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Stories related to premlata

Prem Lata Solanki

premlata poetry

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रूठ जाओ ये हक है तुम्हारा ,
डांट भी दो ये हक है तुम्हारा, 
नाराज होना भी जायज है तुम्हारा,
 कभी बात भी कर लिया करो ये भी तो हक है तुम्हारा 
                                              प्रेमलता सोलंकी premlata poetry

Prem Lata Solanki

premlata poetry

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उसने कहा क्यो लिखा करती हो, 
किसके लिए लिखा करती हो, 
ए मुसाफिर जाकर उसे कह दो, 
इक अधूरी कहानी जो, 
उसे बयां करती है वो, 
अपने टूटे दिल को जोड़ा करती है वो, 
अपने खोये ख्वाबो को खोजा करती है वो, 
अपना हाल ए दिल बयां करती है वो, 
जब जब यादो मे खोती है तो लिखा करती है वो, 
जब जब ख्वाबो मे खोती है तो लिखा करती है वो, 
जब जब रूदन करता है दिल तो लिखा करती है वो, 
हर दिन बिखरती और जुङती है वो, 
अपना हाल ए दिल बयां करती है वो, 
                                    प्रेम लता सोलंकी premlata poetry

Prem Lata Solanki

Premlata poetry

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कोहरा तेरी यादो का कोहरा कभी हटता ही नही 
इस तरह रहते हो दिल मे 
जो कभी छंटता ही नही 
 Premlata poetry

Payal Parihar

premlata

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Prem Lata Solanki

premlata poetry

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I 💖 u dear J premlata poetry

Prem Lata Solanki

Premlata poetry

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Haste hue khile gulab se lagte ho
pas aakar hame bhi mahka jate ho

Happy rose day
My dear J 
 I Love u so much Premlata poetry

Prem Lata Solanki

premlata poetry

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रूठ जाओ ये हक है तुम्हारा ,
डांट भी दो ये हक है तुम्हारा, 
नाराज होना भी जायज है तुम्हारा,
 कभी बात भी कर लिया करो ये भी तो हक है तुम्हारा 
                                              प्रेमलता सोलंकी premlata poetry

Prem Lata Solanki

Premlata poetry

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कोहरा तेरी यादो का कोहरा कभी हटता ही नही 
इस तरह रहते हो दिल मे 
जो कभी छंटता ही नही 
 Premlata poetry

Ravi Kadela

Ravi premlata

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 Ravi premlata

Prem Lata Solanki

premlata poetry

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बाद मुद्दत उसे देखा लोगो 
वो ज़रा भी नहीं बदला लोगो
खुश न था मुझ से बिछड़ कर वो भी 
उस के चहरे पे लिखा था लोगो
उस की आँखे भी कह देती थी 
रात भर वो भी न सोया लोगो
अजनबी बन के जो गुज़रा है अभी 
था किसी वक़्त में अपना लोगो
दोस्त तो खैर कौन किस का है
उस ने दुश्मन भी न समझा  लोगो
रात वो दर्द मेरे दिल में उठा 
सुबह तक चैन न आया लोगो
प्यास सेहराओं की फिर तेज़ हुई .
अबर फिर टूट के बरसा लोगो premlata poetry
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