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madanmohanthakur5684
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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

अधुरी चाहतें अधुरा सा इल्जाम हो जाता है! जब हकीकत वयान होता है,शाम हो जाता है!!

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

बहुधा देखा, नियमों का होता क्रंदन।
सीमाओं से बंधा-बंधा आता नहीं विवेक।
नियमों के जाले में घुटन हुआ अतिरेक।
चला जो सीधी रेखा में, बदला नहीं कर्म का लेख।
परिवर्तन की जो प्रिय, प्रबल चाह हो।
जीवन बहे उन्मुक्त, ऐसा कर लो प्रबंधन।।

जाना भी, जीवन का वह लिखित अध्याय नहीं।
पथ पर जहां से बहता कल-कल जीवन।
श्रद्धेय पुष्प खिलते है, कलरव नित नव नूतन।
किंचित का हो उपसंहार, नवीन का हो आवर्तन।
दुविधा को त्याज्य भी दो, शीतल जो प्रवाह हो।
नहीं रहो नियमों से अवरुद्ध, ऐसा कर लो प्रबंधन।।

बहुधा लालायित जो मन हो, इसके रास को खींचो।
पथ पर जो हो परिवर्तन का दौर, नहीं आँख को मीचो।
नियम को छोड़ो भी, नहीं ऐसे ही बात बनाओ।
पथ पर हो मानव, तुम तो अपना कर्तव्य निभाओ।
तुमको तो बस रहना सतेज, कंटक से अटे राह हो।
अतिशय की आकांक्षा क्यों? ऐसा कर लो प्रबंधन।।

क्रुद्ध नहीं हो निज स्वभाव से, खुद को तो बदलो।
कहीं दुविधा की लहरों पर, नहीं कदम बढाओ।
पथ का कर्तव्य भी समझो, कहीं नियमों में न बंध जाओ।
कठिन जो हो निर्णय, तुम स्वविवेक जगाओ।
कर लो वह कर्तव्य, जिससे तेरा निर्वाह हो।
अपने भ्रम के भाव तेज भी दो, ऐसा कर लो प्रबंधन।।

बहुधा देखा बने हुए उन नियमों को, जो है लिखित।
जीवन से होकर दूर, संशय को साथ लिए है।
दुविधा के रस लेपित, कुछ विस्मय बात लिए है।
कठिन है बात, अँधियारे के संग अंधेरी रात लिए है।
तुम तो बस निर्णय कर लो रुकने को, जहां छाँव हो।
परिमेय बनकर हो गुणा भाग, ऐसा कर लो प्रबंधन।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) जीवन का अनुभव
#clearsky  __Aadi__ Ashif Guda kiran kee kalam se Aarchi Advani Saini

जीवन का अनुभव #clearsky __Aadi__ Ashif Guda kiran kee kalam se Aarchi Advani Saini #कविता

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

वह बचा हुआ अधिशेष, भाव मुक्त।
कहीं नहीं था छाया में लिपटे भ्रम के।
फिर तपता क्योंकर मनोभाव।
जीवन के मूर्धन्य भाव का सीखा था दाव।
अतिरेक द्वंद्व का भूला दिया था कब का।
फिर पथ पर अटपटा हुआ, डालूं कहां पड़ाव।।

अधिकांश हृदय का मोह, भ्रमित नहीं था।
चरित को कब से चरितार्थ भी कर के देखा।
भ्रम का फिर वह भाव-भंगिमा, बनी मेंखला।
किस्मत का मचा है खेल, नहीं बदली हाथों की रेखा।
जीवन के रंगमंच, कर्तव्य निभा दिया था कब का।
आहट शांत हो सुनने को, नहीं रखा कोई छिपाव।।

कब का बदल दिया था, जो छवि पटल पर था।
मैं शांत हो पथ पर बढता था, धुंध आने से पहले।
मन उपवन का वह शांत शीतल तो होता भाव।
काश: कि निर्णय कर लेता, बोझ उठाने से पहले।
अतिशय की आकांक्षा, कहीं फल बने नहीं पराभव का।
उन्मुक्त हुआ जो घातक होगा, मन का तेज बहाव।।

ज्ञान का दीप, प्रज्वलित तो कर भी लेता।
द्वंद्व का नहीं होता प्रबल वेग, नहीं होता कोई समास।
काश कि जीवन रस का आनंद, ले पाता मधुर-मिठास।
कहीं तो बच भी जाता, नहीं चखता तिक्त खटास।
जो खुद को भान भी होता, अपने किए करतब का।
अतिरेक समय का, पथ पर आगे कई घुमाव।।

