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ambikanandan8352
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AMBIKA PRASAD NANDAN

poet, lyrics and stories writter and a teacher also

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AMBIKA PRASAD NANDAN

White कोई हाथ छुड़ा कर जाये जो, 
उसको ना रोको, जाने दो! 
तुम भूल के उसको, एक नये सपने को खुद तक आने दो!!

©AMBIKA PRASAD NANDAN
  #good_night  Khan Sahab  shehzadi  जयश्री_RAM  Ashutosh Mishra  Nîkîtã Guptā  शायरी लव

#good_night Khan Sahab shehzadi जयश्री_RAM Ashutosh Mishra Nîkîtã Guptā शायरी लव

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AMBIKA PRASAD NANDAN

White कोई हाथ छुड़ा कर जाये जो, 
उसको ना रोको, जाने दो! 
तुम भूल के उसको, एक नये सपने को खुद तक आने दो!!

©AMBIKA PRASAD NANDAN #good_night  Khan Sahab  shehzadi  जयश्री_RAM  Ashutosh Mishra  Nîkîtã Guptā  शायरी लव

#good_night Khan Sahab shehzadi जयश्री_RAM Ashutosh Mishra Nîkîtã Guptā शायरी लव

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AMBIKA PRASAD NANDAN

 Khan Sahab  Ashutosh Mishra  Singh Rajnish  Dr. uvsays  Nîkîtã Guptā

Khan Sahab Ashutosh Mishra Singh Rajnish Dr. uvsays Nîkîtã Guptā #वीडियो

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AMBIKA PRASAD NANDAN

#RadheGovinda  शायरी हिंदी में shehzadi  Anju  Ashutosh Mishra  Singh Rajnish  Ek Lamba safer with Adarsh  upadhyay

#RadheGovinda शायरी हिंदी में shehzadi Anju Ashutosh Mishra Singh Rajnish Ek Lamba safer with Adarsh upadhyay

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AMBIKA PRASAD NANDAN

#RadheGovinda  शायरी हिंदी में जयश्री_RAM  deepak goyal  Khan Sahab  Nîkîtã Guptā  shehzadi

#RadheGovinda शायरी हिंदी में जयश्री_RAM deepak goyal Khan Sahab Nîkîtã Guptā shehzadi

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AMBIKA PRASAD NANDAN

चाहे लाख अच्छाई हो आप में!
आपकी एक गलती उन सभी अच्छाइयों को ढकने के लिए काफी है!!
राधे राधे!!

©AMBIKA PRASAD NANDAN
   'अच्छे विचार' Nîkîtã Guptā  Khan Sahab  Student Student  Ashutosh Mishra  Dharmendra Ray

'अच्छे विचार' Nîkîtã Guptā Khan Sahab Student Student Ashutosh Mishra Dharmendra Ray

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AMBIKA PRASAD NANDAN

चाहे लाख अच्छाई हो आप में!
आपकी एक गलती उन सभी अच्छाइयों को ढकने के लिए काफी है!!
राधे राधे!!

©AMBIKA PRASAD NANDAN
   'अच्छे विचार' Nîkîtã Guptā  Khan Sahab  Student Student  Ashutosh Mishra  Dharmendra Ray

'अच्छे विचार' Nîkîtã Guptā Khan Sahab Student Student Ashutosh Mishra Dharmendra Ray

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AMBIKA PRASAD NANDAN

White जीवनभर की कमाई का मतलब लोगों द्वारा दिया गया सम्मान है!!

