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mumtazahmedkhan6025
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Mumtaz Ahmed Khan

Farmer

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Mumtaz Ahmed Khan

जंगलों में रहने वाले जंगली इंसानों से!
शहरों में रहने वाले  वेहशी दरिंदों तक।
इंसान काफी सिविलाइज्ड  हो चुका है
तरक्की अपने उरूज पर है!
सदियों से ,बहते आए   सुर्ख  खून की रंगत!
अब और ज्यादा गहरी और काली हो चुकी है
 जिस्म को तलवार से काटा या तीर से छेदा नहीं जाता
बल्कि बमों से, या मिसाइल से ",उड़ा "दिया जाता है।
और दुनिया के सुसंस्कृत अमन पसंद लीडर!
अपनी शानदार बुलेट प्रूफ कारों के कारवान में!
शांति वार्ता में भाग लेने जा रहे हैं !
टेक्नोलॉजी काफी जदीद है!
सिसकते बिलखते नंगे भूखे बदहवास लोग!
जली हुई लाशें खून और बारूद की मिली जुली बदबू!
सायरन के शोर में दम तोड़ती चीखें!
मिसाइल अटैक! काले  स्याह धुएं में डूबता  शहर!
तबाह_   शुदा  इमारतों से झांकती लाशें!
युद्ध के मैदान से लाइव टेलीकास्ट !
कितना अपूर्व दृश्य है!
विश्व के सबसे बुद्धिमान पशु ने!
शायद अपने मनुष्य होने के उद्देश्य को प्राप्त कर लिया है!
शायद यह कहानी का आखिरी एपिसोड हो!
लगता नहीं कि बनाने वाले के पास!
 इसे जारी रखने का कोई कारण बचा है!

©Mumtaz Ahmed Khan #Goodevening
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Mumtaz Ahmed Khan

क्या खून के प्यासे हो ?
क्यों खून के प्यासे हो?
क्या राज्य बढ़ानाहे?
साम्राज्य बढ़ाना है?
करना है हुकूमत क्या?
क्या विश्व पे छाना हे?
क्या धर्म के रक्षक हो?
रक्षक हो या भक्षक हो?
क्या तुम को शिकायत है
क्यों तुम को शिकायत है
जो ढंग तुम्हारा है
वो ढंग नहीं मेरा।
जो रंग तुम्हारा है
वो रंग नहीं मेरा।
जो असल तुम्हारी है 
वह असल नहीं मेरी।
जो नस्ल तुम्हारी है
वह नस्ल नहीं मेरी!
 इस बात पर तुम इतने
नाराज हो क्या मुझसे!
क्या खून पियोगे तुम?
क्यों खून पियोगे तुम?
वह खून जमा है जो
वह खून जो काला है!
वह खून बसा है जो
बारूद की बदबू से!
वो खून जो जख्मों से
ना निकला !न  बह पाया!
वो खून जो ग़म अपना
अश्कों से न कह पाया!
जो दर्द की शिद्दत से
ख़ामोश न रह पाया!
वो खून जो बीवी का
सिंदूर न भर पाया!
वह  ख़ून जो बेटी का 
सेहरा न सजा पाया!
 वह खून की बूंदे जो
 मेहंदी ना रचा पाईँ!
वह खून जिसे मां की
दुआएं ना बचा पाईं!
वह खून पियोगे तुम!
क्या ख़ून पिओगे तुम?

©Mumtaz Ahmed Khan क्या ख़ून पिओगे तुम?

#darkness

क्या ख़ून पिओगे तुम? #darkness #शायरी

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Mumtaz Ahmed Khan

हिना  के रंग  सजाए हुए  हथेली  पर।      
बहारे हुस्न से मौसम को बेकरार किए।    
ये कोन आज मेरे दिल की राह से गुजरा।  
निगाहे नाज कोअफसाना_ए_बाहर किए!
               यह राह जीसत की इतनी नई-नई क्यों है?
                यह झिलमिलाती हुई शाम सुरमई क्यों है? 
                   यह क्यों सजे हैं सितारे जमीन के आंचल में?
           ये खुशबुओं में बसी रात चंपई क्यों है?
यह किसका अक्स है इन अजनबी बहारों में?  
यह किसका रूप है गुलपोश सब्ज़ा ज़ारो में?   
यह किसने मेहंदी सजाई है गोरे हाथों में?        
यह किसने रंग भरे सुर्ख गुल निगारों में।         
                  शजर से टूट कर ये शाख गुल खिलाती हे।
                   बिछड़ती अपनों से,गैरों को पर मिलाती है।
            रचाई हे जो ये दुल्हन ने हाथ में मेंहदी!
            वजूद अपना मिटा के यह रंग लाती है।

