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Roopesh Singh Lucky
🙏 गोमती गीत 🙏 ऋषि वशिष्ठ की पुत्री जिसको, शिव ने निज पुत्री माना। आदिगंगा मां सदानीरा, वेदों में हुआ था कहलाना। यह माता अपने बच्चो के, सब पापो को धोती है, रामायण की धेनुमती यह, तुलसी की प्रिय होती है। यह केवल एक नदी नहीं यह, संस्कृतियों की संवाहक है। सतयुग त्रेता द्वापर देखे, यह कलियुग की भी वाहक है। रावण वध करके राघव ने, इसके तट तूणीर थे धोए। लवकुश भी इसके ही तट पर, सीता की गाथा सुन रोए। स्नेह मात सम जन को देने, का शिव ने वरदान दिया। इसके तट की शीतलता में, खुद बुद्ध ने विश्राम किया। ऋषियों ने जिसके महात्म्य को, मां गंगा के सम जाना, उसको जग ने आदीगंगा, गोमती नाम से पहचाना। अपनी नगरी जिसके तट पर, लक्ष्मण स्वयं बसाते है। जिसके जल में पाप को धोने, रघुनंदन खुद आते हैं। बलराम जहां प्रायश्चित करने, को ही दौड़े जाते हैं। उस मां गोमती के चरणों में, हम भी शीश नवाते हैं। ©Roopesh Singh Lucky #गोमती
Tara Chandra
दूर क्षितिज पर प्रेम पिपासु, वर्षण को आतुर बादल, जल बाणों की बौछारों से, धरा आह्लाद करें बादल।। आन्दोलित हो अपनी सारी, सम्पत्ति वार दिये बादल, यही समर्पित प्रेम निशानी, खुद को मिटा चले बादल।। धरती भी ऋण सिर ना धारे, फिर पोषित करती बादल, देख आसमां पर फिर से, छा कर उभरे हैं बादल।। ✍️... ©Tara Chandra Kandpal #चक्र
Rahul Sontakke
जीना मरणा खाना पिना सुख दुःख ये चक्र हमेशा चलता रहेगा ©Rahul Sontakke चक्र
चक्र
read more#Seema.k*_-sailent_*write@
जब भी किनारे पर मैं पहुंचूं/ ना जाने क्यूं मन घबराए! बीते पल के छलावे क्यों मुझे छलते जाएं- आशा थी जो मन को मेरे/ मन के भीतर आग लगाएं!! ©seema kapoor जीवन चक्र जीवन चक्र #Life
जीवन चक्र जीवन चक्र #Life
read moreAnjana Gupta Astrologer
*माटी का संसार है,* *खेल सके तो खेल,* *बाज़ी रब के हाथ है,* *पूरा विज्ञान फेल..!!* चक्र
चक्र
read moreUtkarsh Jain
मैरी मजबूरियों ने मेरे पर कतर दिए, वरना में भी था परिंदा ऊंची उड़ान का। हार का डर मन से हटा कर, देखें कतरे हुए परों से एक ऊंची उड़ान भर कर। आज फिर कतरे हुए परों से हमने उड़ना सीख लिया, ज़िन्दगी को फिर से जीना सीख लिया। गिर के उड़ना, उड कर गिरना, इसे ही तो कहते है, जीवन चक्र में आगे बढ़ते रहना। #जीवन चक्र
#जीवन चक्र
read moreनागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
जीवन का ये खेल है सब ,कोई पाता है कोई खोता है।जीवन पथ पर चलते चलते,कोई रोता है,कोई हँसता है। कब कौन कहां मिलता पथ पर,चल आगे कौन बिछड़ता है। है कौन सदा रहता संग में, एक दिन वो छोड़ निकलता है। ये माया भी ऐसी ही है, जो सब को नाच नचाती है। कभी इधर तो कभी उधर, कहां कहां भटकाती है। उलझ उलझ के इस माया में,मानव चैन गंवाता है। ©नागेंद्र किशोर सिंह #जीवन चक्र
#जीवन चक्र
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