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N S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} पहले कोई भी जाति नही थी, सबसे पहले 4 वर्ण थे, ये सब का काम के आधार पर निर्भर था, ये तो सनातन धर्म को तोड़ने की साज़िश रची गई, सादी विवाह के लिए हम सब ने अपने आप बाट लिया, जो काम करता था, वही जाती मानली, यह सरासर गलत है, धर्म व शास्त्र विरुद्ध हैं, यह व्यवस्था है, जाति नही है, सबका शरीर परम् पिता ने बिल्कुल एक सा बनाया है, और हम सदा से सर्वदा सनातन से हैं, आगे आप सब की बुद्धि व विचारधारा हैं, दोस किसी का नही, अब हर जाति व धर्म में विवाह हो रहे हैं, पूरी दुनिया का मालिक एक और हम सब उस मालिक के, सबका खून लाल, हा विधि, विकार, विचार, रहन-सहन, भाषा और बहुत कुछ अलग हो सकता है।। जय श्री राधेकृष्ण जी।। ©N S Yadav GoldMine #diwali_wishes {Bolo Ji Radhey Radhey} पहले कोई भी जाति नही थी, सबसे पहले 4 वर्ण थे, ये सब का काम के आधार पर निर्भर था, ये तो सनातन धर्म को
#diwali_wishes {Bolo Ji Radhey Radhey} पहले कोई भी जाति नही थी, सबसे पहले 4 वर्ण थे, ये सब का काम के आधार पर निर्भर था, ये तो सनातन धर्म को
read moreबेजुबान शायर shivkumar
=========================== ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी =========================== त्याग सती स्वरूप यज्ञ वेदी में, हिमेश घर जन्मीं ब्रह्मचारिणी रूप। करने शिव को प्रसन्न तपस्या, की हैं दृढ़-कठोर हजारों वर्ष अनूप।। ब्रह्मचारिणी तप की चारिणी, दाएं हाथ माला बाएं में है कमंडल। श्वेत वस्त्र,ज्ञान,ध्यान,वैराग्य से, तपस्विनी की ओजस्वी प्रभामंडल।। ब्रह्म को तप से धारण कर लेवें, वही पावन आत्मा तो है ब्रह्मचारिणी। सुफल समर्पित पुरुषार्थ दिलाते, आयु,आरोग्य,अभय,सौभाग्य भरणी।। तो नवरात्रि द्वितीय दिवस आओ, ब्रह्मचारिणी की आशीष हेतु करें युक्ति। माॅंं तपस्या की मर्मज्ञ इस जगत में, दिलाएगी मोह-माया तनाव से मुक्ति।। नवरात्रि नित्य नव तप के साधन, तपोबल से हष्ट-पुष्ट होते हैं तन-मन। ब्रह्मचारिणी की आराधना भक्तों, ईश्वर को समर्पित पावनतम जीवन।। तो आज अपनाऍं हम भी सादगी, संवारने ए कोहिनूरी हीरा जिंदगानी। छल-कपट-प्रपंच से मुक्त होकर, ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी।। ========================== ©बेजुबान शायर shivkumar #navratri #navratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #कविता95 #नवरात्रि भक्ति सागर भक्ति भजन भक्ति संगीत भक्ति गीत भक्ति गाना Sethi Ji Ks
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read moreVs Nagerkoti
White आपके भीतर के बोझ से भारी और कुछ नहीं होता । आपके हर कार्य मैं रुकावटें पैदा करने वाला यही है। आपको इनसे शीघ्र मुक्त होने की जरूरत है । क्युकी इसकी वजह से किसी नए विचार का आगमन मन मैं हो ही नहीं सकता। यही आपकी असली PROBLUM हैं । जो आपके वक्त को बर्बाद करने के साथ साथ आपकी चीजों को Grow नही करने देता । इस लिए वक्त वक्त पर इनसे मुक्त होना भी जरुरी है,,,,,, मन का बोझ सबसे घातक,,, ©Vs Nagerkoti #good_night हमेशा तनाव मुक्त जीवन ही हर कामयाबी को प्राप्त कर सकता है । जो चोट खा कर गिर गया सब कुछ ख़त्म ✨✨✨💯
#good_night हमेशा तनाव मुक्त जीवन ही हर कामयाबी को प्राप्त कर सकता है । जो चोट खा कर गिर गया सब कुछ ख़त्म ✨✨✨💯
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इस कलयुग में मनुष्य ही असुर हैं और आसुरी भी मन के भाव और भावनाएं दूषित हो तो नकारात्मक सोच और विकार ग्रसित कर देती हैं मन के विकार मनके छह प्रकार के विकार उत्पन्न होते है। इनको छह रीपु भी कहते है। यथा काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मात्सर्य स्वार्थ , ईर्ष्या , क्रोध , अहंकार , घमंड, अभिमान , गुस्सा , लालची स्वभाव , नास्तिक व्यवहार , असत्य ,झूठ , अपशब्द , दुष्टता, यह सब नरक के द्वार खोलते हैं और इन्हीं सबसे मनुष्य की पतन होती हैं ©person इस कलयुग में मनुष्य ही असुर हैं और आसुरी भी मन के भाव और भावनाएं दूषित हो तो नकारात्मक सोच और विकार ग्रसित कर देती हैं मन के विकार मनके
इस कलयुग में मनुष्य ही असुर हैं और आसुरी भी मन के भाव और भावनाएं दूषित हो तो नकारात्मक सोच और विकार ग्रसित कर देती हैं मन के विकार मनके
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गीता में, श्रीकृष्ण अर्जुन को अपनी ब्रह्मविद्या द्वारा जीवन के मार्ग के बारे में बोध करते हैं। काम (लोभ), क्रोध और लोभ को तीनों नरक द्वार कहा गया है। इन तीनों गुणों के द्वारा मनुष्य को अनिष्ट का अनुभव होता है और यह उसे सांसारिक बन्धनों में फंसा देते हैं। पांच तरह के विकार होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार। क्रोध, लोभ, मोह, मिथ्या भाषण यह सब अवगुण हैं ©person पांच तरह के विकार होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार क्रोध, लोभ, मोह, मिथ्या भाषण यह सब अवगुण हैं अवगुण और अहंकार, घमंड, लालची स्वभाव ,
पांच तरह के विकार होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार क्रोध, लोभ, मोह, मिथ्या भाषण यह सब अवगुण हैं अवगुण और अहंकार, घमंड, लालची स्वभाव ,
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
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