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rekhapandey6558
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Rekha Pandey

PhD scholar Uttarakhand

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Rekha Pandey

 मुझे ढूंढने को जो मंदिर मस्जिद में जाते हो
मै बसा हूं फूलों में, हवा और आग जैसा हूं
ना मैं कृष्ण जैसा हूं ना मैं राम जैसा हूं
फुटपाथ पर लेटा, मै इंसान जैसा हूं।

मुझे मनाने को उपवास करते हो, जो  यज्ञ करते हो
ना मैं भूखा हूं ,ना ही मैं पाप जैसा हू
रोटी के निवाले को जो दिन रात तड़पते हैं

मुझे ढूंढने को जो मंदिर मस्जिद में जाते हो मै बसा हूं फूलों में, हवा और आग जैसा हूं ना मैं कृष्ण जैसा हूं ना मैं राम जैसा हूं फुटपाथ पर लेटा, मै इंसान जैसा हूं। मुझे मनाने को उपवास करते हो, जो यज्ञ करते हो ना मैं भूखा हूं ,ना ही मैं पाप जैसा हू रोटी के निवाले को जो दिन रात तड़पते हैं

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Rekha Pandey

 एक बार वफा की बात कर लेते हैं...
अभी और आज कर लेते हैं....

दिलों में जो दूरियां बना ली है
मोहब्बत में  जो सजा दी है,
इन फासलों को कम कर लेते हैं...
मुझे और तुम्हें अब हम कर लेते हैं।

एक बार वफा की बात कर लेते हैं... अभी और आज कर लेते हैं.... दिलों में जो दूरियां बना ली है मोहब्बत में जो सजा दी है, इन फासलों को कम कर लेते हैं... मुझे और तुम्हें अब हम कर लेते हैं।

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Rekha Pandey

socha unhone...


caption me puri pdhiye,
pulwana attack ke bad ek sandesh
aatnkiyo ke liye.. सोचा उन्होंने हमें मार गिराएं
बहा कर नदियां खून की
बदले की आग बुझाएं 
किसे समझाऊं नफरत का कोई अंजाम नहीं
आतंक की जो भाषा बोले
वो जानवर भी नहीं, इंसान भी नहीं।
     जिसे तू आज हिन्दुस्तान कहता है
     तू भी कभी हमारा कहलाता था

सोचा उन्होंने हमें मार गिराएं बहा कर नदियां खून की बदले की आग बुझाएं किसे समझाऊं नफरत का कोई अंजाम नहीं आतंक की जो भाषा बोले वो जानवर भी नहीं, इंसान भी नहीं। जिसे तू आज हिन्दुस्तान कहता है तू भी कभी हमारा कहलाता था

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Rekha Pandey

 चलो  एक फरियाद लिखती  हु.
कल की कलम से आज लिखती हूं।।

मै रोशन नहीं हूं 
साया बनकर तेरे संग चली हूं
फिरभी रोशन - ए- खास लिखती हूं
तेरे लिए अरमानों का एक चांद लिखती हूं।

चलो एक फरियाद लिखती हु. कल की कलम से आज लिखती हूं।। मै रोशन नहीं हूं साया बनकर तेरे संग चली हूं फिरभी रोशन - ए- खास लिखती हूं तेरे लिए अरमानों का एक चांद लिखती हूं।

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Rekha Pandey

कुछ वादे मैंने किए थे
कुछ वादे तुमने भी किए होंगे
निभा नहीं पाए जिन कसमों को
पूरे करने के इरादे ही नहीं होंगे।

कोशिश तुमने भी नहीं की थी
कोशिश मैंने भी नहीं की होगी
वो जो अधूरी ही रह गई
तुझे ना जरूरत मेरी होगी
मुझे ना जरूरत तेरी  होगी।

कुछ गलतियां तुम्हारी थी
कुछ गलतियां मेरी भी रही होगी
लौट कर पीछे जो देखा नहीं हमने
कुछ वजह तेरी भी  होगी
कुछ वजह मेरी भी होगी

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Rekha Pandey

छोटे बड़े सभी घरों ने
पैगाम भेजा है सभी बड़ों ने
शहर में बसे बेटे को बोल दो
अब तो कुड़ियों के द्वार खोल दो

