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Satish Kumar Meena
बसंत की मंद सुगंध से,नैनो में यौवन जाग गया। साजन के होंठों से सर्र-सर्र करता गीत भाग गया।। मुुंडेर के ऊपर वो गौरी!केशो की घुंघराली थी, दो मोतियों से मद की धारा,टप टप बहने वाली थी। मनमोही मौसम से यौवन केे लिए मद जाग गया। साजन के होंठों से सर्र-सर्र करता गीत भाग गया।। ©Satish Kumar Meena बसंत की मंद सुगन्ध
बसंत की मंद सुगन्ध
read moreAnuj Ray
White बसंत के मौसम भी कभी-कभी आंखों में ख़्वाब ,पनपने नहीं देते, और इस उम्र निगोड़ी को, ये खुश गवार मौसम चैन से सोने नहीं देते। ©Anuj Ray # बसंत के मौसम भी"
# बसंत के मौसम भी"
read moreअखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन' #रक्षाबंधन #सावन #शिवजी
arvind bhanwra ambala. India
कंहा गया वो सावन। पेड़ की टहनी पर डाल कर झूला अकेले ही झूला, झूला हमने न डर, न खोफ़ था, बेफिक्री थी। आज डर है, मेरी पैदाईश, मेरे पालन का, क्या झूलूं, कंहा झूलू अब, कौन से सावन मे, अब, हर नज़र ललचाई, हर मन, हवस समाई, मुझे सिर्फ 'सामान' जानता है हवस मिटाने का मकान मानता है ©arvind bhanwra ambala. India कंहा गया वो सावन
कंहा गया वो सावन
read moreBindu Sharma
White गुज़रो किसी भी गली से, गुज़रो किसी भी गली से बस हरियाली और जल ही नज़र आता है .... हर हर महादेव की है गूंज हर जगह यह सावन का महीना है मेरे भोलेनाथ जी को बहुत भाता है ©Bindu Sharma #सावन #सावन_का_महीना #भोलेनाथ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा जो प्यार सावन का इक नज़र देख लूँ अगर तुमको । तब ही आये करार सावन का वो न आयेगा पास में मेरे क्यों करूँ इंतज़ार सावन का दिल में जबसे बसे हो तुम दिलबर रोज़ होता दीदार सावन का आप आये हो मेरी महफ़िल में चढ़ रहा है खुमार सावन का आस ये आखिरी मेरे दिल की करके आओ शृंगार सावन का आप क्यों अब चले नही आते कुछ तो होगा उधार सावन का बिन सजन मान लो प्रखर तुम भी खो ही जाता करार सावन का महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा
ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा
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