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Gaurav Kumar Yadav
आसमानों को ताकता पिंजरे का परिंदा हूं ! और सपनो के बिना बस ज़िंदा हु । पंखों को समेटे जिम्मेदारीयो में दिन गुज़रता हूं ! पिंजरे में कैद बस आसमानों को निहारता हूं । न आसमानों से डरता हूँ न ऊंचाईयों से डरता हूँ ! दो वक़्त की रोटी में बस घुट घुट के मरता हूं । ©Gaurav Kumar Yadav story of a every struggling man #poem
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