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Nitu Singh जज़्बातदिलके
White जीवन की रूप रेखा को कुछ यूं स्वप्नाया था उसने सुगंध उठेगा कल सबेरा मेरा यही विचारकर प्रेम बीज को अतीत की भूमि में दबाया था उसने दिन गुजरे सप्ताह गुजरे न विश्वास की सिंचाई न गलतियों की निराई न जुबानी जहर को पौधों से छुटाया था उसने फिर सहसा एक दिन खींच ले गयीं अभिलाषाएं उसे फसल की ओर चींखने लगा जोर जोर से निखोलने लगा सुषुप्त पड़ चुके प्रेम बीज को मढ़ने लगा आरोप उसके प्रेमत्व पर क्योंकि आज, वर्तमान पर मुरझा सा नीरस पुष्प ही पाया था उसने काश! झांक पाता सहस्त्रों बार किये उन वादों की ओर जिन्हें हर गलती के बाद दोहराया था उसने ©Nitu Singh जज़्बातदिलके जीवन की रूप रेखा को कुछ यूं स्वप्नाया था उसने सुगंध उठेगा कल सबेरा मेरा यही विचारकर प्रेम बीज को अतीत की भूमि में दबाया था उसने दिन गुजरे स
जीवन की रूप रेखा को कुछ यूं स्वप्नाया था उसने सुगंध उठेगा कल सबेरा मेरा यही विचारकर प्रेम बीज को अतीत की भूमि में दबाया था उसने दिन गुजरे स
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्ने की पिराई दी है ये रक़म हाथ न ऐसे आयी भर के बोरी आज राई दी है ख़ूब ऊँचा है किसानों में जो बीच में छोड़ पढ़ाई दी है आज औलाद मज़ा है करती क्योंकि हमने ही ढिलाई दी है आसमां छू रही मँहगाई को कर में देखा न रिहाई दी है घूस से तोंद उन्हीं की भारी जिनके कपड़ों की सिलाई दी है ये फ़सल आज प्रखर तुम देखो इसकी हमने ही सिंचाई दी है महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्न
ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्न
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