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Arun kr.

कुछ नहीं बस शब्दों से खेल लेता हूँ।

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Arun kr.

White जब बढ़ने लगती है दूरियां
गुजरे यादों की घड़ियां
हिलोरे सा मचलती है
हम जिन्हें  अक्सर नकारते थे
अब वो सुनहरे पल और सुकूँ की घड़ियां नजर आते हैं
मुस्कुरा लेते अगर  कमियों के बावजूद यादें और यादगार हो जाते
थमते तो कुछ भी नही महज़ यादों के
बची रह जाती हैं महज आपसी लगाव
जो बिछड़ने के बाद भी जोड़े रहते है एक दूसरे
वरना मिलते तो है हजारों बाजार में 
हम खोते है सुनहरे पलों को कमियां निकलने में
कमियां सुधरती है वंहा ,हमे निकल जाने पर।

©Arun kr. #sad_quotes
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Arun kr.

आतंक का दूसरा नाम आस्था कहूं तो क्या  कहोगे ?
धर्मविरोधी
आपके भावनाएं भी आहत होगी
आपकी गुस्सा जायज है
आंखों पर पट्टी जो बंधी पड़ी है
पर क्षमा कीजियेगा
मन मे बैर न रखियेगा
कितने मरते हैं देश मे आतंकवादी हमलों में
कभी सोचा है आपने
आस्था के नाम पर मरने वालों से ज्यादा या कम
बहुत कम ,इसमें तो दोषी भी पकड़ा जाता है
उनका क्या
जिनका गाड़ी पलट जाती है
डुबकी लगाते ही जल में समा जाते है
भीड़ में लातों तले कुचले जाते है
किसी की भूख से तो किसी की प्यास से जान चले जाते है
आस्था के नाम पर एक दूसरे का खून बहाते है
कौन है दोषी ,कभी पकड़ा जाता क्या ?
कभी नही,पकड़ा भी नही जाएगा
आंखों पर पट्टी जो बंधी पड़ी है
खैर मन चंगा तो कठौती में गंगा
पत्थर पूजे भगवान मीले तो मैं पुजू पहाड़-कबीर

©Arun kr.
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Arun kr.

White मिलेगी ढेरों खामियां ज्यादा जानोगे तो 
पर बेहतर है एक दूसरे को समझ पाना
पल भर का आकर्षण या प्रभाव जीवन का अंत नही
क्या होगा आगे ये भी सुनिश्चित नही
झेल सको अच्छा-बुरा तो साथ आना
बेहतर की तलाश सबको है
आज बेहतर है
आगे रहेगा या नही पता नही
पल भर का आकर्षण या प्रभाव जीवन का अंत नही।

©Arun kr. #love4life
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Arun kr.

White कोई ढूंढे प्रशंसक
मैं ढूंढू आलोचक
द्वंद हो विचारों का
तर्कों का बाण चले
मेरी अज्ञानता उजागर हो
हो गर उसका तर्क प्रबुद्ध
वो मुझ में भी धारण हो
द्वंद हो विचारों का
वाद-प्रतिवाद फिर संवाद का दर्शन हो
विचारों का विकास पथ में एक-दूजे का समर्पण हो
द्वंद का अर्थ सीख हो ,बैर नही
मिल जाये कोई एक सा फिर क्या साझा कर पाओगें ?

©Arun kr.
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Arun kr.

White जो समझते नही व्यक्तिगत और राजनीतिक संबंध को
चार दिवारी और भीड़ में नेताओं की बहस को
वो मान लेते हैं कि दो नेता एक दूसरे का विरोधी है
पर मैंने कभी नही सुना
किसी नेता के मुख से की उसके व्यक्तिगत संबंध 
किसी और नेता या विपक्ष के साथ बुरे है
भला ये कहते जरूर सुना  की राजनीतिक संबंध बनते और बिगड़ते रहते है
नेता सत्ता की सुख भोगते
जनता अपनो में ही क्लेश करते
गया राम आया राम
पलटू राम का उदाहरण चलते रहते
जनता अपनों में व्यक्तिगत संबंध बिगाड़ कर रखते
 नेताओ का पल भर का विचार 
दुश्मनी ,दंगा, नफरत,
जनता के जहन में भरते 
काश!की जनता भी व्यक्तिगत और राजनीतिक संबंध आपस मे रखते ।

©Arun kr. #Sad_Status
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Arun kr.

जानो तो मानो है वास्तविकता क्या
अपना अतीत अच्छा उदाहरण होगा
कंहा था ईश्वर जब बहुसंख्यक समाज
जानवर से बदत्तर जीवन जीने को मोहताज था
जिनके छाया भर से देवी -देवता और ब्राह्मण अपवित्र हो जाता था
शुद्र और वैश्य ब्राह्मणों के कोरे खाता था
क्या देवी देवता और ईश्वर को ये सब नजर नही आता था
नाइ का काम काम
ब्राह्मण का काम धर्म कैसे
जो जबरन थोपे हो अज्ञानता पर
लोगो मे भय और अंधविश्वास का जयकारा लगाकर
है अगर ईश्वर तो साक्ष्य क्या ?
जिस मानव शरीर को हीन और अपवित्र बताते
उसी लिंग की अराधना में लीन रहना बताते
जो हमें सवाल करने से रोकता हो,हमारे विवेक को मारता हो,अंधभक्ति के नाम पर हमारे हित छीन लेता हो,ईश्वर के नाम पर हमारा शोषण करता हो ,जात पात और धर्म के नाम पर हमे आपस मे बाटता हो
क्या कोई ईश्वर इतना भेदभाव सह सकता है
अगर नही  तो है कंहा ईश्वर ?
ऐसे तमाम सवाल करने वाले सामाजिक न्याय के प्रेणता, बुद्धिजीवी,समानता  के जननायक ,नास्तिकों के जनक  ई.वी.पेरियार जयंती पर कोटि कोटि प्रणाम 🙏

©Arun kr. #पेरियारजयंती
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Arun kr.

