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vasundharapandey9754
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vasundhara pandey

प्रसन्नता के सरल नियम न अपेक्षा, न उपेक्षा, न प्रतीक्षा, न तितिक्षा... बस सटीक समीक्षा😇 ✍🏻वसुन्धरा

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vasundhara pandey

नहीं चाहती मैं कोई जीत वो
जिसमें तू ना मिले
कोई भी रीत हो
मुझे चाहिए हारकर भी तू ही 
हाथ से तू मेरी मांग भरता रहे 
सफ़र उम्र भर का सहारे यूं ही
तेरे कांधे से लगके गुजरता रहे

©vasundhara pandey
   नहीं चाहती मैं कोई जीत वो
जिसमें तू ना मिले
कोई भी रीत हो
मुझे चाहिए हारकर भी तू ही 
हाथ से तू मेरी मांग भरता रहे 
सफ़र उम्र भर का सहारे यूं ही
तेरे कांधे से लगके गुजरता रहे
चरण चरण धो धो पियूँ

नहीं चाहती मैं कोई जीत वो जिसमें तू ना मिले कोई भी रीत हो मुझे चाहिए हारकर भी तू ही हाथ से तू मेरी मांग भरता रहे सफ़र उम्र भर का सहारे यूं ही तेरे कांधे से लगके गुजरता रहे चरण चरण धो धो पियूँ #कविता #eternallove

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vasundhara pandey

इन हाथों में हो ‌‍‍‌गंगा का अर्घ्य कलश
तेरे शीश गंग की धारा हो
हे भूतों के कालपुरुष!
हर स्वर्ग नरक बस यही नज़ारा हो

©vasundhara pandey
  इन हाथों में हो गंगा का अर्घ्य कलश
तेरे शीश गंग की धारा हो 
हे भूतों के कालपुरुष!
हर स्वर्ग नरक बस यही नज़ारा हो 🙏

इन हाथों में हो गंगा का अर्घ्य कलश तेरे शीश गंग की धारा हो हे भूतों के कालपुरुष! हर स्वर्ग नरक बस यही नज़ारा हो 🙏 #विचार

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vasundhara pandey

बहुत  हुआ  तुम्हारी  अनुपस्थितियों  से  प्रेम
अब  मुझे  प्रीत  में  तुम्हारी  सम्मति  चाहिये

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vasundhara pandey

आखिर मैं ही तो मर्यादा हूँ कुल का ऊँचा माथा हूँ
बेटे तो बस नाटक हैं बिन कुण्डी के फाटक हैं

  "वो चाहते हैं "

और वो चाहते हैं मैं मुस्कुराती रहूँ
गौरैया सी फुदकती रहूँ
शिकायत क्या होती है इन होठों को पता भी न हो
अधिकारों को त्याग कर
एक सुशील और आदर्श कन्या कहलाती रहूँ
वो चाहते हैं मैं मुस्कुराती रहूँ

"वो चाहते हैं " और वो चाहते हैं मैं मुस्कुराती रहूँ गौरैया सी फुदकती रहूँ शिकायत क्या होती है इन होठों को पता भी न हो अधिकारों को त्याग कर एक सुशील और आदर्श कन्या कहलाती रहूँ वो चाहते हैं मैं मुस्कुराती रहूँ

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vasundhara pandey

जिस तरह तुम मुझे नज़रअंदाज़ कर पाते हो
हुनर क्या खूब है साहिल किनारे दूर लाते हो

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vasundhara pandey

बेवफाई भी तो कितनी सच्ची है सनम की

टीस कितनी भी हो दिल में, होठों की हँसी नहीं जाती! 
 हुये तुमसे कभी जो मुख्तलिफ तो लफ्ज़ ठहरेंगे
बिना देखे निगाहों से ज़ख्म सब बोल जायेंगे
भूलकर तुम कभी जो गलियां आये कभी दिलबर
इस टीस से तुमको यूँ ही अनजान रखेंगे....


कल्पनाओं का एक ख्याल!

हुये तुमसे कभी जो मुख्तलिफ तो लफ्ज़ ठहरेंगे बिना देखे निगाहों से ज़ख्म सब बोल जायेंगे भूलकर तुम कभी जो गलियां आये कभी दिलबर इस टीस से तुमको यूँ ही अनजान रखेंगे.... कल्पनाओं का एक ख्याल!

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vasundhara pandey

 तुम कहीं भी हो मैं बस तुम्हारी! तुम कहीं भी हो मैं बस तुम्हारी
वो समर्पण तब और था ये समर्पण अब बढ़ के है
प्रीत की बाती के पी दीप अब बढ़ के हैं
धीर तुम मौन हो किन्तु शक्ति के तुम श्रोत हो
कुछ न कहो अनंत तक मैं रहूंगी बस तुम्हारी
तुमने देखे होंगे समर्पण न कितने जल बिंदु अर्पण 
एक से दूजे की ओर मुख मोड़ते अगणित दर्पण
किन्तु यहाँ अचिंत्य या कि चेतना में समर्पण

तुम कहीं भी हो मैं बस तुम्हारी वो समर्पण तब और था ये समर्पण अब बढ़ के है प्रीत की बाती के पी दीप अब बढ़ के हैं धीर तुम मौन हो किन्तु शक्ति के तुम श्रोत हो कुछ न कहो अनंत तक मैं रहूंगी बस तुम्हारी तुमने देखे होंगे समर्पण न कितने जल बिंदु अर्पण एक से दूजे की ओर मुख मोड़ते अगणित दर्पण किन्तु यहाँ अचिंत्य या कि चेतना में समर्पण

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vasundhara pandey

कितना भी कर ले कोई चाँद से इश्क
रात के नसीब में अंधियारे ही  लिखे हैं

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vasundhara pandey

संताप करने का भी तो कोई औचित्य नहीं 
संताप को भी तो अनिवार्यता होगी जीवन के आभास की

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vasundhara pandey

चाँद तो हर रोज़ ही आता है आसमान में
बस तन्हाई तो नसीब है हमारा....

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