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Prakash Bandra
।।स्वामी दयानंद सरस्वती।। नुकसान से निपटने के लिए उससे मिली सीख याद रखें। यहीं आपको विजेता बनाएगी। ©Prakash Bandra स्वामी दयानंद सरस्वती
स्वामी दयानंद सरस्वती
read moreMUKESH KUMAR
मानवता की भलाई के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले, जिन्होंने बाल विवाह,सती प्रथा जैसी कुरीतियों को खत्म करने में सक्रिय योगदान दिया। महान सन्त स्वामी महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जयंती पर सत-सत नमन ©MUKESH KUMAR महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती
read moreMUKESH KUMAR
मानवता की भलाई के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले, जिन्होंने बाल विवाह,सती प्रथा जैसी कुरीतियों को खत्म करने में सक्रिय योगदान दिया। महान सन्त स्वामी महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जयंती पर सत-सत नमन ©MUKESH KUMAR महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती
read moreKamal Kumar
स्वामी दयानंद सरस्वती के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ©Kamal Kumar स्वामी दयानंद सरस्वती के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
स्वामी दयानंद सरस्वती के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
read moreVibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ “अज्ञानी होना ग़लत नही है, अज्ञानी बने रहना ग़लत है “ - स्वामी दयानंद सरस्वती समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों पर कुठाराघात करने वाले महान संत, आर्य समाज के संस्थापक, प्रगतिशील चिंतक, महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि। आपके विचार समतामूलक समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हैं...। ✍️Vibhor vashishtha vs— % & Meri Diary #Vs❤❤ “अज्ञानी होना ग़लत नही है, अज्ञानी बने रहना ग़लत है “ - स्वामी दयानंद सरस्वती समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों पर
Meri Diary Vs❤❤ “अज्ञानी होना ग़लत नही है, अज्ञानी बने रहना ग़लत है “ - स्वामी दयानंद सरस्वती समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों पर
read moreDivyanshu Pathak
आधुनिक जीवनशैली के साथ वैदिक जीवनशैली को घसीटकर हम पूरे आधुनिक हो पाए और ना ही वैदिक रह गए।रही सही कसर पूंजीवाद ने निकाल दी सैकड़ों सालों में हम समाज को एक नई जाति या वर्ण तो दे नहीं पाए किन्तु वर्णों को ही जाति और उपजातियों के रूप में विभक्त कर वर्गवाद की नींव डाली।यह वर्गवाद निम्न,मध्य और उच्च के रूप में एक दूसरे के विरोधी तो हुए ही साथ ही निम्न-मध्यम वर्ग वाले उच्च वर्ग में आने की दौड़ में शामिल भी।जीवन का संघर्ष बस 'कमाई' ( धन ) आधारित रह गया।यही कारण रहा कि गरीब गरीब रहे और अमीर अमीर होते गए। जिन लोगों का इस संघर्ष से मोह भंग हुआ वे प्राचीन शास्त्रों में सुखी जीवन की तलाश करने लगे जो थोड़े बहुत शास्त्रों से जुड़े उन्हीने मनमाने अर्थ देकर उसे सहज करने की कोशिश की तो अंध-भक्तों की बाढ़ आ गई।लेकिन आगे चलकर यह सारी कल्पित बातें निर्मूल साबित हुई बड़े बड़े सन्त और धर्म गुरु कारागार में पहुँच गए भक्त बेचारे ठगे से रह गए। कैप्शन-- देखें हमें शंकराचार्य और महर्षि-दयानंद सरस्वती के प्रयासों को भूलना नहीं है। उनके मूल पथ को अतिक्रमित कर उसे टेढ़ा-मेढ़ा बना दिया गया है तो कोई बात
हमें शंकराचार्य और महर्षि-दयानंद सरस्वती के प्रयासों को भूलना नहीं है। उनके मूल पथ को अतिक्रमित कर उसे टेढ़ा-मेढ़ा बना दिया गया है तो कोई बात
read moreDivyanshu Pathak
इन चरणों में फूल चढ़ाएं दीप जलाएं आरती गाएं जब भी तेरे दर पर आएं हम मन वांछित फल पाएं मेरे स्वामी अंतर्यामी इतनी दया रखना शुभकारी शिव शंकर नमामि शंकर ! 💕😊 सृष्टि कल्याण के स्रोत भगवान शिव के विवाह दिवस #महाशिवरात्रि की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। 💕🌹🌺🌺🌹🌹🌹🌺🌺🌺 : हे शिव शंकर त्रिशूल धारी हम है
💕😊 सृष्टि कल्याण के स्रोत भगवान शिव के विवाह दिवस #महाशिवरात्रि की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। 💕🌹🌺🌺🌹🌹🌹🌺🌺🌺 : हे शिव शंकर त्रिशूल धारी हम है
read moreRunstarBy mrityunjay
1600m running time 5:06 ✍कुछ महान कार्यों से सम्बंधित व्यक्ति। 1. ब्रह्म समाज – राजाराममोहन राय 2. आर्य समाज – स्वामी दयानंद सरस्वती 3.