White सफ़र दूर का था
मंजिल ' एक   होना '
किसे पता था
लिखा है  ' बिछड़ जाना '
पास से दूर होना
फिर एक दूजे को खोना
किस्मत में नही लिखा था एक होना 
कंही भी , कभी भी प्यार जताना
फिर दूरियों की वजह से भूल जाना
नामंजूर कोई और
पर किसी और का हो जाना
याद तो है पर याद न कर पाना
प्यार करने वालों से जलता है सारा जमाना।

©Arun kr.
  #love_shayari
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Arun kr.

समाज सवाल कपड़ों पर उठाते हैं
खुद चड्डी- बनियान में माँ ,बहन, बेटी,  बहू और तमाम औरतों के सामने जीवन बिताते है
क्या इन से स्त्रियों की उत्तेजना नही बढ़ती
हमने तो कभी नही सुना  किसी स्त्री ने किसी पुरूष का बलात्कार किया
चड्डी बनियान या हाफ पैंट के वजह से
उनमें भी तो उत्तेजना होती है
पुरुषों के मुकाबले कंही ज्यादा
फिर स्त्रियां पुरुषों का बलात्कार क्यों नही करती
सत्य तो ये है कि स्त्रियां हमेशा से उपभोग की वस्तु समझी जाती रही है
पतृसत्ता  और पुरूषवादी वर्चस्व यही सोच बच्चों में बचपन से भरी जाती है
समाज sex और gender तो समझते नही
उन्हें बस परम्परा का ज्ञान होता है
जानने की इच्छा नही लेकिन बनी बनाई कुरीतियों को मानने को ब्याकुल रहते
जब तक बात अपनो पर नही आती तब तक नैतिकता और सदाचार की पाठ पढ़ाते
खुद चड्डी- बनियान में जीवन बिताते
और सवाल लड़कियों के कपड़ों पर उठाते।
दोगली सोच

©Arun kr. #कपड़े
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Arun kr.

वो भी मोमबत्ती लिए सड़क पर खड़ा है
जिनके नस नस मे हवस भरा है
अश्लीलताएं और गंदी नजर
अपशब्द ,गाली और गंदी बातें
जिनके जुबां से कभी हटता नही
वे नारे लगा रहे We want Justice
जो हर बात पर महिलाओं का  वस्तुकरण करता है
वो भी I stand  with you बोलता है
कभी न बेटी की इच्छा जानने वाले समाज
जो उम्र भर बेटी को पवित्र बनाकर रखता
फिर बिना पूछे किसी अनजान से शादी कराता ,
साथ में अनजान के साथ सोने के लिए बिस्तर भी भेजवाता
ये बलात्कार नही ?
गर्व से कहते ये तो परम्परा और संस्कृति है
यही तो रीति और रिवाज है
ये शोषण और अत्याचार नही
इसके लिए कौन बोलता
जो हर घर ,  हर दिन सहती
फिर उनका क्या जो कभी अखबार या मीडिया में नही आती
जो आम सी कहलाती है
वे गरीब, दलित ,पिछड़े, आदिवासी
जो आये दिन दरिंदों की भेंट चढ़ जाती
खैर तत्काल  मुखौटे चेहरे ही सही।

©Arun kr. #candle
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Arun kr.

White लगता  है हम आज़ाद है
वर्ष 1947 की आजादी छोड़ो
उसके बाद कि हमारी मानसिकता देखो
कंहा है हम
जाति-धर्म ,ऊंच-नीच में जकड़े है
भेदभाव और अलगाव को पकड़े है
अंधविश्वास हावी है
हम चले कैसे
नेताओं के हाथ मे चाबी है
संसाधनों पर अमीरों ,उधोगपतियों ,व्यपारियो एवं वंशवादियो का एकाधिकार है
ब्राह्मणवाद का वर्चस्व अब भी बरकरार है
आधा से ज्यादा आबादी
80+ करोड़ लोग राशन के लिए मोहताज है
हम काहे गर्व करें कि हम आजाद है
क्या दुर्दशा है महिलाओं की
कंहा हैं वो
चार दिवारी कैदो में ,पुरुषों के उपभोग में आने वाली उत्पादों में
खुद से कोई निर्णय न लेने  देने वाले संकीर्ण और संकुचित समाजो में
फिर हम कैसे कहे आजाद है
जब पूरी व्यवस्था सत्ता और पूंजीवादियों के अधीन है
हम लोग तो उनके इशारों पर चलने वाले मशीन है
दो हमे आजादी- हमे लेना है आज़ादी
गऱीबी से ,भुखमरी और कुपोषण से ,बेरोजगारी और बलात्कारी से 
सत्ता के सियासतवाजी से ,असहिष्णुता और नफरतवाजी से
ब्राम्हणवाद ,वर्चस्ववाद ,वंशवाद अलगाववाद ,पुरुषवाद और आडंबरवाद से
दो हमे आजादी समानता  का
एक ही देश में दो भारत क्यों ?
एक गरीबों का एक अमीरों का
चलो फिर भी कहो हम आजाद है।

©Arun kr. #happy_independence_day
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