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khanfahadrizwan2882
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Khan Fahad Rizwan

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Khan Fahad Rizwan

वादा-ए-इश्क़ दाइमी है तो फिर
कैसे कह दूं तुझे हयात अपनी? दाइमी - immortal, अमर
हयात - life, ज़िन्दगी

दाइमी - immortal, अमर हयात - life, ज़िन्दगी

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Khan Fahad Rizwan

तिश्नगी है कि बढ़ती जा रही है तीरगी अलग ज़ुल्म ढा रही है मेरे सुतून-ए-हवास को तेरी याद किसी दीमक की तरह खा रही है तेरी यादें और उस पर तन्हाई बारी बारी से खूँ जला रही है

तिश्नगी है कि बढ़ती जा रही है तीरगी अलग ज़ुल्म ढा रही है मेरे सुतून-ए-हवास को तेरी याद किसी दीमक की तरह खा रही है तेरी यादें और उस पर तन्हाई बारी बारी से खूँ जला रही है

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Khan Fahad Rizwan

दिन में मुस्कान और रातों में ज़हर रखते हैं
अमाँ ! ये साँप हैं, दाँतों  में  ज़हर रखते  हैं
बड़े शीरीं सुख़न होते हैं सियाह क़ल्ब अक्सर
जो साफ दिल हैं वो  बातों में ज़हर रखते हैं  #gif #thesecondthought
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Khan Fahad Rizwan

मेरे हमनशीं बता दे यूं ज़ुबाँ से कुछ ना कहना यूं तेरा नज़र झुकाना मेरे हमनशीं बता दे क्या ये रस्म-ए-आशिक़ी है कभी तुझको पा के खोना कभी खो के तुझको पाना मेरे हमनशीं बता दे क्या ये रस्म-ए-आशिक़ी है तेरे शोख़ सुर्ख़ आरिज़, मेरे इन लबों की ज़द में यूँ हया से कांप जाना फिर सिमट के अपनी हद में

मेरे हमनशीं बता दे यूं ज़ुबाँ से कुछ ना कहना यूं तेरा नज़र झुकाना मेरे हमनशीं बता दे क्या ये रस्म-ए-आशिक़ी है कभी तुझको पा के खोना कभी खो के तुझको पाना मेरे हमनशीं बता दे क्या ये रस्म-ए-आशिक़ी है तेरे शोख़ सुर्ख़ आरिज़, मेरे इन लबों की ज़द में यूँ हया से कांप जाना फिर सिमट के अपनी हद में

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Khan Fahad Rizwan

सुबह की धूप के जैसी सुनहरी शाम सी लड़की
बड़ी ही ख़ास लगती है सुनो वो आम सी लड़की

वो हँसती है तो उसके संग मौसम खिलखिलाते हैं
जो ज़ुल्फें उसकी खुल जाएं तो घिर के अब्र आते हैं
है ज़हन-ओ-दिल पे तारी वो ख़ुमार-ए-जाम सी लड़की
बड़ी ही ख़ास लगती है सुनो वो आम सी लड़की

वो तन्हाई में ख़ुद से ख़ुद ही ऐसे बात करती है
जैसे सरगोशियाँ तितली गुलों के साथ करती है
कली सी शोख़ चंचल सी वफ़ा के नाम सी लड़की
बड़ी ही ख़ास लगती है सुनो वो आम सी लड़की

उसी पर रश्क करते हैं क़मर भी और सितारे भी
कि उसके हुस्न के आगे हैं फीके सब नज़ारे भी
परी सी या फ़रिश्ते सी वो एक गुमनाम सी लड़की
बड़ी ही ख़ास लगती है सुनो वो आम सी लड़की

सुबह की धूप के जैसी सुनहरी शाम सी लड़की... वो आम सी लड़की

#thesecondthought

वो आम सी लड़की #thesecondthought

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Khan Fahad Rizwan

मैं हर्फ़ हर्फ़ बिखरा
तू किताब सा मुसलसल
मेरी क़िस्त क़िस्त बाक़ी
तू बेहिसाब सा मुसलसल

