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dhaniramnirdhan2139
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Dhaniram

working as an Actor & Story writer film industry Mumbai India without my permission in these all my creation dont use another place... I have copywrite to all my own...! thanks

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Dhaniram

"मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है 
मंजिल
 को फ़तेह करने तक
ये रंगीन रास्ते फीकी दुनिया के स्वाद का
 कोई अंदाज़ा नही....
वक्त बे वक़्त कब रुला बैठे...."🏌️🏌️

©Dhaniram
  रंगीन दुनिया
 sanju

रंगीन दुनिया sanju #Society

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Dhaniram

पापी पेट 
भूख और जगह नही देखती साहब
चाहे सामने 
शार्क या मगर ही क्यों न हो...



किंगफिशर#श्रीलंका

©Dhaniram Nirdhan
  भूख

भूख #Life

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Dhaniram

आज कल का वक्त ही खराब है जनाब..👀 
पहले हम उनके खौफ़ से डरते थे...
और जब दूरियां
 नज़दीकियों में बदली तो
        उनके.....😢🏌️🏌️🏌️

©Dhaniram Nirdhan
  Extreem love
#thought
#story#man#dillagi
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Dhaniram

"कुछ लोग बहुत उतावले हैं 
तीसरे विश्वयुद्ध को लेकर....!"
कोई कहता है,कि तीसरा युद्ध,
पानी को लेकर होगा, 
कोई कहता है, मज़हब को लेकर होगा,
तो कोई कहता है,
सीमाओं को लेकर होगा, 
पर होगा ज़रूर....!"
क्यों कि कुछ लोगों को सिर्फ बहाना चाहिए ।
मरने और मारने का।
पर मैं कहता हूँ....एक अनुभव के तहत,
रे...इंसान इतना भी मत परेसा हो,
किसी को मरने और मारने के लिये...!
बीमारियां, लाचारियाँ अपना काम कर रही हैं ।
कैंसर के रूप में ,आत्म हत्या के रूप में , तू बस देखता जा । 
परेसा मत हो।
 घर जा...!
और प्रार्थना कर की ये तीसरा युद्ध बस तेरे कारण न हो।"
                                       सूरज घोषी ....... कुछ लोग...!

कुछ लोग...!

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Dhaniram

"बस ज़िंदगी का दस्तूर भी कुछ  ऐसे ही है, 
आरंभ ढूंढो तो अंत नज़र आता है।
और अंत ढूंढो तो आरंभ नज़र आता है।
बस चंद सांसों को 
एक आईना बना लो 
और 
प्यार से दो नयना सज़ा लो 
और ज़िंदगी  के रंगीन कैनवास पर
आरंभ अंत दोनों खोज लो।"
D.R.P. ज़िंदगी के दस्तूर भी...

ज़िंदगी के दस्तूर भी...

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Dhaniram

"बख़्त की भी रज़ा थी कि  मेरी  रफ़्तार ज़माने से भी तेज हो।
और मैं भी बुलंदियों की तामीर को फ़तेह कर लूं।
पर अपनों को ही गंवारा न था।
ज़िंदगी की भागती रफ्तार से अनायास ही पलट कर देखा
तो सच मे किसी का......!
                         D.R. Nirdhan बख़्त की रज़ा क्या है...

बख़्त की रज़ा क्या है...

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Dhaniram

"मुझे भी उड़ान भरने का बेहद शौक था।
 पर चलते वख़्तों ने मेरे पर काट दिए। 
फिर में अपनी सोच को दोगुना करके एक लंबी उड़ान अपने 
नवांकुरित बीज में देखने लगा ।
और उसे एक मज़बूत पेड़ बनाने में,
मै अपनी सारी शक्ति लगा दी ,पर शायद उसकी अपनी बुनियादी जड़ें कमजोर थी । 
ज़माने के पहले ही झोंके ने उसे झकझोर दिया और वह 
आज भी उसी ग़म डूबा है।
उस ग़म को सदैव के लिए जला कर ख़ाक करदूँ...?,
उसी बावत एक मजबूत पेड़ की टहनियाँ इकठ्ठा कर रहा हूँ।
क्यों कि इस बार...
 उस बीज को एक मजबूत पेड़ बनाना है।"
                                         D R Nirdhan.. मजबूत पेड बनाना है..!

मजबूत पेड बनाना है..!

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Dhaniram

"ये बस्तियां भी अक्सर अपने रंग बदल लेती हैं
जमाने की मार से,
ताकि विकास के नाम पर लोग इन्हें भी शामिल कर सकें।
कल की हमारी झुग्गी,
अब अलीशान महल में तब्दील हो गई है।
अब हम महल के जीने से मिस किया करेंगे, 
मेरा गांव यहीं कंही खो गया है, महलों की तमीरों में।"

                       D R Nirdhan ओझल होता हुआ गांव...

ओझल होता हुआ गांव...

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Dhaniram

"आओ दीवाली की आड़ में अपना कल जलाते हैं।
दीपक ,प्रेम पराग छोड़ो,चलो बारूद भरे पटाखे जलाते हैं।
गूंगे बहरों को क्या फर्क पड़ता है, की हम क्या करते हैं।
घर, गली ,चौराहे पे, बिछा दो बारूद का ढेर और शोर का कोहराम मचा दो, 
कितना दम था हमारे पटाखों में ये दुनिया को दिखा दो।
धुंआ-धुआं करदो धरती से आसमान तक, 
खंज़र घोप दो प्रकृति की कोख पर,
गढ्ढे खोद कर लकीर खींच दो, 
की हम लकीर के फकीर ही रहेंगे,
सदियों से घनघोर दीवाली मनाते आए हैं ,मनाते रहेंगे।
कल भी अपना कल जालाए थे, आगे भी अपना कल जलाते रहेंगे।
हमने जंग लड़ी है।
 प्रकृति को बचाने में, तुम्हे भी आहुति देनी पड़ेगी नवांकुरित बीजों ।
तो आओ कसम खाओ हमारे साथ हम ऐसे ही पटाखों की दिवाली मानते हैं ।
दिए से तेल कापुस निकाल कर नेचर का खून जलाते है ।
आओ दीवाली की आड़ में अपना कल जलाते हैं।
दीपक प्रेम पराग, छोड़ो चलो बारूद के पटाखे जलाते हैं ।"
                       D. R. Nirdhan पटाखों की दीवाली मानते हैं.....

पटाखों की दीवाली मानते हैं.....

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Dhaniram

"आओ सपनो के महलों में चढ़कर कल को निहारते हैं।
शायद 
मंजिल की तरफ एकाद कदम बढ़ जाएं।"
DRP शायद....

शायद....

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