बंद घरों के खं में,उगी है घास हर मं घर में
खिसक गए पाखे के पाथर, पुराना हो गया है दार
कह रहा घरों में उगा बोयाझाड़
कुड़ी छ्याने घर आजा एक बार।

कह रहे हैं स्यर,कह रहे हैं बगड़
कोई तो ग्वाले आओ कोई तो रुपायि लगाएं
खुद खेत किसान को बुलाएं
कोई तो उनमें हल चलाएं।

सूख रही है नदी सूख रहा है गध्यर
इंतजार में तेरे पहाड़ भी हो गया पाथर
बच्चे नहीं है,पेड़ों पर आम भी कम आते हैं
बेरु के पेड़ों पर बैठें घिनोड़ भी
हमे बुलाते हैं।

शीश उठा कर वो 
बादलों से ,
हमारी मानवता तोलते हैं
पहाड़ भी बोलते हैं.....।

कुड़ियों ( घरों के)
खं (आंगन), मं (परिवार), पाखा ( घर की छत), बोया झाड़ ( एक पौधा)
पथर (पत्थर), ग्वाले(जानवरों को चराना),  स्यार( पानी से हमेशा भीगे हुए खेत), बगड़( नदी किनारे के खेत)
बेडू ( उत्तराखंड का फल)
घिनोड(एक पक्षी), 

 
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Rekha Pandey

इजहार नहीं, एतबार से डर लगता है
हमे तेरे इनकार से डर लगता है,

चले गए तुम तो रह ना पाएंगे
अब हमे तेरे प्यार से डर लगता है

रूठ ना जाओ, ख्फाओ से डर लगता है
मुझे तेरी वफाओं से डर लगता है Mukesh Poonia Sachin Joshi Rakesh Kumar Nitu Sharma Ashutosh Mishra

Mukesh Poonia Sachin Joshi Rakesh Kumar Nitu Sharma Ashutosh Mishra

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Rekha Pandey

 चलते हुए सड़कों पर सिग्नल तोड़ जाते हैं
चलान के नाम पर नेताओं का रौब दिखाते हैं
बैठे हुए ट्रेनों में , कितना समान चुराते हैं
और हम भारत में, यूरोप चाहते हैं

बेटा बेटी, उच नीच, जाती धर्म 
चिल्लाते हैं
और हम भारत में, यूरोप चाहते हैं

चलते हुए सड़कों पर सिग्नल तोड़ जाते हैं चलान के नाम पर नेताओं का रौब दिखाते हैं बैठे हुए ट्रेनों में , कितना समान चुराते हैं और हम भारत में, यूरोप चाहते हैं बेटा बेटी, उच नीच, जाती धर्म चिल्लाते हैं और हम भारत में, यूरोप चाहते हैं

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Rekha Pandey

 मेरे पैदा होना शुभ है या अशुब ,बताने वाले
 मुझसे ही घर की मान मर्यादा ह, ये बताने वाले
तुम होते कौन हो मुझे समझाने वाले?

मै लड़की हूं, मुझे कितना बोलना चाहिए
घर के बाहर सर झुकाकर चलो ,बताने वाले
तुम होते कौन हो मुझे समझाने वाले?

मेरे पैदा होना शुभ है या अशुब ,बताने वाले मुझसे ही घर की मान मर्यादा ह, ये बताने वाले तुम होते कौन हो मुझे समझाने वाले? मै लड़की हूं, मुझे कितना बोलना चाहिए घर के बाहर सर झुकाकर चलो ,बताने वाले तुम होते कौन हो मुझे समझाने वाले?

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Rekha Pandey

 यह उन दिनों की बात है
जब मैं कोख में पनप रही थी
आने वाला बेटा है या बेटी
गांव में अफवाह चल रही थी,

1 दिन आया जब मैं आई
मैं तो खुश थी पर सब सन्नाटे में थे
शायद वो किसी और का इंतजार कर रहे थे ,

यह उन दिनों की बात है जब मैं कोख में पनप रही थी आने वाला बेटा है या बेटी गांव में अफवाह चल रही थी, 1 दिन आया जब मैं आई मैं तो खुश थी पर सब सन्नाटे में थे शायद वो किसी और का इंतजार कर रहे थे ,

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