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F M POETRY
White ज़ाम लेते हैं तेरी यादों में.. सुबह लेते हैं शाम लेते हैं.. यूसुफ़ आर खान.... ©F M POETRY #सुबह लेते हैं शाम लेते हैं.....
#सुबह लेते हैं शाम लेते हैं.....
read moreprem shanker noorpuriya
White प्रेम का चुंबन बन मैं जगमगाता हूं, फिर कहीं पन्नों में दबाया जाता हूं। रहता तब भी साथ करुण कहानी में बिछड़ जाता अपना कोई रवानी में। संदेश बन जाऊं तब मैं अनशन का, मैं एक गुल हूं अपने गुलशन का।। ~ प्रेम शंकर "नूरपुरिया" मौलिक स्वरचित ©prem shanker noorpuriya गुल हूं गुलशन का
गुल हूं गुलशन का
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White बहकते हैं हर रोज़ ये कदम, तुम्हारे पास आने के लिए, न जानें कितने फासले, अभी तय करने हैं तुम्हें पाने के लिए…. बस इसी तरह सोचा किए थे हम अब, तुमसे मिलने तुमसे बतियाने की चाहत ही बाकी न रही न अब दर्द है, न निशाँ मोहब्बत के उजाड़ दिया है आशियां हमने ख़ुद अपने हाथों से तुम रहो सलामत, हम ख़ुश हैं अपनी ख़ुदी में ©हिमांशु Kulshreshtha खुश हैं..
खुश हैं..
read moreBharat Bhushan pathak
माठमà¥à¤à¥‡ वरदान दो की रूप निराला अम्बे माँ का,भक्तों आओ दरस करो। हे दुष्टों को दलने वाली,हे कल्याणी त्राण हरो।। चहुँओर ही दनुज हैं फैले,भीत मनुज हैं चीत्कारे। पापी पलड़ा ऐसा भारी,यहाँ पुण्य को फटकारे।। भूखे निर्धन बिलक रहे हैं,भोजन धनिक यहाँ फेंके। जिनके घर वस्त्रों की धारा,वे चीथड़ों को न क्यों देखे।। ©Bharat Bhushan pathak रूप निराला अम्बे माँ का,भक्तों आओ दरस करो। हे दुष्टों को दलने वाली,हे कल्याणी त्राण हरो।। चहुँओर ही दनुज हैं फैले,भीत मनुज हैं चीत्कारे। पाप
रूप निराला अम्बे माँ का,भक्तों आओ दरस करो। हे दुष्टों को दलने वाली,हे कल्याणी त्राण हरो।। चहुँओर ही दनुज हैं फैले,भीत मनुज हैं चीत्कारे। पाप
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी तलबगार को धुन हो तलब की प्यास ज्ञान की प्रगण होती है होता प्रसव साहित्यों का चेतना तक तत्व झकझोरता है सृजन के फूल खिलते है पल्लवित होते समाज और देश दूरदृष्टि के फल खिलते है पाते अराजक और मिथ्यात्व पर विजय ज्ञान और साहित्यों के आगे परास्त सिंहासन के दल बल होते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #hindi_diwas दूरदृष्टि के फल खिलते है #nojotohindi
#hindi_diwas दूरदृष्टि के फल खिलते है #nojotohindi
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी अनकही जिंदगी है तरह तरह से रोज रोज सताती है उगते,अस्त होते,चाँद सूरज पड़ाव उम्रो के हम कितने चढ़ जाते है मलते रहते ख्वाहिश के सपने मेहनत कर कर मर जाते है उसूलो वाले संसार की जमात में हम जैसे नेक सत्यवादी पनप नही पाते है सज्जनता का यहाँ ना कोई मोल घुट कर जलील सब करते जाते है पाप के सब बाप है यहाँ हर हिस्से ईमानदार के खाये जाते है नीयत और नैतिकता की आड़ लिये शिकार सबको बनाये जाते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #sad_quotes पाप के सब बाप है यहाँ
#sad_quotes पाप के सब बाप है यहाँ
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