बचे हुए अधिशेष की आशा, भ्रम के दामन में।
किंचित उचित नहीं था, सुधा नीर मिल जाने पर भी।
प्रति छाया का मोह, निर्मल छवि बनाने पर भी।
अहो! अशांत की छाया, शांति को पाने पर भी।
मचा खींचतान का ध्वनि, भ्रमित स्वर कलरव का।
भाव-भंगिमा का हो भंडारण, जो लिखने लगूं किताब।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) जीवन
#patience  Rakesh Srivastava Amaanat ANURAG SINGH  Aknur Nur SHANU KI सरगम

जीवन #patience Rakesh Srivastava Amaanat ANURAG SINGH Aknur Nur SHANU KI सरगम #कविता

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

मन रिक्त का भाव नहीं पालो।
जीवन वन उपवन गुंजित है।
मधुकर भ्रमर के सुन्दर कलरव से।
भाव भंगिमा का भाव भी बदलो।
तिक्त रस की धारा पीने से बच लो।
पथ पर कंटक है, खुद को जरा संभालो।।

वह दुविधा से सिंचित फल मधुर न होगा।
मन के सभागार में द्वंद्व कौरव सा है।
कुरुक्षेत्र में फिर तो रण भीषण होगा।
अभी संभल लो, फिर कहीं मिले नहीं मौका।
विजय स्वभाव के रथ पर तो चढ लो।
अभी समय है, जीवन के संगीत सजा लो।।

आहत मत हो, अभिमान का प्रहार जो होगा।
इच्छाएँ अति वेगवान है, इसके रास को खींचो।
अँधियारी रातों में पथ पर ऐसे नहीं आँखें मीचो।
उच्चारित है ध्वनि, जो कर्ता का है कर्तव्य।
अभी समय है, रातें आने से पहले बढ लो।
मिले जीत जो इच्छित है, ऐसे ही भाव जगा लो।।

नहीं मान का-नहीं अपमान का, किंचित भान नहीं हो।
जीवन है, पथ पर हो तुम, इसका अभिमान नहीं हो।
अतिशय के भ्रम जाल में फंस कर, वे-ध्यान नहीं हो।
आखिर के परिणाम से जीवन, तुम अंजान नहीं हो।
उचित यही होगा, आगे बढने को सही सा पथ लो।
इच्छित अपनी करने को, अपने ज्ञान जगा लो।।

रिक्त भाव है संशय का, तुम इससे अंतर रख लो।
जीवन का स्वभाव सुधा सा, तुम इसको तो चख लो।
फिर होने को जो होगा, तुम निश्चय पथ पर बढ लो।
अहो! जीवन का सत्य, इसको आज परख लो।
साहस का वह विजित धनुष, हाथ में अपने धर लो।
आहट समझो जीवन का, तुम अपना धर्म निभा लो।।च

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) #khwaab
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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

परिधि जीवन के उन्मुक्त भाव का।
सागर सी लहरे भी उठते जाते।
पथिक पथ पर ही-है, होती है बातें।
उन्मत सी फिर है संशय की रातें।
अरी लुभावनी जीवन, तू संग तो आ।
मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।।

माना कि हारे का हरि नाम नियम है।
द्वंद्व का हृदय में तनिक भाव नहीं पालूं।
तू थोड़ा आगे बढ ले, मैं तो गले लगा लूं।
तू जीवन मेरा, तुमको मन मीत बना लूं।
अरी मन भावन जीवन, तू थोड़ा मुसका।
मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।।

है निशा काल अभी, होगी उषा काल की आहट।
जीवन मैं टूटे छंदों का कर लूं थोड़ा सा मंथन।
अंधियारी रात के आँचल में दूर-दूर है निर्जन।
अभिलाषा के कोमल कपोल को करने दे तू सिंचन।
अरी मन भावन जीवन, तू नहीं ऐसे बात बना।
मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।

अंतर मन का भाव यही, है खुद को जानना बाकी।
आएगा नव प्रभात, सूर्य उदित होने को।
फिर क्यों विकल बनूं, नयनों से रोने को।
पथ पर यूं तो नहीं हूं, व्यर्थ के दुविधा ढोने को।
अरी मन भावन जीवन, तू मन के चिन्ता नहीं बढा।
मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।।