©AMBIKA PRASAD NANDAN
  #National_Sports_Day  Nîkîtã Guptā  Singh Rajnish  Anju  Khan Sahab  Student Student  'दर्द भरी शायरी'

#National_Sports_Day Nîkîtã Guptā Singh Rajnish Anju Khan Sahab Student Student 'दर्द भरी शायरी'

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AMBIKA PRASAD NANDAN

White मीरा का कृष्ण से प्रेम मीरा की तरह शुरू नहीं हुआ! प्रेम का इतना अपूर्व भाव इस तरह शुरू हो भी नहीं सकता। यह कहानी पुरानी है।

 यह मीरा कृष्ण की पुरानी गोपियों में से एक है। मीरा ने खुद भी इसकी घोषणा की है, लेकिन पंडित तो मानते नहीं। क्योंकि इसके लिए इतिहास का कोई प्रमाण नहीं है। मीरा ने खुद भी कहा है कि कृष्ण के समय में मैं उनकी एक गोपी थी, ललिता मेरा नाम था। 

मगर पंडित तो इसको टाल जाते हैं; यह बात को ही कह देते हैं कि किंवदंती है, कथा-कहानी है। मैं ऐसा न कर सकूंगा। मैं पंडित नहीं हूं। और हजार पंडित कहते हों तो उनकी मैं दो कौड़ी की मानता हूं। मीरा खुद कहती है, उसे मैं स्वीकार करता हूं। सच-झूठ का मुझे हिसाब भी नहीं लगाना है। 

बात के इतिहास होने न होने से कोई प्रयोजन भी नहीं है। मीरा का वक्तव्य, मैं राजी हूं। मीरा जब खुद कहती है तो बात खतम हो गई। फिर किसी और को इसमें और प्रश्न उठाने का प्रश्न नहीं उठना चाहिए। और जो इस तरह के प्रश्न उठाते हैं वे मीरा को समझ भी न पाएंगे।

अंग्रेजी में एक शब्द है: देजावुह। उसका अर्थ होता है: पूर्वभव की स्मृति का अचानक उठ आना। कभी-कभी तुम्हें भी देजावुह होता है।

मीरा ने कहा है: मैं ललिता थी। कृष्ण के साथ नाची, वृंदावन में कृष्ण के साथ गाई। यह प्रेम पुराना है--मीरा यही कह रही है--यह प्रेम नया नहीं है। और इसकी शुरुआत जिस ढंग से हुई, वह शुरुआत भी करती है साफ कि पंडित गलत होंगे, मीरा सही है। और पंडित कितने ही सही लगें, फिर भी सही नहीं होते, क्योंकि उनके सोचने का ढंग ही बुनियाद से गलत होता है। वे प्रमाण मांगते हैं।

 अब प्रमाण क्या? किसी अदालत की सील-मोहर लगी हुई कोई फाइल मौजूद करे मीरा, कि कृष्ण के समय में थी? कहां से प्रमाणपत्र लाए? गवाह जुटाए? अंतर्भाव पर्याप्त है। और उसका अंतर्भाव प्रमाण है।

मीरा छोटी थी, चार-पांच साल की रही होगी, तब एक साधु मीरा के घर मेहमान हुआ, और जब सुबह साधु ने उठ कर अपनी मूर्ति--कृष्ण की मूर्ति छुपाए था अपनी गुदड़ी में--निकाल कर जब उसकी पूजा की तो मीरा एकदम पागल हो गई।

 देजावुह हुआ। पूर्वभव का स्मरण आ गया। वह मूर्ति कुछ ऐसी थी कि चित्र पर चित्र खुलने लगे। वह मूर्ति जो थी--शुरुआत हो गई फिर से कहानी की; निमित्त बन गई। उससे चोट पड़ गई। कृष्ण की मूरत फिर याद आ गई।

 फिर वह सांवला चेहरा, वे बड़ी आंखें, वे मोरमुकुट में बंधे, वे बांसुरी बजाते कृष्ण! मीरा लौट गई हजारों साल पीछे अपनी स्मृति में। रोने लगी। साधु से मांगने लगी मूर्ति। लेकिन साधु को भी बड़ा लगाव था अपनी मूर्ति से; उसने मूर्ति देने से इनकार कर दिया। वह चला भी गया। मीरा ने खाना-पीना बंद दिया।