read moreRishika Srivastava "Rishnit"
#AzaadKalakaar #AzaadKalakaar स्त्री विमर्श क्यो?? स्त्री विमर्श वास्तव में एक जटिल प्रश्न बनकर युगांतर से मन को गुदगुदा ता आ रहा है यद्यपि नारी की उपस्थिति तो साहित्य की हर विद्याओं में किसी न किसी रूप में सदा से रहती ही आ रही है तब फिर इसी औचित्यता पर प्रश्नचिन्ह क्यों अंकित होता रहा है? हमारा देश आज़ाद हो चुका है फिर भी स्त्री की दशा आज भी दयनीय क्यों?? स्त्री विमर्श के विषय में एक प्रश्न और विचारणीय है कि क्या स्त्री द्वारा लिखित साहित्य स्त्रीवादी साहित्य होता है मेरे विचार से स्त्री या पुरुष के लेखन का नहीं है बस है स्त्री विमर्श पर कदम उठाने वाला या कलम उठाने वाली स्त्री स्वभाव का स्त्री समस्याओं की गहराई से परिचित है या नहीं स्त्री की पीड़ा उस पर हो रहे अत्याचार उत्पीड़न शोषण की कसक आदि को कभी मानसिक या वैचारिक रूप से भोगा है या नहीं। वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति संतोषजनक थी। समाज में स्त्री पुरुष दोनों समान रूप से सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकारी थे। पुत्र या पुत्री के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था। सामाजिक, आर्थिक शैक्षिक तथा धार्मिक कार्यों में दोनों की समान भागीदारी थी। पुत्र या पुत्री के पालन पोषण में भी कोई अंतर नहीं माना जाता था ।इस युग की सबसे बड़ी उपलब्धि थी के पुत्र की शिक्षा के साथ-साथ पुत्रियों तथा स्त्रियों की शिक्षा पर भी गंभीरता पूर्वक ध्यान दिया जाता था। परिणाम स्वरूप लोपामुद्रा, विश्ववारा, घोषा, सिक्त निवावरी जैसी कवि तथा मंत्र और सुक्तों के प्रसिद्ध रचयिता इसी युग की देन है । इसी युग में हुई स्त्री विकास के मार्ग में बाधक जैसे परंपरा नहीं थी। स्त्रियों को इच्छा अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता प्राप्त थी। वैदिक काल और परिस्थितियों मैं शनै शनै परिवर्तन होने जैसा प्रतीत होने लगा यद्यपि पुत्री की शिक्षा-दीक्षा पूर्व चलती रहे तभी समाज की मानसिकता बदल गई। कालांतर में पुत्री भी स्वयं को पुत्र की तुलना में ही समझने लगी। चुकी इस युग में पर्दा प्रथा की चर्चा तो नहीं है। फिर भी नहीं रह गई सार्वजनिक सभा तथा धार्मिक अनुष्ठान में अपनी भागीदारी निभाने से वंचित होने लगी पुत्री का विवाह कम आयु में करने का विवाद चल पड़ा पुत्र-पुत्रियों के जन्म पर भी भेदभाव होने लगा। पुत्र का जन्म उत्सव मनाया जाने लगा लेकिन पुत्री के जन्म को अभिशाप समझा जाने लगा। पुत्रियों को वेदाध्ययन के अधिकार से बातचीत होना पड़ा। महाभारत में द्रोपदी के के लिए "पंडित" शब्द का विशेषण आया।ऐसी पंडिता जो माँ कुंती के आदेश के पाँच पतियों में बँटकर जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो जाती है। कुंती जो विशिष्ट आदर्श कन्याओं में गिनी जाती है समाज के भय से सूरज को समर्पित अपनी को कोम्यता के फलस्वरूप प्राप्त पुत्र रत्न को नदी में प्रवाहित करने हेतु विवश हो जाती है. सती साध्वी राज कुलोधभूता सीता एक साधारण पुरुष के कहने पर अपने पति श्री राम द्वारा परित्यक्ता वन अकारण वनवास के दुःख झेलती है।विचारणीय है यदि उस समय की सधी और मर्यादाओं से बंधी राजकन्या हो कि यदि ऐसी स्थिति की सामान्य स्त्रियों की दशा कैसी रही होगी. चुकी इस काल में स्त्रियों को आर्थिक दृष्टि से पर्याप्त अधिकार प्राप्त है। माता-पिता आदि से प्राप्त धन स्त्री धन था ही विवोहरान्त या विवाह के समय पर आप उपहारों पर भी स्त्रियों का अधिकार था किंतु मनु विधान के अनुसार वह उसकी संपूर्ण स्वामिनी नहीं थीं। पति का अनुमति के बिना उसका एक पल भी उपयोग नहीं कर सकती थी। खैर जैसा था- था लेकिन वर्तमान परिपेक्ष में भी हम देखते हैं कि आज भी पुरुषों की मानसिकता यथावत है। मुगल शासनकाल में चल रहे भक्ति आंदोलन के फल स्वरुप स्त्रियों को सामाजिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता मिली फलता बदलाव का बीज अंकुरित होने लगा। 【आगे अनुशीर्षक में पढ़े】 ©rishika khushi ब्रिटिश शासन काल में स्त्रियों की परिस्थितियों के कुछ सुधार आया, क्योंकि शिक्षा का विस्तार किया गया। लड़कियों की शिक्षा में ईसाई मिशनरियाँ र
ब्रिटिश शासन काल में स्त्रियों की परिस्थितियों के कुछ सुधार आया, क्योंकि शिक्षा का विस्तार किया गया। लड़कियों की शिक्षा में ईसाई मिशनरियाँ र
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