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Sultan Mohit Bajpai
बगीचा ढह गया बस आखिरी बरगद बचा है अब इसे तो बख्श दो थक कर परिंदे आ रहे होंगे ©Sultan Mohit Bajpai बगीचा ढह गया बस आखिरी बरगद बचा है अब इसे तो बख्श दो थक कर परिंदे आ रहे होंगे ©सुल्तान मोहित बाजपेयी... #Nature #Love #Nojoto #Hindi
Sultan Mohit Bajpai
रात भर चलते रहे हम दोपहर को लौट आए हारकर अहले दहर से फिर शहर को लौट आए बज़्म में रुसवाइयों की ठंड से खुद को बचाकर ओढ़कर खामोशियों की आग घर को लौट आए ©Sultan Mohit Bajpai रात भर चलते रहे हम दोपहर को लौट आए हारकर अहले दहर से फिर शहर को लौट आए बज़्म में रुसवाइयों की ठंड से खुद को बचाकर ओढ़कर खामोशियों की
रात भर चलते रहे हम दोपहर को लौट आए हारकर अहले दहर से फिर शहर को लौट आए बज़्म में रुसवाइयों की ठंड से खुद को बचाकर ओढ़कर खामोशियों की
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गलत हुजूम में थे , पर गलत नही थे हम मुबस्सिर कज-ख़याली थे, मगर सही थे हम सभी ने देखकर भी ,बारहा ना–दीदा किया दह़र की नज्ऱ में गु़म थे, वले वहीं थे हम ©Sultan Mohit Bajpai एक अश'आर: गलत हुजूम में थे , पर गलत नही थे हम मुबस्सिर कज-ख़याली थे, मगर सही थे हम सभी ने देखकर भी ,बारहा ना–दीदा किया दह़र की नज्ऱ
एक अश'आर: गलत हुजूम में थे , पर गलत नही थे हम मुबस्सिर कज-ख़याली थे, मगर सही थे हम सभी ने देखकर भी ,बारहा ना–दीदा किया दह़र की नज्ऱ
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मैं भी जलता रहा दिन रात चरागों की तरह आखिरन जल ही गया मोम के धागों की तरह भूल जाने की कोशिशें तमाम की फिर भी दिल मे चिपका रहा वो दिल फ़टी यादों की तरह ©Sultan Mohit Bajpai मैं भी जलता रहा दिन रात चरागों की तरह आखिरन जल ही गया मोम के धागों की तरह भूल जाने की कोशिशें तमाम की फिर भी दिल मे चिपका
मैं भी जलता रहा दिन रात चरागों की तरह आखिरन जल ही गया मोम के धागों की तरह भूल जाने की कोशिशें तमाम की फिर भी दिल मे चिपका
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विद्या (ह्रदय) हे परमत्तव अंश ज्ञान(विद्या) का स्वरूप को बढ़ावा देना । हमारे ह्रदय रुपी भावसागर कि एक क्रिया है। हद्रय के कारण ही हमारी उत्पत्ति हुई है। हृदय के कारण ही संहार होना तय है । क्योंकि इसी में चार द्वार (वाल) वेदों के स्वरूप से देखा व समझा गया है । वेदों का अस्तित्व सर्वप्रथम सरस्वती को दिया गया है। मानव शरीर में ये ह्रदय क्रिया सनातन से चली आ रही है। हद्रय विद्या का स्पष्टीकरण हमारे मुख और कभी -कभी चन्द , इन्द्रियों के द्वारा भी किया जाता है। इस क्रिया को आजकल के संसार के कानून भी पकड़ नहीं सकते हैं। विद्या के मुल स्पष्टीकरण कै । प्रमाण से प्रमाण निकलता है । हर शरीर में वेदों के अमृत ज्ञान के साथ विष भी है। हद्रय के विष को ग्रहण करने वाला कोई नहीं है। आपके सिवा इस ब्रह्माण्ड में । हद्रय रूपी अमृत को पीने वाले सभी है इस जहां में। ज्ञान का स्वरूप हमेशा हृदय से हुआ है । ऐसा नहीं दावा के साथ व पुर्ण विश्वास से कहता हूं । अपनी हाथ की चार अंगुली को लीजिए और हृदय पर रखकर उन्हें कहिए कि सरस्वती के पास कोई डिग्री नहीं है । इस प्रमाण से - इस क्रिया से। अब ज्ञान बातें सोचकर ओर बोल कर दिखा । अभी खुद करके देखो आपके ज्ञान रुप । इस क्रिया से कहा चला जाता है। बड़ा प्रमाण क्या - हमारा ज्ञान का ही सर्वोपरि उद्गम का स्त्रोत हृदय ही है। ह्रदय में से निकला ही विष हमारा सर्वोपरि विध्वंस है। ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #sattingbaba #sanjana #New #treanding #Trading #PriyankaMeme Johirul Islam Kamalakanta Jena (KK) Pooja Thakor Samanda
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ग़ज़ल ----- आज फिर से हक़ीक़त नज़र आ गयी तुमसे पहले तुम्हारी ख़बर आ गयी आज फिर इश्क़ रोया बहुत टूटकर चश्म से जिस्म पर इक नहर आ गयी उसको खोने का मुझको सबर आ गया वो मगर आज फिर बे - सबर आ गयी क्या करूँ दिल को रोका सम्भाला बहुत याद उसकी पहर - दोपहर आ गयी उसकी 'सुल्तान' ये दिल्लगी देखिये बनके मेरी ग़ज़ल में बहर आ गयी ©Sultan Mohit Bajpai ग़ज़ल ----- आज फिर से हक़ीक़त नज़र आ गयी तुमसे पहले तुम्हारी ख़बर आ गयी आज फिर इश्क़ रोया बहुत टूटकर चश्म से जिस्म पर इक नहर आ गय
ग़ज़ल ----- आज फिर से हक़ीक़त नज़र आ गयी तुमसे पहले तुम्हारी ख़बर आ गयी आज फिर इश्क़ रोया बहुत टूटकर चश्म से जिस्म पर इक नहर आ गय
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