पंडितों के लिए यह प्रमाण नहीं होता कि इससे कुछ प्रमाण है देजावुह का। लेकिन मेरे लिए प्रमाण है। चार-पांच साल की बच्ची! हां, बच्चे कभी-कभी खिलौनों के लिए भी तरस जाते हैं, लेकिन घड़ी-दो घड़ी में भूल जाते हैं। दिन भर बीत गया, न उसने खाना खाया, न पानी पीया। उसकी आंखों से आंसू बहते रहे। वह रोती ही रही। उसके घर के लोग भी हैरान हुए कि अब क्या करें? साधु तो गया भी, कहां उसे खोजें? और वह देगा, इसकी भी संभावना कम है।

और वह कृष्ण की मूरत जरूर ही बड़ी प्यारी थी, घर के लोगों को भी लगी थी। उन्होंने भी बहुत मूर्तियां देखी थीं, मगर उस मूर्ति में कुछ था जीवंत, कुछ था जागता हुआ, उस मूर्ति की तरंग ही और थी। 

जरूर किसी ने गढ़ी होगी प्रेम से; व्यवसाय के लिए नहीं। किसी ने गढ़ी होगी भाव से। किसी ने अपनी सारी प्रार्थना, अपनी सारी पूजा उसमें ढाल दी होगी। या किसी ने, जिसने कृष्ण को कभी देखा होगा, उसने गढ़ी होगी।

 मगर बात कुछ ऐसी थी, मूर्ति कुछ ऐसी थी कि मीरा भूल ही गई, इस जगत को भूल ही गई। वह तो उस मूर्ति को लेकर रहेगी, नहीं तो मर जाएगी। यह विरह की शुरुआत हुई चार-पांच साल की उम्र में!

रात उस साधु ने सपना देखा। दूर दूसरे गांव में जाकर सोया था। रात सपना आया: कृष्ण खड़े हैं। उन्होंने कहा कि मूर्ति जिसकी है उसको लौटा दे। तूने रख ली, बहुत दिन तक; यह अमानत थी; मगर यह तेरी नहीं है। अब तू नाहक मत ढो। तू वापस जा, मूर्ति उस लड़की को दे दे; जिसकी है उसको दे दे। उसकी थी, तेरी अमानत पूरी हो गई। तेरा काम पूरा हो गया। यहां तक तुझे पहुंचाना था, वहां तक पहुंचा दिया; अब खतम हो गई।

मूर्ति उसकी है जिसके हृदय में मूर्ति के लिए प्रेम है। और किसकी मूर्ति?

 साधु तो घबड़ा गया। कृष्ण तो कभी उसे दिखाई भी न पड़े थे। वर्षों से प्रार्थना-पूजा कर रहा था, वर्षों से इसी मूर्ति को लिए चलता था, फूल चढ़ाता था, घंटी बजाता था, कृष्ण कभी दिखाई न पड़े थे। वह तो बहुत घबड़ा गया। वह तो आधी रात भागा हुआ आया। आधी रात आकर जगाया और कहा: मुझे क्षमा करो, मुझसे भूल हो गई। इस छोटी सी लड़की के पैर पड़े, इसे मूर्ति देकर वापस हो गया।

यह जो चार-पांच साल की उम्र में घटना घटी, इससे फिर से दृश्य खुले; फिर प्रेम उमगा; फिर यात्रा शुरू हुई। यह मीरा के इस जीवन में कृष्ण के साथ पुनर्गठबंधन की शुरुआत है। मगर यह नाता पुराना था। नहीं तो बड़ा कठिन है। 

कृष्ण को देखा न हो, कृष्ण को जाना न हो, कृष्ण की सुगंध न ली हो, कृष्ण का हाथ पकड़ कर नाचे न होओ--तो लाख उपाय करो, तुम कृष्ण को कभी जीवंत अनुभव न कर सकोगे। इसलिए जीता सदगुरु ही सहयोगी होता है।

तुम भी कृष्ण की मूर्ति रख कर बैठ सकते हो, मगर तुम्हारे भीतर भाव का उद्रेक नहीं होगा। भाव के उद्रेक के लिए तुम्हारी अंतर-कथा में कोई संबंध चाहिए कृष्ण से; तुम्हारी अंतर-कथा में कोई समानांतर दशा चाहिए।

