला

तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी. डरावनी होती है
    
हंसी ठिठोली करती सूरतें.जब जोर से रोती है।

समझ आ जायेगा मंज़र.शातिर लोग कितने है.

सागर है गहरा नामालूम.इसमें कितने मोती हैं

जगदीश निराला मांगरोल कविता

कविता #शायरी

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जगदीश निराला

चेहरा है या चाँद खिला है, रुप चौवदस
कीच के बीच जब कंज खिले.
दौड़ै भ्रमर गुंजार करे।
जब रुप मिले भले नीचन मेंं भी.
 सुर जायके वांको वरण करे।
पुराणों के अनुसार असुर जाती की कन्या लक्ष्मी को.
देवाधिदेव श्री विष्णु ने
इसीलिए वरण कर उदाहरण प्रस्तुत किया कि
सौन्दर्य कहीं भी मिल सकता है
वो अपनाने योग्य है।
।
जगदीश निराला मांगरोल रुप चौवदस

रुप चौवदस #कविता

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