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राजकुमार को दुखी देखकर राजकुमारी ने राजकुमार के दुःख का कारण पूछा। उसके बाद राजकुमार ने राजकुमारी को अपने मित्र के बारे में बताया। राजकुमार ने कहा, “वह मेरा बहुत अच्छा और चतुर दोस्त है। उसी के वजह से मैं तुमसे मिल पाया हूं।” यह सुनने के बाद राजकुमारी ने राजकुमार को कहा, “मैं तुम्हारे दोस्त के लिए स्वादिष्ट भोजन बनवाती हूं। तुम उसे भोजन कराकर और उसे समझाकर वापस आ जाना।” ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani
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इतना सुनते ही राजकुमार ने बूढ़ी औरत को कुछ धन दिए और राजकुमारी तक संदेशा पहुंचाने को कहा। राजकुमार ने उस बूढ़ी महिला को कहा, “माई, कल तुम जब राजकुमारी के पास जाओ, तो उनसे कहना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें नदी के पास जो राजकुमार मिला था, वो तुम्हारे राज्य में आ गया है।” अगले दिन वो बूढ़ी औरत राजकुमार का संदेश लेकर राजकुमारी के पास गई। उस महिला की बात सुनते ही राजकुमारी गुस्सा हो गई। उन्होंने हाथों में चंदन लगाकर उस महिला के गाल पर तमाचा मारते हुए कहा, मेरे घर से निकल जाओ।बूढ़ी औरत ने घर लौटकर राजकुमार को सारी बातें बताई। महिला की बातें सुनकर राजकुमार चौंक गया। फिर राजकुमार के मित्र ने राजकुमार को धैर्य बंधाते हुए कहा, “राजकुमार आप चिंतित न हों। राजकुमारी की बातों को समझने की कोशिश करें। ध्यान दें कि राजकुमारी ने उंगलियों को सफेद चंदन में डुबोकर गाल पर मारा है। इसका मतलब अभी कुछ दिन चांदनी के हैं। उनके खत्म होने के बाद अंधेरी रात में मिलूंगी।” ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani
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एक दिन की बात है। राजदरबार लगा हुआ था। तभी एक भिक्षु विक्रमादित्य के दरबार में आता है और एक फल राजा को देकर चला जाता है। राजा उस फल को कोषाध्यक्ष को दे देता है। उस दिन के बाद से हर रोज वह भिक्षु राजा के दरबार में आने लगा। उसका रोज का काम यही था कि वह राजा को फल देता और चुपचाप चला जाता। राजा भी प्रत्येक दिन भिक्षु द्वारा दिया गया फल कोषाध्यक्ष को थमा देता। ऐसे करते-करते करीब 10 साल बीत गए। number 2 ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani
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विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी कुछ इस प्रकार है। बहुत समय पहले की बात है। उज्जयनी नाम के राज्य में राजा विक्रामादित्य राज किया करते थे। राजा विक्रामादित्य की न्यायप्रियता, कर्तव्यनिष्ठता और दानशीलता के चर्चे पूरे देश में मशहूर थे। यही कारण था कि दूर-दूर से लोग उनके दरबार में न्याय मांगने आया करते थे। राजा हर दिन अपने दरबार में लोगों की तकलीफों को सुनते और उनका निवारण किया करते थे। first number 1 ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani
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कुछ दिनों बाद बूढ़ी महिला फिर राजकुमारी के पास संदेशा लेकर पहुंची। इस बार राजकुमारी ने केसरी रंग में तीन उंगलियां डुबोकर बूढ़ी महिला के मुंह पर मारते हुए कहा, “भागो यहां से।” फिर उस महिला ने आकर राजकुमार को सारी बातें बताई। राजकुमार यह सुनकर बहुत दुखी हुआ। इस पर दीवान के बेटे ने राजकुमार से कहा, “इसमें दुखी होने की कोई बात नहीं है राजकुमार। राजकुमारी ने कहा है कि अभी उसकी तबीयत ठीक नहीं है, तो इसलिए तीन दिन और रुक जाओ।”तीन दिन बाद वो बूढ़ी महिला फिर राजकुमारी के पास जा पहुंची। इस बार फिर से राजकुमारी ने उस महिला को फटकारा और पश्चिम की खिड़की से बाहर जाने के लिए कहा। वो महिला फिर से राजकुमार के पास गई और सारी कहानी सुनाई। तब दीवान के बेटे ने राजकुमार को समझाते हुए कहा कि मित्र राजकुमारी ने आपको उस खिड़की की तरफ बुलाया है। ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani
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उसके जाने के बाद राजकुमार काफी दुखी हुआ और अपने मित्र के पास लौटकर सारी बात बताई। राजकुमार बोला, “मैं राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता हूं, लेकिन मुझे इस राजकुमारी के बारे में कुछ भी नहीं पता है। वह कहां रहती, उसका नाम क्या है?” दीवान के बेटे ने सारी बातें सुनी और राजकुमार को दिलासा देते हुए बोला, “राजकुमार, आप घबराइए मत। राजकुमारी ने सबकुछ बताया है। आश्चर्यचकित होते हुए राजकुमार ने पूछा, “वो कैसे?” ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani
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भिक्षु की बात सुन राजा विक्रमादित्य उसकी सहायता करने का वचन देते हैं। तब भिक्षु राजा को बताता है कि अगली अमावस्या की रात को उसे पास के श्मशान आना होगा, जहां वह मंत्र साधना की तैयारी करेगा। इतना कहकर भिक्षु वहां से चला जाता है। अमावस्या का दिन आते ही राजा को भिक्षु की बात याद आती है और वह वचन के अनुसार श्मशान पहुंच जाते हैं। राजा को देख भिक्षु बहुत प्रसन्न होता है। भिक्षु कहता है, “हे राजन, तुम यहां आए मैं बहुत खुश हुआ कि तुम्हें तुम्हारा वचन याद रहा। अब यहां से पूर्व की दिशा में जाओ। वहां एक महाश्मशान मिलेगा। उस महाश्मशान में एक शीशम का एक विशाल वृक्ष है। उस वृक्ष पर एक मुर्दा लटका हुआ है। उस मुर्दे को तुम्हें मेरे पास लेकर आना है। भिक्षु की बात सुनकर राजा सीधे उस मुर्दे को लाने चल देता है। ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani number 6
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महाश्मशान में पहुंचने के बाद राजा को एक विशाल शीशम के पेड़ पर एक मुर्दा लटका हुआ दिखाई देता है। राजा अपनी तलवार खींचता है और पेड़ से बंधी डोर को काट देता है। डोर कटते ही मुर्दा जमीन पर आ गिरता है और जोर से चीखने की आवाज आती है।दर्दभरी चीख सुन राजा को लगता है कि शायद यह मुर्दा नहीं, बल्कि कोई जिंदा इंसान है। थोड़ी देर बाद जब मुर्दा तेजी से हंसने लगता है और फिर पेड़ पर जाकर लटक जाता है, तो विक्रम समझ जाता है कि इस मुर्दे पर बेताल चढ़ा है। काफी कोशिश के बाद विक्रम बेताल को पेड़ से उतार अपने कंधे पर टांग लेते हैं। ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani number 7
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अगली बार जब भिक्षु फल लेकर दोबारा विक्रमादित्य के दरबार पहुंचता है, तो राजा कहते हैं, “भिक्षु मैं आपका फल तब तक ग्रहण नहीं करूंगा, जब तक आप यह नहीं बताते कि हर दिन आप इतनी बहुमूल्य भेंट मुझे क्यों अर्पित करते हैं? राजा की यह बात सुन भिक्षु उन्हें एकांत स्थान पर चलने को कहता है। एकांत में ले जाकर भिक्षु राजा को बताता है कि मुझे मंत्र साधना करनी हैं और उस साधना के लिए मुझे एक वीर पुरुष की जरूरत है। चूंकि, मुझे तुमसे वीर दूसरा कोई नहीं मिल सकता, इसलिए यह बहुमूल्य उपहार तुम्हें दे जाता हूं। ©Ajaypal Ajaypal Vikram betal ki kahani number 5
Vikram betal ki kahani number 5
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