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दीपक शुक्ला

मृत्यु निश्चित है,जानते सब है,मानता कोई नहीं!!

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दीपक शुक्ला

क्षमा याचना
क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी।

जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,
टूटे सपनों को जोड़ेंगे।
चिताभस्म की चिंगारी से,
अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे
 
✍️___अटल बिहारी वाजपेयी

©दीपक शुक्ला #TakeMeToTheMoon
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दीपक शुक्ला

सर से चादर बदन से क़बा ले गई
ज़िन्दगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई

मेरी मुठ्ठी में सूखे हुये फूल हैं
ख़ुशबुओं को उड़ा कर हवा ले गई

मैं समुंदर के सीने में चट्टान था
रात एक मौज आई बहा ले गई

हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुये
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई

चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई

मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूस है
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई

✍️___बशीर बद्र साहब

©दीपक शुक्ला #DearCousins
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दीपक शुक्ला

भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान
देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान
किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर
जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं 'कायर'
कहँ 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला
दो घंटे में लिख डाली, पूरी 'मधुशाला'

भेदभाव से मुक्त यह, क्या ऊँचा क्या नीच
अहिरावण पीता इसे, पीता था मारीच
पीता था मारीच, स्वर्ण- मृग रूप बनाया
पीकर के रावण सीता जी को हर लाया
कहँ 'काका' कविराय, सुरा की करो न निंदा
मधु पीकर के मेघनाद पहुँचा किष्किंधा

ठेला हो या जीप हो, अथवा मोटरकार
ठर्रा पीकर छोड़ दो, अस्सी की रफ़्तार
अस्सी की रफ़्तार, नशे में पुण्य कमाओ
जो आगे आ जाये, स्वर्ग उसको पहुँचाओ
पकड़ें यदि सार्जेंट, सिपाही ड्यूटी वाले
लुढ़का दो उनके भी मुँह में, दो चार पियाले

पूरी बोतल गटकिये, होय ब्रह्म का ज्ञान
नाली की बू, इत्र की खुशबू एक समान
खुशबू एक समान, लड़्खड़ाती जब जिह्वा
'डिब्बा' कहना चाहें, निकले मुँह से 'दिब्बा'
कहँ 'काका' कविराय, अर्ध-उन्मीलित अँखियाँ
मुँह से बहती लार, भिनभिनाती हैं मखियाँ

प्रेम-वासना रोग में, सुरा रहे अनुकूल
सैंडिल-चप्पल-जूतियां, लगतीं जैसे फूल
लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये सिर की
बुद्धि शुद्ध हो जाये, खुले अक्कल की खिड़की
प्रजातंत्र में बिता रहे क्यों जीवन फ़ीका
बनो 'पियक्कड़चंद', स्वाद लो आज़ादी का

एक बार मद्रास में देखा जोश-ख़रोश
बीस पियक्कड़ मर गये, तीस हुये बेहोश
तीस हुये बेहोश, दवा दी जाने कैसी
वे भी सब मर गये, दवाई हो तो ऐसी
चीफ़ सिविल सर्जन ने केस कर दिया डिसमिस
पोस्ट मार्टम हुआ, पेट में निकली 'वार्निश'

~ सुरा समर्थन / काका हाथरसी - काका हाथरसी

©दीपक शुक्ला #paper
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दीपक शुक्ला

पूछो


विफल प्रयत्न हुए सारे, 
मैं हारी, निष्ठुरता जीती।
अरे न पूछो, कह न सकूँगी, 
तुमसे मैं अपनी बीती॥

नहीं मानते हो तो जा 
उन मुकुलित कलियों से पूछो।
अथवा विरह विकल घायल सी
भ्रमरावलियों से पूछो॥

जो माली के निठुर करों से 
असमय में दी गईं मरोड़।
जिनका जर्जर हृदय विकल है, 
प्रेमी मधुप-वृंद को छोड़॥

सिंधु-प्रेयसी सरिता से तुम 
जाके पूछो मेरा हाल।
जिसे मिलन-पथ पर रोका हो, 
कहीं किसी ने बाधा डाल॥

___ सुभद्राकुमारीचौहान

©दीपक शुक्ला #AWritersStory
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दीपक शुक्ला

ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे
ज़िन्दगी तेरे आस पास रहे

चाँद इन बदलियों से निकलेगा
कोई आयेगा दिल को आस रहे

हम मुहब्बत के फूल हैं शायद
कोई काँटा भी आस पास रहे

मेरे सीने में इस तरह बस जा
मेरी सांसों में तेरी बास रहे

आज हम सब के साथ ख़ूब हँसे
और फिर देर तक उदास रहे

 __बशीर बद्र

©दीपक शुक्ला #SuperBloodMoon
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दीपक शुक्ला

#5LinePoetry हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा 
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा 

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से 
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा 

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे 
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा 

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे 
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा 

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर 
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा

✍️____ निदा फ़ाज़ली

©दीपक शुक्ला #5LinePoetry
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दीपक शुक्ला

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में 
मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग 

रोज़ मैं चांद बन के आता हूँ
दिन में सूरज सा जगमगाता हूँ 

खनखनाता हूँ माँ के गहनों में
हँसता रहता हूँ छुप के बहनों में 

मैं ही मज़दूर के पसीने में
मैं ही बरसात के महीने में 

मेरी तस्वीर आँख का आँसू
मेरी तहरीर जिस्म का जादू 

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में 
मुझको पहचानते नहीं जब लोग 

मैं ज़मीनों को बे-ज़िया करके 
आसमानों में लौट जाता हूँ 

मैं ख़ुदा बन के क़हर ढाता हूँ 

 - निदा फ़ाज़ली

©दीपक शुक्ला #WalkingInWoods
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दीपक शुक्ला

इस तरह मौसम बदलता है बताओ क्या करें 
शाम को सूरज निकलता है बताओ क्या करें 
यह शहर वो है कि जिसमें आदमी को देखकर 
आइना चेहरे बदलता है बताओ क्या करें 
आदतें मेरी किसी के होंठ कि मुस्कान थीं 
अब इन्हीं से जी दहलता है बताओ क्या करें 
दिल जिसे हर बात में हँसने कि आदत थी कभी 
अब वो मुश्किल से बहलता है बताओ क्या करें 
इस तरह पथरा गयीं आँखें कि इनको देखकर 
एक पत्थर भी पिघलता है है बताओ क्या करें 
ले रहा है एक नन्हा दिया मेरा इम्तहान 
हवा के रुख पर सफलता है बताओ क्या करें 
दोस्त मुझको देखकर विगलित हुए तो सह्य था 
दुश्मनों का दिल बदलता है बताओ क्या करें

✍️______अमरनाथ श्रीवास्तव

©दीपक शुक्ला #Hopeless
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दीपक शुक्ला

बीमार को मरज की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूं, पिला देनी चाहिए

अल्लाह बरकतों से नवाजेगा इश्क़ में
है जितनी पूंजी पास लगा देनी चाहिए

ये दिल किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए

मैं ताज हूं तो सर पे सजाएं लोग
मैं ख़्वाब हूं तो ख़्वाब उड़ा देनी चाहिए

सौदा यहीं पर होता है हिन्दुस्तान का
संसद भवन को आग लगा देनी चाहिए
✍️ ____राहत इंदौरी साहब

©दीपक शुक्ला #Smile
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दीपक शुक्ला

एक दिन पाँओं तले धरती न होगी!


याद आती है मुझे तुमने रहा था, 
एक दिन पाँओं तले धरती न होगी!
जग कहेगा गीत ये जीवन भरे हैं, 
ज़िन्दगी इन स्वरों में बँधती न होगी!

आज पाँओं के तले धरती नहीं है, 
दूर हूँ मैं एक चिर-निर्वासिता-सी, 
काल के इस शून्य रेगिस्तान पथ पर, 
चल रही हूँ तरल मधु के कण लुटाती!

उन स्वरों के गीत जो सुख ने न गाये, 
स्वर्ग सपनों की नहीं जो गोद खेले, 
हलचलों से दूर अपने विजन पथ पर
छेड़ना मत विश्व, गाने दो अकेले!

कहां इंसां को मिला है वह हृदय, 
जिसको कभी भी कामना छलती न होगी
याद फिर आई मुझे तुमने कहा था, 
एकदिन पाँओं तले धरती न होगी

✍️______प्रतिभा सक्सेना

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