जीवन का उन्मुक्त भाव, कहूं तो वृत लिए है फैला।
किंचित सुविधा की खातिर, जो है अधिक विषैला।
मंजिल तक जाना ही तो है, है अभी रात की वेला।
लालच के बांहूपाश से, क्यों करूं मैं मन को मैला?
अरी मन भावन जीवन, तू नहीं व्यर्थ की छवि दिखा।
मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) जीवन परिधि

#writing  sapno ki aawaz ✔️ Aarchi Advani Saini

जीवन परिधि #writing sapno ki aawaz ✔️ Aarchi Advani Saini #कविता

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

सत्य के जीत का उत्सव

वैभव तो निराधार नहीं था।
जीते हुए विशेष रण का।
जीवन के क्षणिकाओं का सार।
वह अतुल ऐश्वर्य लिये गए उस प्रण का।
मुल भाव जो हो, है विस्मित करने बाला।
वह वीर, जीवन का रण लड़ने बाला।।

निशा काल के अंधकार को चीर कर।
उसने पथ पर तेजमयी आभाएँ ले आया।
कुंठित मन की दुविधाओं को मारा ।
मानव हो मानवता का दीप जलाया।
अहंकार को भस्म किया, आगे बढने बाला।
वह वीर अजेय, किंचित नहीं है डरने बाला।।

ऊहापोह की बात टली, चमत्कार दिखलाया।
रण दुर्गम था, उसने निर्धारित कर्तव्य निभाया।
अंधकार के हृदय पर, उसने ही प्रकाश फैलाया।
वह समर वीर बना धीर, रण जीतकर आया।
जीवन के सुधा सरोवर से, गगरी है भरने बाला।
अथाह अंधकार से, वही है पार उतरने बाला।।

शोभित वह अलंकार, वैभव की माला से।
जीवन का इच्छित भाव उद्दीप्त करेगा।
अंधकार पर विजय हुआ, अब तो बात कहेगा।
जीत लिया है रण, अब तो सही हालात कहेगा।
अनुचित का मोह नहीं, नहीं वह लोभ है करने बाला।
जीवन के उपमाओं से, शृंगार है करने बाला।।

वह वैभव, जीत का गुंजित होता स्वर।
अंधकार पर मानव स्वभाव के जय का।
अनुचित पर सत्य के निर्मल भाव विजय का।
जीवन के सुस्वर कलरव होते हुए लय का।
प्रण मानव का निर्मल, यही हर बार है करने बाला।
उचित जो मानव के लिए, व्यवहार है करने बाला।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
  जीवन

#selflove  उमेश  Ashif Guda sapno ki aawaz ✔️ VED PRAKASH 73 Aarchi Advani Saini

जीवन #selflove उमेश Ashif Guda sapno ki aawaz ✔️ VED PRAKASH 73 Aarchi Advani Saini #कविता

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

सत्य के जीत का उत्सव

वैभव तो निराधार नहीं था।
जीते हुए विशेष रण का।
जीवन के क्षणिकाओं का सार।
वह अतुल ऐश्वर्य लिये गए उस प्रण का।
मुल भाव जो हो, है विस्मित करने बाला।
वह वीर, जीवन का रण लड़ने बाला।।

निशा काल के अंधकार को चीर कर।
उसने पथ पर तेजमयी आभाएँ ले आया।
कुंठित मन की दुविधाओं को मारा ।
मानव हो मानवता का दीप जलाया।
अहंकार को भस्म किया, आगे बढने बाला।
वह वीर अजेय, किंचित नहीं है डरने बाला।।

ऊहापोह की बात टली, चमत्कार दिखलाया।
रण दुर्गम था, उसने निर्धारित कर्तव्य निभाया।
अंधकार के हृदय पर, उसने ही प्रकाश फैलाया।
वह समर वीर बना धीर, रण जीतकर आया।
जीवन के सुधा सरोवर से, गगरी है भरने बाला।
अथाह अंधकार से, वही है पार उतरने बाला।।

शोभित वह अलंकार, वैभव की माला से।
जीवन का इच्छित भाव उद्दीप्त करेगा।
अंधकार पर विजय हुआ, अब तो बात कहेगा।
जीत लिया है रण, अब तो सही हालात कहेगा।
अनुचित का मोह नहीं, नहीं वह लोभ है करने बाला।
जीवन के उपमाओं से, शृंगार है करने बाला।।