©Mumtaz Ahmed Khan #roseday
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Mumtaz Ahmed Khan

नूर आंखों का दिल के सहारे चले।
वो गया चांद! देखो वो तारे चले!
बागबा ने शफकत से पाला जिसे!
मोसमों ने नज़ाकत से ढाला जिसे!
          उस हसीं रूप को, सुबह की धूप को!
यह समय के कहां लेके धारे चले!
नूर आंखों का दिल के सहारे चले!
जिसके  दम से  था आबाद  मेरा    जहां
जिस की रौनक से रोशन था यह आशियां
        अब हमें छोड़ कर। हम से मुंह मोड़ कर। 
करके   सुना  वह  घर को  हमारी  चले।
नूर  आंखों  का   दिल के  सहारे  चले।
खुशबुओं सी, वो चंचल सी अल्हड़ पवन!
जिसके दम से था आबाद मेरा चमन!
         अब  बहुत दूर वो! कितने  मजबूर वो।
 ले  नई  जिंदगी  के  शरारे  चले !
नूर आंखों का दिल के सहारे चले!

©Mumtaz Ahmed Khan अपनी बिटिया की विदाई पर

#VantinesDay

अपनी बिटिया की विदाई पर #VantinesDay #कविता

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Mumtaz Ahmed Khan

हम मेहनतकश जग वालों! से जब अपना हिस्सा मांगेंगे!
 एक खेत नहीं! एक गांव नहीं! हम सारी दुनिया मांगेंगे!

©Mumtaz Ahmed Khan
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Mumtaz Ahmed Khan

कभी यूं भी था!
कभी फुरसतों को थी फुरसतें!
 कभी जिंदगी से थी कुर्बातें!
कभी बादलों से थी दोस्ती!
कभी तितलियों से मोहब्बतें!
कभी इस शहर मैं सुकूं भी था!
कभी यूं भी था!

©Mumtaz Ahmed Khan #hills
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Mumtaz Ahmed Khan

in the name of almighty!
the compassionate' the merciful!
praise to be Allah lord of the world!
 the compassionate !the merciful!
master of the day of judgement!
you alone we worship!
and you alone we look for help!
guide us to the straight path!
the path of those upon whom you  bestowed favour!
nar those who have invited your wrath!
 Nor those who have gone astray!

©Mumtaz Ahmed Khan prayer

#Thoughts

prayer Thoughts #Motivational

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Mumtaz Ahmed Khan

چلو کے شہر ہی سارا اداس لگتا ہے ۔
چلو کہ آج سمندر بھی پیاس لگتا ہے ۔
چلو کہ یاد گزشتہ  کو کھینچ لیتے ہیں ۔
چلو کے اپنے ہی سائے کو بھیچ لیتے ہیں۔ 
چلو کہ آج خوابوں کو توڑ لیتے ہیں ۔
چلو کی جھوٹی امیدوں کو چھوڑ دیتے ہیں ۔
چلو کہ درد کی شدت سے سے ٹوٹ جاتے ہیں۔
چلو کہ آج زمانے سے روٹھ جاتے ہیں ۔
چلو کہ آج گناہوں کے داغ دھو دیتے ہیں۔
چلو کہ  سجدے میں سر رکھ کے آج روتے ہیں!

©Mumtaz Ahmed Khan #Thinkin چلو کہ آآج آ

#thinkin چلو کہ آآج آ #شایری

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Mumtaz Ahmed Khan

हालात के सागर में
उम्मीद की किश्ती पर।
तक़दीर की मोजों पे
पहुंचा कोई। साहिल तक
खोया कोई लहरों में।
दरिया है यह जीवन का!
 आता है कहां से यह?
 जाता है कहां पर है यह?
ना कोई सिरा इसका!
ना कोई ठिकाना है!
आजाद है दुख सुख से!
रफ्तार से बेकाबू!
आगाज़ से ना वाकिफ!
अंजाम से बेपरवाह!
छाई  है घटा काली।
तारीक फिजाएं हैं!
लहरें है कयामत की
तूफानी हवाएं हैं!
 मांझी भी मगर अपना!
अंजाम समझता है! 
तूफान की लहरों का!
पैगाम समझता है!
कश्ती में शिकस्ता सी।
साहिल की तमन्ना क्या!
रुख मोड़ दो कश्ती का!

 तूफान की जानिब अब।
आगाज़ से ना वाकिफ!
अंजाम से बेपरवाह!

©Mumtaz Ahmed Khan
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Mumtaz Ahmed Khan

chamakte. chand ko aaf5aab kya deta

#electiontime

chamakte. chand ko aaf5aab kya deta #electiontime #शायरी

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