यदि भय के कारण तीर्थ कर रहे है, कि अब बुढे हो गये है, और मृत्यु निकट आती प्रतीत होती है, इसलिए भय ने घेर लिया है, और इस भय के कारण मंदिरों में , मस्जिदों में , धर्म स्थलों की यात्रा आरम्भ हो गयी है, तो ऐसी यात्रा का कोई मूल्य नही है। इस प्रकार के कृत्यों में वे ही लोग अत्याधिक बढ़ चढ़ कर हिस्सेदार है ,जो जवानी में इसके विपरीत यात्रा पर थे।यदि जवानी में यात्रा ठीक रही होती, तो बुढ़ापे में स्वत: यात्रा ठीक ही होती, फिर किसी प्रयास की भी ज़रूरत नही, सहज रूप से उसके ( परमात्मा ) चरणों में जाना घटित #nojotophoto
RAVI RAJ
आत्म निरिक्षण जितना गहरा होता है उतना ही भीतर चेतना विकसित होने लगती है .खुद की भूलों को देखना बड़ी तपस्या है कि कहां कहां मुझमे दोष ,कहां असत्य,और कहां अहंकार है .इसी से विवेक/ साक्षी जागता है और दोष अपने आप क्षीण होने लगते हैं .यही मुक्ती की ओर पहला कदम है
ओशो #nojotophoto