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नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
कई बार लिख के मिटाता रहा हूं, यादों के शमां जलाता रहा हूं। मिटती नहीं यादें जो है पुरानी, बना गीत उनको मैं गाता रहा हूं। कई बार लिख के मिटाता रहा हूं.............। जहां पे खड़ा हूं वो सूनी डगर है, चला जा रहा हूं न खुद की फिकर है। मिले चैन थोड़ा सा बस इसकी खातिर ,तन्हाई से मैं मिलता रहा हूं। कई बार लिख के मिटाता रहा हूं। ©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।) # गजल
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शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं आपके रस्ते हैं आसाँ आपकी मंजिल क़रीब ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं ©Deep Chakraborty गजल
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