मेरी प्यास प्यास सहरा
तू सराब सा मुसलसल
मेरा ख़ार ख़ार लहजा
तू गुलाब सा मुसलसल

मैं लम्हा लम्हा गर्दिश
तू शबाब सा मुसलसल
मेरा जिस्म जिस्म ज़ाहिर
तू हिजाब सा मुसलसल मैं और तू

मैं और तू

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Khan Fahad Rizwan

ख़्वाब का असली मतलब भी ताबीर के पीछे गुम जाता है,
तारीख़ों का सच  झूटी तक़रीर  के  पीछे  गुम  जाता  है
बड़ा तिलिस्मी  खेल  सियासत खेल  रही  है  आज  यहाँ,
''लाल क़िला'' भी  जिन्ना की तस्वीर के पीछे  गुम जाता है #AMU
#JINNAH
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Khan Fahad Rizwan

दुआ -ए- उम्र की तासीर समझ बैठा था,
राह की ख़ाक को जागीर समझ बैठा था
वो तो बस झूठ से तामीर कहानी निकला,
मैं जिसे ख़्वाब की ताबीर समझ बैठा था #thesecondthought

एक ग़लत फ़ैसला ज़िन्दगी को जहन्नुम बना सकता है, मगर फ़ैसला ग़लत है या सही ये बताएगा कौन??

#thesecondthought एक ग़लत फ़ैसला ज़िन्दगी को जहन्नुम बना सकता है, मगर फ़ैसला ग़लत है या सही ये बताएगा कौन??

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Khan Fahad Rizwan

जब तक ख़ुद पर ना पड़े तब तक हर एक मुसीबत और परेशानी बस महज़ एक अफ़वाह ही लगती है।

यही वजह है शायद कि हम सब ने झुठलाना सीख लिया है, और बैठे हुए हैं हम इंतेज़ार में, कि तब समझेंगे जब मुसीबत खुद हम पर पड़ेगी। अभी तो हम सेफ़ हैं। #justiceforasifa #justice_for_asifa
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Khan Fahad Rizwan

वो जो हफ्तों महीनों का दिलों का मेल होता है,
दिखावे इश्क़ के कर के जिस्म का खेल होता है..

मोहब्बत के चमन में अब तो बस सय्याद मिलते हैं,
गर शीरीं मिल भी जाये तो कहाँ फ़रहाद मिलते हैं..

जो पर्वत तोड़ कर के दूध की नदियाँ बहाती थी,
मोहब्बत वो थी जो शोलों का दरिया तैर जाती थी..

अलहदा  होने पर  अब  तो जश्न  की  रात  होती है,
कहाँ  अब  सात  जन्मों के  मिलन की  बात होती है..

अलग  तासीर  है  जैसे  तसल्ली  और  राहत  में,
बड़ा  इक  फ़र्क़  है  वैसे  मोहब्बत  और  चाहत  में..

हुई एक बार जिस  पर  ये इनायत, फिर  नही होती,
कि चाहत  होती रहती है, मोहब्बत  फिर  नही होती. सय्याद- शिकारी/hunter
शीरीं, फ़रहाद- बताने की ज़रूरत है क्या🤔🤔
अलहदा- अलग होना/apart/ मल्लब ब्रेकअप🙄
तासीर- असर/प्रभाव/effect

हाँ तो तमाम हम-सुख़न शायरों और क़ायरीन(रीडर्स) को मेरा सलाम,
अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर क्यों लिखा ये सब ?
मल्लब क्या ज़रूरत थी, बैठे बैठे पेट्रोल लगाने की?

सय्याद- शिकारी/hunter शीरीं, फ़रहाद- बताने की ज़रूरत है क्या🤔🤔 अलहदा- अलग होना/apart/ मल्लब ब्रेकअप🙄 तासीर- असर/प्रभाव/effect हाँ तो तमाम हम-सुख़न शायरों और क़ायरीन(रीडर्स) को मेरा सलाम, अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर क्यों लिखा ये सब ? मल्लब क्या ज़रूरत थी, बैठे बैठे पेट्रोल लगाने की? #Poetry

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