छवि सोहती है मिथिलेश की हमारी और,
मन मोहती है छवि करुनानिधान की।
प्रेम को प्रणाम सिया राम ने किया है आज,
प्रेम की ही विधियां हैं विधि के विधान की।
प्रेम से ही मेरे राम राम हो सके हैं और,
प्रेम से ही जान हो सकी है जान जान की।
माता जानकी ने वर लिए मेरे राघवेंद्र,
मेरे राघवेंद्र ने वरीं हैं माता जानकी। #poem
Ram bhadawar
:-अल्हड़ प्रमी, अंश- 2-:
तुम इस बसन्त में पतझड़ सी बिखती क्यों हो।
प्रेम भगवान है भगवान से डरती क्यों हो।।
जोड़ना नाम है तुमसे तुम्हीं से जोडूंगा।
तोड़ना पड़ गया तो फिर पिनाक तोडूंगा।।
आज फिर से विदेह के वचन निभाऊँगा।
जोड़कर हाथ परशुराम को मनाऊँगा।। #ramayan
पहले तो वादे यार दुलारे जाएंगे।
फिर मज़बूरी के पाँव पखारे जाएंगे।।
ये प्यार' है गिल्लो रानी कोई खेल नही।
इसमे कमजोर खिलाड़ी मारे जाएंगे।।
"भदावर"
#THROUGHTHEWALL