मीरा का भजन तुम भी गा सकते हो; लेकिन जब तक कृष्ण से तुम्हारा कुछ अंतर-नाता न हो, तब तक भजन ही रह जाएगा, जुड़ न पाओगे। हृदय--हृदय न मिलेगा, सेतु न बनेगा।

वह चार-पांच वर्ष की उम्र में घटी छोटी सी घटना--सांयोगिक घटना--और क्रांति हो गई। मीरा मस्त रहने लगी, जैसे एक शराब मिल गई। दो वर्ष बाद पड़ोस में किसी का विवाह हुआ, और यह सात-आठ साल की लड़की ने पूछा अपनी मां को: सबका विवाह होता है, मेरा कब होगा? और मेरा वर कौन है?

और मां ने तो ऐसे ही मजाक में कहा, क्योंकि वह उस वक्त भी कृष्ण की मूर्ति को छाती से लगाए खड़ी थी--कि तेरा वर कौन है?--यह गिरधर गोपाल! यह गिरधरलाल! यही तेरे वर हैं! और क्या चाहिए? यह तो मजाक में ही कहा था! मां को क्या पता था कि कभी-कभी मजाक में कही गई बात भी क्रांति हो जा सकती है। और क्रांति हो गई।

और कभी-कभी कितनी ही गंभीरता से तुमसे कहा जाए, कुछ भी नहीं होता, क्योंकि तुम्हारे भीतर कुछ छूता ही नहीं। हो तो छुए। बीज को पत्थर पर फेंक दोगे तो अंकुरित नहीं होता; ठीक भूमि मिल जाए तो अंकुरित हो जाता है। वह ठीक भूमि थी। 

मां को भी पता नहीं था; सोचती थी कि बच्चे का खिलवाड़ है; कृष्ण एक खिलौना हैं। मिल गए हैं इसको। सुंदर मूर्ति है, माना। तो नाचती-गुनगुनाती रहती है--ठीक है--अपने उलझी रहती है; कुछ हर्जा भी नहीं है। मजाक में ही कहा था कि तेरे तो और कौन पति! ये गिरिधर गोपाल हैं! ये नंदलाल हैं! 

मगर उसका मन उसी दिन भर गया। यह बात हो गई। कभी-कभी संयोग प्रारम्रंभ बन जाते हैं--महाप्रस्थान के पथ पर। उसने तो मान ही लिया। वह छोटा सा भोला-भाला मन! उसने मान लिया कि यही उसके पति हैं। फिर क्षण भर को भी यह बात डगमगाई नहीं। फिर क्षण भर को भी यह बात भूली नहीं।

असल में बचपन में अगर कोई भाव बैठ जाए तो बड़ा दूरगामी होता है। यह बात बैठ गई। उस दिन से उसने अपना सारा प्रेम, कृष्ण पर उंडेल दिया। जितना तुम प्रेम उंडेलोगे, उतने ही कृष्ण जीवित होते चले गए। 

पहले अकेली बात करती थी, फिर कृष्ण भी बात करने लगे। पहले अकेली डोलती थी, फिर कृष्ण भी डोलने लगे। यह नाता भक्त का और मूर्ति का न रहा; भक्त और भगवान का हो गया।
ओशो 
पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--01)

©AMBIKA PRASAD NANDAN
  #Sad_Status  Khan Sahab  Dr. uvsays  Nîkîtã Guptā  Student Student  Ashutosh Mishra

#Sad_Status Khan Sahab Dr. uvsays Nîkîtã Guptā Student Student Ashutosh Mishra #विचार

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AMBIKA PRASAD NANDAN

White प्रीत की रीत तुम को निभाना पड़ेगा!
ताप अग-जग का तुम को मिटाना पड़ेगा!!
चाहे कलियुग हो या कि हो द्वापर कान्हा! 
राधा जब भी पुकारे तुम को आना पड़ेगा!!

©AMBIKA PRASAD NANDAN
  #love_qoutes  Student Student  Ashutosh Mishra  Ek Lamba safer with Adarsh  upadhyay  Dharmendra Ray   Laljit Kumar Kumar  प्रेम कविता

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