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राजीव भारती
नववर्ष की संकल्पना बीत गया है जो वर्ष अब वह पुनः न दोहराये आनेवाले वक्त सुखद हों शुभकामना हमारी सुनहरी सुबह हो, छंट जायें निराशा के अंधेरे नववर्ष के लिए बस यही है संकल्पना हमारी गया वर्ष बीत गया बस दुःख और आपदा में, परंतु हमने ढेरों साहस हैं संजोए बुरे समय में बदलीं हैं कुछ आदतें ,सीखे हैं नये तौर तरीके बदले हैं सोच हमारे प्रकृति हेतु बुरे समय में अतीत से सीखे तो कष्ट नहीं होगा तनिक भी भविष्य अच्छे होंगे यही परिकल्पना हमारी सुनहरी सुबह हो, छंट जायें निराशा के अंधेरे नववर्ष के लिए बस यही है संकल्पना हमारी विगत हुई त्रुटियों की पुनरावृत्ति ना होने पाए प्रयत्नों से ही जगत को नया आयाम मिलेगा नुकसान की होगी भरपाई विशेष लाभ होगा व्यथित हृदय को पुनश्च थोड़ा विश्राम मिलेगा उत्साह की पराकाष्ठा नवीन ऊर्जा संचरित हो हर्षातिरेक से रची-बसी यह नववर्ष हो हमारी सुनहरी सुबह हो, छंट जायें निराशा के अंधेरे नववर्ष के लिए बस यही है संकल्पना हमारी ~~~राजीव भारती ©Rajiv Ranjan Verma # नववर्ष की संकल्पना #HappyNewYear
# नववर्ष की संकल्पना #HappyNewYear
read moreकृष्णा
स्वर्ग और नर्क की संकल्पना किसी प्रिय की संगत या बिछोह हो सकती है ©Krishna #संकल्पना...✍️
#संकल्पना...✍️
read moresomnath gawade
अतिहुशारीच्या बाता मारणारा विद्यार्थी नापास झाला की, त्याचा 'अवतार' पाहण्यासारखा होतो. अवतार संकल्पना
अवतार संकल्पना
read more#Seema.k*_-sailent_*write@
जब भी किनारे पर मैं पहुंचूं/ ना जाने क्यूं मन घबराए! बीते पल के छलावे क्यों मुझे छलते जाएं- आशा थी जो मन को मेरे/ मन के भीतर आग लगाएं!! ©seema kapoor जीवन चक्र जीवन चक्र #Life
जीवन चक्र जीवन चक्र #Life
read moreTara Chandra
दूर क्षितिज पर प्रेम पिपासु, वर्षण को आतुर बादल, जल बाणों की बौछारों से, धरा आह्लाद करें बादल।। आन्दोलित हो अपनी सारी, सम्पत्ति वार दिये बादल, यही समर्पित प्रेम निशानी, खुद को मिटा चले बादल।। धरती भी ऋण सिर ना धारे, फिर पोषित करती बादल, देख आसमां पर फिर से, छा कर उभरे हैं बादल।। ✍️... ©Tara Chandra Kandpal #चक्र
Rahul Sontakke
जीना मरणा खाना पिना सुख दुःख ये चक्र हमेशा चलता रहेगा ©Rahul Sontakke चक्र
चक्र
read moreAjay Kumar Dwivedi
शीर्षक - उस सभा में है जरूरत सुदर्शन चक्र उठाने की। सत्ता को दोषी कहने और पुलिस को गाली देने से। नहीं मिलेगा इंसाफ तुम्हें यूं अबला बनकर रोने से। संविधान लिखने वाले ने कसर नहीं कुछ छोड़ी थी। लगता है अपराधियों के साथ में उसकी अच्छी जोड़ी थी। कानून बनाया इतना गन्दा न्याय तुम्हें मिले कैसे। जब अपराधी घुमें बाहर तो फूल कहीं खिलें कैसे। क्यूँ हाथों में पोस्टर लेकर सड़कों पर निकलते हो। उन्हीं हाथों से खुद तुम न्याय क्यूँ नहीं करते हो। बलात्कार जैसी घटनाओं पर भी राजनीति करने वालों। जात पात के नाम पर अक्सर एक दूजे से लड़ने वालों। जात धर्म के नाम पर शहर जला देते हो तुम। फिर क्यूँ नहीं ऐसे कुकर्मी को जड़ से मिटा देते हो तुम। जिस राज्य का राजा अन्धा हो वहां दुर्योधन शीष उठाता है। भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र हरण करवाता है। भीष्म पितामह जैसे ज्ञानी जहाँ मौन रह जाते हो। कृपाचार्य और गुरू द्रोण एक शब्द नहीं कह पाते हो। उस सभा में है जरूरत सुदर्शन चक्र उठाने की। ना की नपुंसकों की भाँति सबके मौन रह जानें की। अजय कुमार द्विवेदी ''अजय'' ©Ajay Kumar Dwivedi #अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - सुदर्शन चक्र उठाने की। #Stoprape
#अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - सुदर्शन चक्र उठाने की। #Stoprape
read moreAnjana Gupta Astrologer
*माटी का संसार है,* *खेल सके तो खेल,* *बाज़ी रब के हाथ है,* *पूरा विज्ञान फेल..!!* चक्र
चक्र
read moreParasram Arora
पुराणों से लेकर कलयुग क़े काले अंधेरों तक जीवनचक्र घूमता रहा प्रलय होती रही सृष्टि चलती रही ज्योति जलती रही और मजे की बात ईश्वर हर युग मे था क्योंकि ईश्वर इंसान का सृजन था अपने गुनाहो और पापो क़े प्रायश्चित क़े लिए ईश्वर का सृजन करना इंसान क़े लिए इसीलिए जरूरी भी था इंसानी जीवन चक्र और ईश्वर की उपादेयता........
इंसानी जीवन चक्र और ईश्वर की उपादेयता........
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