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New देखता हूं मैं Quotes, Status, Photo, Video

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abhisri095

#देखता हूं मैं 😬😬😬

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देख कर तुझे एक बार
हर बार, देखता हूं मैं...

वक़्त गुज़रता कैसे है
संग तुम्हारे, देखता हूं मैं...

ये मौसम बड़े मुद्दतो से बने है
बिगड़ते कैसे है...
तुम ज़रा ठेहरो , देखता हूं मैं || #देखता हूं मैं
😬😬😬

bipin kumar"

👍कभी देखता हूं मैं #ज़मी कभी देखता हूं आसमा#👍

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Internet Jockey

मैं अपने सामने खुद को जलता हुआ देखता हूं मैं चांद को अपने ही दाग में ढलता हुआ देखता हूं #coldnights

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मैं अपने सामने
 खुद को जलता हुआ देखता हूं
मानो चांद को 
अपने ही दाग में ढलता हुआ देखता हूं

©Internet Jockey मैं अपने सामने खुद को जलता हुआ देखता हूं
मैं चांद को अपने ही दाग में ढलता हुआ देखता हूं

#coldnights

Farhan Raza Khan

रोज देखता हूं मैं रहेबरी आईना में रोज एक नया दाग़ निकल आता है Roz dekhta hoon main Rahbari aaine mein Roz ek Naya daag Nikal aata hai.. fa

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रोज देखता हूं मैं रहेबरी आईना में
रोज एक नया दाग़ निकल आता है।।

Roz dekhta hoon main Rahbari aaine mein
Roz ek Naya daag Nikal aata hai.. रोज देखता हूं मैं रहेबरी आईना में
रोज एक नया दाग़ निकल आता है

Roz dekhta hoon main Rahbari aaine mein
Roz ek Naya daag Nikal aata hai..
#fa

Zulfikar Ali

लगे हैं फिर से गया दौर लौट आया है, बचपना मेरा मेरी और लौट आया है, हरकतों में तेरी अब खुद को देखता हूं मैं, तेरे जरिए मेरा हर तौर

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सुसि ग़ाफ़िल

हां मैं सुश हूं। मैं बाहर से कुछ नहीं देखता हूं । मैं गहराइयों में बोलता हूं , वहीं है दर्द की गांठ बस , उसी को ही खोलता हूं , हां मैं दर्

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हां मैं सुश हूं।

मैं बाहर से कुछ नहीं देखता हूं । 
मैं गहराइयों में बोलता हूं ,
वहीं है दर्द की गांठ बस ,
उसी को ही खोलता हूं ,
हां मैं दर्द तोलता हूं !

हां मैं सुश हूं।
 हां मैं सुश हूं।

मैं बाहर से कुछ नहीं देखता हूं । 
मैं गहराइयों में बोलता हूं ,
वहीं है दर्द की गांठ बस ,
उसी को ही खोलता हूं ,
हां मैं दर्

nishant

अलग से ढूढता हु शब्द ,जब तुझे देखता हूं कुछ सोच के फिर भूल जाता हूं , जब तुझे देखता हूं सोचता हूं तुझे बुरा लगेगा,इसलिए गजल में तेरा जिक्र न

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मौसम की तरह तुम  जब तुम्हे देखता हूं अलग से ढूढता हु शब्द ,जब तुझे देखता हूं
कुछ सोच के फिर भूल जाता हूं , जब तुझे देखता हूं सोचता हूं तुझे बुरा लगेगा,इसलिए गजल में तेरा जिक्र न

Anil Ray

अक्सर देखता हूं मैं पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में रिश्ते की डोर में बंधे इंसान निज धरा पर मेरी मानव जाति में। बेबस-सी चलती हुई दम्पति गाडी न व

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अक्सर देखता हूं मैं
पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में
रिश्ते की डोर में बंधे इंसान
निज धरा पर मेरी मानव जाति में।
बेबस-सी चलती हुई दम्पति गाडी
न विश्वास का पहिया,न प्रेम इंजन
बिना आत्मसम्मान और समर्पण गियर 
हां समाज इन्हे कहता है पति-पत्नी।
जब-तक रहेगा एकछत्र राज
इस पुरुष प्रधान समाज में
पति-पत्नी की सामाजिक मुहर के साथ,
तब-तक अनवरत रहेगा
उत्पीड़न और अत्याचार महिला के साथ।
नही चाहती अब आधुनिक पत्नि कि
हो कदमों में चांद,सितारो से मांग सजा ले,
चाह बस यही, सुख-दुख मे ही नही
पति घर के काम में थोड़ा हाथ बंटा ले।
जी जनाब! सम्भालते हुये परिवार को
पत्नी का भी दर्द करता कभी बदन,
साथ जीने-मरने की कसमें और रस्मे
फिर क्यो न सहारा दे पतिरुपी तन।
न हो अवज्ञा और अवमानना कभी
स्नेह-धागे से बुने समता सूत्र,
न बचाये जो अस्मिता नारी महान की
वों नही किसी का भाई,पति और पुत्र।
माना कि बीज अंश किसी वृक्ष का
जिससे कालांतर में कभी फूल खिला है,
परन्तु सनातन सत्य यह भी 'अनिल'
कभी भी नही वसुंधरा अंश के बीज पला है।
बनकर रहो सदा जीवनसाथी
यही है खुशहाल जीवन का मंत्र,
परस्पर बना रहे आत्मसम्मान और समर्पण
तभी विकसित होगा सामाजिक तंत्र।

©Anil Ray अक्सर देखता हूं मैं
पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में
रिश्ते की डोर में बंधे इंसान
निज धरा पर मेरी मानव जाति में।
बेबस-सी चलती हुई दम्पति गाडी
न व

Hrishabh Trivedi

कल मुझ पर एक इल्जाम लगा, कि तुम प्रेम नहीं लिख सकते...... मैंने स्वीकार भी किया, मगर फिर भी कुछ बड़े प्यार से लिखा है आप लोगों के लिए, पूरा

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"खत"
😊अनुशीर्षक में पढ़े😊 कल मुझ पर एक इल्जाम लगा, कि तुम प्रेम नहीं लिख सकते...... मैंने स्वीकार भी किया, मगर फिर भी कुछ बड़े प्यार से लिखा है आप लोगों के लिए, पूरा

Yogesh RJ05

मैं देखता हूं उम्मीद

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मैं देखता हूं चांद को बादलों में खुद को छिपाते हुए,
मैं देखता हूं रात को खामोशी से दर्द बताते हुए।
मैं सुनता हूँ बेमौसम बरसात को अपना राग गाते हुए,
मैं सुनता हूँ हवा को एक दर्दीली धुन बजाते हुए।।
माहौल बडा ही गमजदा सा है,
मैं देखता हूं अंज को नील पर अपना हक जताते हुए।।
मैं देखता हूं पहर को पल पल कर जाते हुए।।
मैं देखता हूं बारिश को थमते हुए,
मैं देखता हूँ फ़िर एक कहानी बनते हुए।
मैं देखता बूंदों को बेजान शाखों से छनते हुए,
मैं देखता हूँ बसर में अरमान जगते हुए।।
मैं देखता हूँ एक उम्मीद से रात के बादल छटते  हुए।।
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Yogesh Sharma मैं देखता हूं उम्मीद
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