सादगी का साज बन, जिसकी हर दुआ पूरी हो ऐसी नवाज़ बन। छू ले हर आस्मा को, बनना ही है तो हर जीत की मशाल बन। भले कुछ बने या न बने, प्रथम स्वयं की आवाज बन। शाम में ढल जाने का मन न हो तो, तू शाम की ज़ुबान बन। शिकायतें हो अगर हजारों, मुखातिब होकर एक नया फरमान बन। भले कुछ बने या न बने, प्रथम स्वयं की आवाज बन। किसान की माटी न बन सके तो, खुद का आदि बन चल। जो ठुकराए दुनियां ने, खुद का समाज बन। भले कुछ बने या न बने, प्रथम स्वयं की आवाज बन।। . . A vediy, A writer, A growing human and may be a future consultant in phychology.
Garima Singh Rawat
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