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somnath gawade

'शास्त्र' चुकीच्या
हातात पडले की
 त्याचे 'शस्त्र' होते.
 #शास्त्र

HP

शास्त्र

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स्वाध्याय केवल पुस्तकें पढ़ने को ही नहीं कहते। उसका वास्तविक उद्देश्य आत्म-निरीक्षण के लिए प्रेरणा प्राप्त करना है।
 शास्त्र कहता है। शास्त्र

Uttam Kumar Vajpayee

राजनीति में पत्नी को क्यों

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Pt. Ashish Dubey

#तर्क शास्त्र

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Astro shiv

# ज्योतिष शास्त्र

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Sanjay Kumar Gupta

#वास्तु शास्त्र

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कोई ऐसी करवट,
जो गीला न करे
तकिये को,
क्या पता है तुम्हे?
मुझे मालूम हुआ है,
आप वास्तु शास्त्र के
बड़े जानकर है। #वास्तु शास्त्र

Akash Chaudhary

प्रेम को परिभाषित नही किया जाता।।❤️

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प्रेम को परिभाषित नहीं करते पात

गन्दी रेत से लथपथ वो पत्ते
जो कभी वृक्ष के वक्ष से
कलाएं करते थे,
कितनी ही चिड़िया तुमको छूकर
गुजरी,
मैं तुम पर आज ढूंढने बैठ गया
उनके पैरों के निशान,
क्या मन नहीं है तुम्हारा तुम उनको
परिभाषित करो,
क्या नहीं बताना चाहते
मुझे अपने प्रेम के विषय में,
तुम्हारी व्यथा और प्रेम से परिचित हूं मैं
समझ रहा हूं पात तुम्हे मैं,
तुम्हे पुरानी चिड़िया की याद
आयी होगी,
चलो मैं अपने दरवाजे से इंतजार में हूं
जब चाहना तब दास्तां सुनाना......,
तुम्हारा मौन समझता हूं मैं,
तुम बता रहे हो शायद मुझे 
प्रेम कभी शब्दों से नहीं किया जाता
वो होता है बस ,बस होता है।।

©Akash Chaudhary प्रेम को परिभाषित नही किया जाता।।❤️

Ajay Daanav

प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता।

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हृदय से उपजे विचार हो तुम
शब्दों का मेरे श्रृंगार हो तुम
करती हुई झंकृत मन-वीणा
सातों सुरों की झनकार हो तुम
हूं मैं कविता छंदों में गढ़ी
कविता का मेरी सार हो तुम
हृदय से उपजे विचार हो तुम प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता।

मनोज कुमार झा "मनु"

#Sunhera शास्त्र वचन

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शास्त्रे प्रतिष्ठा सहजश्च बोधः
प्रागल्भ्यमभ्यस्तगुणा च वाणी।
कालानुरोधः प्रतिमानवत्वम्
एते गुणाः कामदुधाः क्रियासु।।

शास्त्र में निष्ठा, स्वाभाविक ज्ञान, प्रगल्भता, गुणों के अभ्यास से सम्पन्न वाणी, 
कार्य के उचित समय का अनुसरण 
और प्रतिभा की नवीनता - 
ये सभी गुण 
मनोरथों को पूर्ण करनेवाले होते हैं।

(मालतीमाधव - ३/११

©मनोज कुमार झा "मनु" #Sunhera शास्त्र वचन

HP

शास्त्र कहता है।

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शास्त्र कहता है ‘सत्यं सुखं संजयति’ सत् से सुख उपजता है। यदि आप अपने को सुखी बनाना चाहते हैं तो अपने अन्दर दृष्टि डालिये, अपनी बुराइयों का सुधार कीजिए, अपने में सद्गुण उत्पन्न कीजिये। ‘स्व’ को सँभालते ही ‘पर’ सँभल जाता है। दुनिया दर्पण है, इसमें अपनी ही शकल दिखाई पड़ती है। पक्के मकान में आवाज गूँजकर प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है इसी प्रकार अपने गुण कर्म, स्वभावों के अनुरूप प्रत्युत्तर संसार से मिलता है। हम जिधर चलेंगे छाया भी पीछे-पीछे उधर ही चलेगी। इसलिए उचित है कि सुख प्राप्त करने का अपने को अधिकारी बनावें अपने आचरण और विचारों में समुचित संशोधन करें यही सफलता का मार्ग है। शास्त्र कहता है।
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