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babitapandey2688
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Babita Pandey

mad for poetry

https://youtu.be/2d4YSnF6W18

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Babita Pandey

चुनरी धई मुरली लिहली अब कान्हा को राधा खिजाई रहीं हैं।
खोजहू जाई लता बेलि पात तो कबहुँ कदम्ब दिखाई रहीं हैं।
देखि दशा मुरलीधर की ब्रजरानी मधुर मुसकाई रहीं हैं।
कालिया नाग नचावन वारे को जे ब्रजरानी नचाई रहीं हैं।
बबिता पाण्डेय...✍️
१५/६/२०२१

©Babita Pandey #Krishna
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Babita Pandey

बेइंतहा दर्द में हँसने का हुनर रखते हैं
रईसी दिल की और बटुये में सिफ़र रखते हैं

बबिता पाण्डेय...✍️
१५/०५/२०२१

©Babita Pandey

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Babita Pandey

वन को जाते हुए मंत्रीवर रोकते ।
अश्रुओं से रुंधे माँ के स्वर रोकते।
रीति रघुकुल की सबने निभाई सखी,
टूट जाते वचन हम अगर रोकते।

बबिता पाण्डेय...✍️

©Babita Pandey #standAlone
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Babita Pandey

हर अधूरे सपन को सँवारे हैं हम
अपने ही भाग्य से किंतु हारे हैं हम
ढूँढता ही रहे अपने अस्तित्व को 
नभ से टूटे हुए ऐसे तारे हैं हम

बबिता पाण्डेय...✍️

©Babita Pandey #droplets
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Babita Pandey

मेरे  दर्द  की  दास्ताँ  पूछते  हो !
मगर हाल दिल का कहाँ पूछते हो!
ये नदिया, झरने ये फूल ,कलियां,
मुझे छोड़ कर सब जहाँ पूछते हो!
बबिता पाण्डेय

©Babita Pandey मेरे दर्द की दास्तां 

#Rose

मेरे दर्द की दास्तां #Rose

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Babita Pandey

https://youtube.com/channel/UChgFuZ3hXRowqsslJ9PJwzw 
please subscribe my youtube channel

©Babita Pandey please subscribe

#Rose

please subscribe #Rose

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Babita Pandey

बीहड़ एक  बीरान पड़ी मैं
विहगों से अनजान पड़ी मैं
ज्योँ लावारिश वस्तु हो कोई
चौराहे पर आन पड़ी मैं

व्यथित हुआ मन , मौन हुई मैं
स्वयं के आगे बौन हुई मैं
सबसे से परिचय पूछ रहीं हूँ
अपने लिए ही कौन हुई मैं

निकल पड़ी जाने किस पथ पे
अपने धुन में तन के रथ पे
भटक रहीं हूँ दर -दर जाकर
पहुचाये कोई मुझे सुपथ पे

प्रेम हृदय में लेकर चलती
दर्पण में मैं स्वयं को छलती
शीतलता की आस में हर क्षण
जेठ दुपहरी सी हूँ जलती

अंधियारे में भी प्रकाश हूँ 
मद्धम मद्धम सी उच्छ्वास हूँ
 वातावरण सुगंधित करदे 
मलयगिरि की मैं सुबास हूँ 

रिश्तों की उधड़ी तुरपाई 
जोड़ रहीं थी पाई - पाई
स्वयं ही थक कर हार गई मैं
क़िस्मत मेरे हाथ न आई

मन के मनके रहे बिखरते
 रहे सदा हम धैर्य ही धरते
जितना हमें मिटाना चाहा
उतना ही हम गए संवरते

बबिता पांडेय ...✍️ #alone
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Babita Pandey

तेरे एहसास का झरना 
नैनों के झीनी चादर से
जाग कर रात भर मेरे
तकिये को भिगोता है
कभी जो था हृदय के पास मेरे
वो मेरा ख़ास है पर
जाने क्यों ग़ैर सा आभास होता है
इक हल्की सी छुअन से
अंगुलियाँ जो कपकंपाती थी
वही आग़ोश में अब रैन भर 
चुपचाप सोता है
बिखरना चाहती हूँ जिसके ख़ातिर 
रेत सी बनकर 
समंदर सा मुझे वो भी 
भिगोना चाहता है क्या ?
आँखों में छाई गहरी लालिमा है
 दूर जाने से
कभी लगकर गले वो संग 
रोना चाहता है क्या ?
ढूंढ़ना चाहती हूँ मैं उन्हें
एक बार अंतस में
कभी वो भी मुझे खोकर के 
पाना चाहता है क्या ?

                   बबिता पांडेय ...✍️ #Hope
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Babita Pandey

तेरे एहसास का झरना 
नैनों के झीनी चादर से
जाग कर रात भर मेरे
तकिये को भिगोता है
कभी जो था हृदय के पास मेरे
वो मेरा ख़ास है पर
जाने क्यों ग़ैर सा आभास होता है
इक हल्की सी छुअन से
अंगुलियाँ जो कपकंपाती थी
वही आग़ोश में अब रैन भर 
चुपचाप सोता है
बिखरना चाहती हूँ जिसके ख़ातिर 
रेत सी बनकर 
समंदर सा मुझे वो भी 
भिगोना चाहता है क्या ?
आँखों में छाई गहरी लालिमा है
 दूर जाने से
कभी लगकर गले वो संग 
रोना चाहता है क्या ?
ढूंढ़ना चाहती हूँ मैं उन्हें
एक बार अंतस में
कभी वो भी मुझे खोकर के 
पाना चाहता है क्या ?

                   बबिता पांडेय ...✍️ #Hope
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Babita Pandey

इश्क़ की कुछ देन है
और कुछ मेरे अशआर हैं 
शब्द जो प्रतिबद्ध होते
वो मेरे उदगार हैं
है बड़ा मुश्किल बयाँ करना 
यूँ हाल -ऐ-दिल मेरा
थोड़ा पागल हो गए हैं 
पूरे का आसार है ।

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