वह वैभव, जीत का गुंजित होता स्वर।
अंधकार पर मानव स्वभाव के जय का।
अनुचित पर सत्य के निर्मल भाव विजय का।
जीवन के सुस्वर कलरव होते हुए लय का।
प्रण मानव का निर्मल, यही हर बार है करने बाला।
उचित जो मानव के लिए, व्यवहार है करने बाला।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) जीवन

#selflove  उमेश  Ashif Guda sapno ki aawaz ✔️ VED PRAKASH 73 Aarchi Advani Saini

जीवन #selflove उमेश Ashif Guda sapno ki aawaz ✔️ VED PRAKASH 73 Aarchi Advani Saini #कविता

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

८ पथ पर बढते वीरों का सिंहनाद




पथ पर बढते वीरों का सिंहनाद।
मातृ भूमि के पथ पर बढता जाता वीर।
घोर गर्जना करता केसरी बनकर।
रण वांकूरा, रण में लड़ने को हुआ अधिरथ।
अभिलाषा लेकर मन में, अपने शीश चढाऊँ।
जननी-जन्मभूमि के चरणों में बलिदान हो जाऊँ।।

वीर हुआ अधीर, गर्जना कर रहा हिंद की सेना।
प्रबल चाहना, दुश्मन को नतमस्तक कर डारे।
सीमाओं पर खड़ा अडिग, वैरी की भुजा उखाड़े।
तत्पर होकर रण भूमि में, दुश्मन को आज पछाड़े।
अचल हौसला लेकर सारथी, रण भूमि को दौड़ा।
जननी-जन्म भूमि के चरणों में नहीं प्रेम था थोरा।।

वह सिंहनाद, गुंजित नभ में अट्टहास वीरों का।
अतुल्य शौर्य की प्रतिमा ,जो नहीं किसी से हारा।
जिसका धर्म राष्ट्र प्रेम था, पोषित था इसी के द्वारा।
जख्मी होने पर भी वीरों ने, एक ने दस-दस को मारा।
अतुल्य रथी थे रण के, मातृ भूमि पर अपने लहू बहाए।
अमर वीर बलिदानी थे, लौट कभी नहीं आए।।

भारत के रज-कण का चंदन लेकर माथे पर।
दे रहे थे अदम्य वीर, हर-हर महादेव के नारे।
चपल-तुरंग सेना हिन्द के, थे आँखों के तारे।
तत्पर होकर रण में दौड़े, वैरी को मर्दित कर डारे।
गुंजित पथ है वीरों के रस से, जयघोष हो रहा।
मातृ भूमि के लिए, वीरों के हृदय कुंज में रोष हो रहा।।

वीरों का पथ, शौर्य पुष्प से अक्षादित हुआ है कैसे?
शोभित हो इंदु हार मणि चढे, मधु लता के जैसे।
पथ पर बढ चला हिन्द की सेना, तांडव मय लय से।
दुश्मन के दल कांप उठे थरथर ,होते मन में भय से।
वीरों का श्रृंगार किए वीर, वैरी का मद-मर्दन करने को।
पथ पर कदम बढाते सारथी, भीषण रण करने को।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) Desh prem

#BookLife  Ashif Guda sapno ki aawaz ✔️ Rakesh Srivastava

Desh prem #BookLife Ashif Guda sapno ki aawaz ✔️ Rakesh Srivastava #कविता

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

अमर बलिदानी के पथ का।
अविचल अभिमानी के पथ का।
जो वीर धीर थे, राष्ट्र धर्म के ध्वज के।
इस भूमि के रज-कण से रहते थे सज के।
वह बीता पुरुषार्थ ,आओ आज बताऊँ।
रण वांकूरा वीर शिवाजी ,उनकी कथा सुनाऊँ।।

महलों के सुख-वैभव को, त्यागा था पल में।
घास की रोटी बना-बना कर, खाता था जंगल में।
जिससे लड़ने बाला और नहीं था, नभ, जल और थल में।
जिसे देखकर भय होता था, शत्रुओं के दल में।
वह बीता चरितार्थ, आओ तो आज दिखाऊँ।
रण वांकूरा राना प्रताप थे, उनकी कथा सुनाऊँ।

भारत के चरणों में सिर रख, बलिदान हुए बलिदानी।
अस्सी का उम्र हुआ था, अभी तो चढा जवानी।
वीर अजेय था रण भूमि में, लिखी है अमर कहानी।
बीते लमहों के पन्नों पर अंकित है, उसने हार न मानी।
रणभूमि में बना शेर, आओ उनका चरितार्थ सुनाऊँ।
रण वांकूरा वीर कुंअर थे, उनकी कथा सुनाऊँ।।

