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Manish Kumar Savita
उस सल्तनत के स्तंभ गिर जाते है जहां प्यादों पर अत्याचार बड़ जाते है।। #Manish Kumar Savita #स्तंभ
सुसि ग़ाफ़िल
सपने जिंदगी हकीकत और शौक , चार स्तंभ है और चारों पर चोट ! सपने जिंदगी हकीकत और शौक , चार स्तंभ है और चारों पर चोट !
सपने जिंदगी हकीकत और शौक , चार स्तंभ है और चारों पर चोट !
read moreऋत्विज राय
बार बार जुमलों से जहर उगाता है.... ये पत्रकारिता करता है या शहर सुलगाता है। — राज चतुर्थ स्तंभ
चतुर्थ स्तंभ
read moreEk villain
इसमें कोई संदेह नहीं इन दोनों योजनाओं के रूप स्वरूप और प्रकृति को देखते हुए एक दूसरे के पूरक ही लगती है यह गति शक्ति के माध्यम से एक उम्दा आधिकारिक संरचना तैयार की जाए तो उसी संरचना से प्लास्टिक पॉलिसी को सिर चढ़ाया जाएगा वास्तव में यह देश की आर्थिक वृद्धि को नए पाक प्रदान करने का काम करेगी इसके लिए कोई उदाहरण गिनाए जा सकते हैं जैसे कि देश में होने वाले निर्यात के हिस्सेदारी की गणना करें तो इसमें तटवर्ती राज्य आगामी पंक्ति में दिखाई पड़ते हैं इसका कारण यही है कि अधिकांश विनिर्माण इकाइयां इन्हीं राज्यों में लगी है जहां से निर्यात करने के लिए इन्हें ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती इसे सहेली थी अत के कारण कई अन्य पहलुओं पर उतना लाभ नहीं होने वाले के बावजूद उधार भी इन्हीं राज्यों में उधम केंद्रित रखने पर जोर देते हैं क्योंकि उन्हें ढुलाई आसान पड़ती है अब गति शक्ति और नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी की जुगलबंदी देश के अन्य हिस्सों को भी इसी मोर्चे पर लाभ प्रदान कर सकेगी ©Ek villain #भारतीय अवस्था के दो नए स्तंभ #mentalhealthday
#भारतीय अवस्था के दो नए स्तंभ #mentalhealthday
read moreUpendra K
कोशिशें बहोत की गई खुद को यूं उलझाने की चक्रव्यूह के यूप पर अभी अभिमन्यु की सांसें बाकी थीं यूप - स्तंभ #yqbaba #yqbesthindiquotes #hindi #hindipoetry #poetry #bodhivriksha #yqaestheticthoughts #reality
यूप - स्तंभ #yqbaba #yqbesthindiquotes #Hindi #hindipoetry poetry #bodhivriksha #yqaestheticthoughts #Reality
read moreअनिल कसेर "उजाला"
White हमें सब में दिखती अच्छाई है, ज़माने को लगती यही बुराई है। क्यों बैर पाल कर रख्खें 'उजाला', ज़िंदगी तो यारों बस परछाँई है। ©अनिल कसेर "उजाला" चार लाइन
चार लाइन
read moreSAHIL KUMAR
चार कदम की जिंदगी मे सफर गुजरेगा उम्र भर का। उम्र है चार दिन की तो सफर रहेगा शायद अधुरा कहीं। कभी है कुछ शामें हसिन तो कभी रातें दिलकश है, दिन है कभी लाचार तो कभी खुशीयाँ है जैसे कुछ आधी-अधुरी सी। वक्त, मौसम, है हालातों के साथ बदलते जज्बात है, बदलते जैसे खुलते हुऐ पन्ने अब तो बस है हसरते कुछ अधूरी-सी ,तो मन है बेचैन जैसे हर-घड़ी अब तो देखा करता हूँ, ढूँढ़ा करता नई राहें जिंदगी की ही खोज में। कुछ कदम थे डगमगाऐ मेरे भी कभी, पर संभलना सिखा है वक्त के सहारे और चलते रहना सिखा गुजरे हुऐ सफर के सहारे। ©SAHIL KUMAR चार कदम
चार कदम
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