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satyamdevu3615
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Satyam Devu (मृदुल)

मेरी कलम मेरी लिखावट, मेरे अहसासों की झलक है... पसंद नहीं मुझे सुर्खियों में आना, मेरी दुनिया अलग है... 😘😊

https://satyamdevu.blogspot.com/

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Satyam Devu (मृदुल)

बितेगा ये दौर भी
बितेगा वो दौर भी
आगे बढ़े चलो
आगे बढ़े चलो.
संघर्ष के इस आँधी मे
एक नया दौर भी आयेगा
डटे रहना मैदान मे
चाहे कोई कितना शोर मचायेगा
शुतुरमुर्ग की भाँति रहना मैदान मे
तुम्हें देख तूफ़ान भी शर्माएगा 
फिर कल एक नया सबेरा आएगा

-सत्यम् कुमार सिंह #E_Gram_Swaraj #poetry #motivation
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Satyam Devu (मृदुल)

"अब तुम खुश हो ना!!"
 ________________ "अब तुम खुश हो ना!!"
 ________________



छिप - छिप कर स्टेटस देखते हो, 
खुदको तस्वीरों मे निहारते हो, 
मंद-मंद मुस्काते हो,

"अब तुम खुश हो ना!!" ________________ छिप - छिप कर स्टेटस देखते हो, खुदको तस्वीरों मे निहारते हो, मंद-मंद मुस्काते हो, #कविता

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Satyam Devu (मृदुल)

प्यार क्या है  Internal feelings and attachment
with someone
Without any expectations #Love
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Satyam Devu (मृदुल)

शब्द???


सुबह होता है, शाम होता है, रात होता है,
एक ही शब्द पर मेरा ध्यान टिका होता है।।
इन्ही शब्द को लिए कभी हँसना और मुस्कराना है,
इन्ही शब्द को लिए कभी हँसना और मुस्कराना है,
और होना कभी उदास है।।
ये मौसम भी क्या छाया है? 
अनगिनत नमकीन बुन्दें भी साथ लाया है।
रह जाना इससे प्यास अधूरा है,
सूखे कंठ भी ना भिगो पाना है,
फिर भी दिलो में आस सज़ाना है!!
करता हूं मैं चर्चा हर लफ्ज़ में,
फिर भी डरता हूँ कहना शब्द में,
रहो बेफिक्र इन्ही लफ्ज़ में,
बदनामी का चिंता मुझे भी है,
कहना थोड़ा मुझे भी है।।

सुबह होता है, शाम होता है, रात होता है,
एक ही शब्द पर मेरा ध्यान टिका होता है।।
मैं दे रहा हूँ हर लफ्ज़ में उत्तर,
फिर क्यूं नहीं दे पा रहा शब्द मैं उत्तर,
लगता जैसे शब्द अभी अधूरा है, 
देखा हुआ खूआब अभी अधूरा है, 
हो अगर साथ, 
फिर करदुं इसे पूरा हाथ।। 

सुबह होता है, शाम होता है, रात होता है,
एक ही शब्द पर मेरा ध्यान टिका होता है।।
पढ़ता हूँ, तो यही शब्द, 
लिखता हूँ, तो यही शब्द,
मिटाता हूँ, तो यही शब्द,
साथ खेलता, तो यही शब्द,
अगर साथ होता, 
तो बन जाता हकीकत, यही शब्द।। 
हर शब्द में बस्ता यही शब्द, 
चाहे चाँद या सितारा कहूँ,
चाहे धरती या गगन कहूँ,
चाहे कलियाँ या पुष्प कहूँ,
चाहे पुकारु संसार।।
                          _सत्यम्  कुमार  सिंह #शब्द???
#satyamdevu
#preyasi_my_love
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Satyam Devu (मृदुल)

कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?


ख्वाहिशें नहीं रंग लगाने की,
ख्वाहिशें है आपके रंगों में रंगे रह जाने की।
जी नहीं करता कभी रंग बदलने की।। 
आपके रंगों ने हर रंग को कर दिया है फीका।
मैं तो हमेशा लगाए हूं फिरता। 
आप तो रंगों की सरोबर हो,
क्या मतलब रह जाता आपको रंग लगाने का।
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?

आपके श्रंगार का रंग जिसे मैं शब्दों में पिरोता हूं।
आपके आँखों के रंग जिनमे में हमेशा डुब जाता हूं।
उन डुबकीयों से मैं हमेशा शब्द ढूंढ लाता हूं l
और हर रंगो से ज्यादा रंगीन बनाने का प्रयास मैं करता हूं।
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?

होली खेलना तो मुझे जरुरी नहीं लगता? 
आपका याद हि काफी हो जाता, 
चेहरा गुलाबी हो जाता।
कोई अगर बोले बुरा-भला,
चेहरा लाल-पीला हो जाता। 
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता? 

मुझे चाह नहीं उस लाल-गुलाबी गुलाब की,
जो वक्त के साथ अपना रंग खो जाए,
मुझे वो कांटा ही पसंद है, जो अपने रंग मैं ही रंग जाए।
आपके गालों की वो ख़ूबसूरत सी महकें, 
आज भी हमारे रंगों मैं सामिल है,
वही तो मैं लगा बैठा हूं, जो हर रंग को फीका कर देता है।
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?

                                         - सत्यम् कुमार सिंह #कौन_कहता,#कि_मैं_रंग_नहीं_खेलता?
#preyasi_my_love
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Satyam Devu (मृदुल)

हाँ, मैं  तुमसे  ही  बोल रहा  हूँ, 
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हु. 
माटी से जुड़ा हुँ मैं, ख्वाब अर्श का लिए हुए,,
पीछे कब मुड़ा हुँ मैं ? राह, मंजिल-ए-तलब लिए,,-(1)

ठोकरों से मैं जूझकर, कभी लड़ा मैं जान-बूझकर,,
मैं झुक गया वहाँ कहीं, जहाँ हार में जीत सी दिखी. -(2)

है वो मंजिल प्रकाश का, जो दिखा वो अर्श में,,
ज्ञान का है वो सागर, जो लहरा रहा तरंगें पवन में,,-(3)

सम्मान मैं लिए हुए, तिरस्कार भी, मैं सह गया,,
ख़्वाब बड़े नए लिए हुए, कुछ हार मैं भी सह गया,,-(4)

हवा के जरिए मैं बहता जाऊँ, 
सोचा 'ज्ञान के सागर' में डूबकियाँ लगा जाऊँ,,-(5)

हाँ, मैं तुमसे ही बोल रहा हूँ, 
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ. - (6)

अपने दिल के जज्बातों को छुपा रहा हूँ, 
क्या मैं यही जिंदगी चाहता था, 
जिसे जीता चला जा रहा हूँ. 
हाँ, मैं आज भी मुस्करा रहा हूँ. -(7)

ऐ हवा, तुम हो इस मेहफिल में आज भी,
चाहे हमारी लफ्जों को, आवाज़ मिले ना मिले,
पत्तों की सर्सराहट हो न हो, में तो मुस्कुरा रहा हूँ.-(8)

तुम्हारी सर्सराहट से तो दुनिया काँप जाती है,
बढ़े-बढ़े इमारतें भी ढह जाती है, 
मैं तो मामुली सा, छोटा सा पौधा हूँ, 
जिधर चाहो लचा दोll-(9)

हाँ, मैं तुमसे ही बोल रहा हूँ, 
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ, 
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ ll-(10) #loveyou #preyasi
मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ ❤️

#loveyou #preyasi मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ ❤️ #कविता


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