झांसी के महलों की बीती गाथा, अंकित है कब से।
वह रानी थी वीर अति, वह खुब लड़ी मर्दानी।
अंग्रेजों को लहू-लूहान कर, लिख दी अमर कहानी।
वीर भाव का लिए दिव्य ज्योत्सना, झांसी बाली रानी।
दुश्मन का मद मर्दित कर बैठी थी, उनकी बात बताऊँ।
रण वांकूरा थी झांसी की रानी, उनकी कथा सुनाऊँ।।

यह धरा भूमि है वीरों की, लाखों ही बलिदान हुए।
सूर्य कोटि सी प्रभा लिए वह लाल राष्ट्र के थे।
शहीद हुए जो बली वेदी पर, कर्मवीर कमाल के थे।
इस भूमि पर न्योछावर हो गए, ढाल राष्ट्र के थे।
अमर कहानी-सुनी जुबानी, तुमको याद कराऊँ।
राष्ट्रप्रेम की लिए शुभ्र ज्योत्सना, उनकी कथा सुनाऊँ।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) राष्ट्र प्रेम की चोटी

#hills  pooja rani Writer kavi Gautam  उमेश  RRatnesh indori Madhu Chauhan✍️

राष्ट्र प्रेम की चोटी #hills pooja rani Writer kavi Gautam उमेश RRatnesh indori Madhu Chauhan✍️ #कविता

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

उमंग हृदय के लेकर,
हर्ष के फूल से भरी टोकरी।
मैं भी तन्मय हूं उल्हास रंग में। 
तुम भी हर्षित हो, पर्व संग में।

मकर संक्रांति एवं  लोहड़ी पर्व की आपको ढेरों बधाइयाँ

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) संक्रांति पर्व एवं 

#Lohri की ढेरों बधाइयाँ angelrai07 उमेश

संक्रांति पर्व एवं #Lohri की ढेरों बधाइयाँ angelrai07 उमेश #शायरी

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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)

चिर आनंद हो उपवन का।
सुधा सरस सी धारा बहती हो।
गुंजित होता हो मधुकर के कलरव से।
सुन्दर सा उपवन, चंदन से लेपित हो।
तनिक प्रहर बीते, मैं शांति मन की पा लूं।
हे कोकिल तुम बोलो, कहां पड़ाव मैं डालूं?

जगमग करते निशा रात्रि में तारे। 
फलक पर चंद्रमा, शीतल हो प्यारे।
हृदय की तृष्णा, नहीं कठिन वेदना मारे।
नहीं दुसह व्यंजना विकल हो मुझे पुकारे।
तनिक प्रहर बीते, बैठ वहां सुस्ता लूं।
हे कोकिल तुम बोलो, कहां पड़ाव मैं डालूं?

अंगार हृदय में नहीं सुलगे, ऐसा निर्जन वन हो।
शांति की आभा लिये, मधुमय सा उपवन हो।
होता जहां मानवता और मानव का मन हो।
मैं झोलियां भर लूं, जीवन का जहां पे धन हो।
तनिक प्रहर बीते, गीत मैं जीवन तेरे गा लूं।
हे कोकिल तुम बोलो, कहां पड़ाव मैं डालूं?

आशा-प्रत्यासा से अलग कुंज हो निर्मल।
जहां समीर नहीं वेगवान हो, मन हो जाए निश्चल।
नहीं जहां पर खेल अलग हो, हो नहीं कोई हलचल।
चिर एकांत उस उपवन ने पहना हो जैसे वल्कल।
तनिक प्रहर बीते, मैं अपने स्वभाव जगा लूं।
हे कोकिल तुम बोलो, कहां पड़ाव मैं डालूं?

अभिलाषा मन की, कोकिल तुमको बतलाऊँ।
तुम बतलाओ वह उपवन, जहां आनंद को पाऊँ।
जीवन जहां लहरे लेती हो, मैं भी गोता खाऊँ।
होने को है संध्याकाल भ्रम का अब, दो पल को सुस्ताऊँ।
तनिक प्रहर बीते, मैं जीवन के संग धुनी रमा लूं।
हे कोकिल तुम बोलो, कहां पड़ाव मैं डालूं?

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) जीवन का उद्देश्य

#worldhindiday  Writer kavi Gautam  Rakesh Srivastava ajay thakur  Amaanat ANURAG SINGH

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