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atulsingh7983
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Atul singh

engineer shayar

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Atul singh

ये तुम्हारी हया का रंग तुम पर कुछ इस कदर भाता है

रंग कोई भी लगे गालों पर तेरे बस गुलाबी चढ़ जाता है

©Atul singh
  #Holi

Holi

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Atul singh

हूं रावण मैं

हे राम तम्हारे तीरों से, 
क्यों करते हो यूँ संहार मेरा।
तेरी सीता तो निर्मल थी, 
ना हुआ कभी उसे स्पर्श मेरा।।
हूँ वो रावण मैं जिसने शिव धारड़, 
कैलाश भुजा में उठाया था।
छ दर्शन चतुर् वेदों का ज्ञाता, 
मैं जगत में दसकंठी कहलाया था।।
था अपराध मेरा बस इतना ही, 
की तुमको ना पहचान सका।
पर जो स्वयम् ब्रम्ह वरदानी था, 
वो कैसे न तुमको जान सका।।
ये माया भी तो तेरी थी, 
की हर मनुज को समझाना है।
की हर नारी में सीता है, 
ये इस दुनिया को बतलाना है।।

©Atul singh #Dussehra
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Atul singh

इस तफ्सील से समझ ली हैं इश्क की बारीकियां मैने
की इस कदर उलझे हैं अब कि कुछ सुलझ नहीं पाता 

यूं तो इस शहर में ही बनवाया था मैंने मकान अपना
पर जाने क्यों शहर का कोई रास्ता मेरे घर नही जाता

मुझ पर पड़ी हर नज़र के माथे पर शिकन आ गई
इस बेरुखी की पर जाने क्यों कोई वजह नही बताता

यूं ही बचपने में अक्सर हंस देता था मैं जिन्दगी पर
अब सयाना इस कदर हो गया हूं की रोया नहीं जाता

एक तो बारिश की नमी उस पर तेरी यादों की सिसक
जो इस कदर ही जीना है तो फिर मर क्यों नहीं जाता

©Atul singh #Journey
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Atul singh

अर्श से फर्श तक निर्माण का
वो विश्वकर्मा है नए विज्ञान का
नए सृजन की जिसमे छमता है
नव युग का वह एक अभियंता है

छितिज को जो धरा से जोड़ कर
मन मौज में समंदरों को मोड़ कर
कल्पनाओं से जो श्रृंगार करता है
नव युग का वह एक अभियंता है

युग भी जिसके विश्वास के दर्शक हैं
निराशाएं भी जिसकी पथ प्रदर्शक हैं
जिसकी रचनाओं से भविष्य बनता है
नव युग का वह एक अभियंता है

©Atul singh #EngineerDay
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Atul singh

कुछ अपनी जुल्फ़ों पर भी ऐतराज़ करिए
यूं बिखर के इनका चांद ढ़क लेना मुनासिब नहीं

©Atul singh
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Atul singh

जमीदोज़ हो जाएंगे बस इस असर भर से
तू देख ले जो ज़माने को एक नज़र भर के

©Atul singh
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Atul singh

सहर से लेकर रंग केसरी आज आसमान रंग दीजिए

निचोड़ कर खेतों से रंग हरा सारा जहान रंग दीजिए

आजाद परिंदों के परों से लेकर ज़रा सा रंग सफ़ेद

यूं करिए कि तिरंगे से जमीन-ए-हिंदुस्तान रंग दीजिए

©Atul singh #flag #tiranaga #India #bharat 
#IndependenceDay
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Atul singh

कोई हमे समझाए तो समझाए क्या
दिल को समझ में आए भी तो आए क्या
एक ख्वाब टूट कर बिखरा है रेत के जैसा
अब इसमें कुछ बच पाए तो बच पाए क्या

समंदर भरने निकले हैं हम एक कतरे से
दरिया आंखो से बह जाए तो रह जाए क्या
दर्द घोल कर देखा था हमने भी पानी में
जो पानी शराब बन जाए तो पी जाएं क्या

©Atul singh #Time
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Atul singh

अपने कुर्ते से कतरन फाड़ कर मेरे फटे लिबाज़ में सिल दी
कुछ यूं पिता ने अपने हिस्से की मिल्कियत मेरे नाम कर दी

©Atul singh #holdmyhand
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Atul singh

अब उनके शौख-ए-कत्ल को किस तरह संभाला जाए
कि आइना भी न टूटे और रोज़ एक पत्थर भी मारा जाए

©Atul singh #Nature
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