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SHASHIKANT
मैं दूर जाता हूँ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● मुबारक तुम्हें दुनिया तुम्हारी मैं दूर जाता हूँ जब बदल गए हो तुम तो खुद को दूर पाता हूँ मसल दिया तुमनें जब अटूट विश्वास को मेरे मेरे मौन का कारण न अब तुमकों बताता हूँ माना साथ दिया तुमनें कभी गर्दिशों में मेरा तुम्हारे उस त्याग के मिसरे सबको सुनाता हूँ पर मान लो ये जख्म भी दिया है तुमने ही अब दर्द में हूँ पर जख्म न तुमकों दिखाता हूँ अब तक जो किया मैंने वो बस फर्ज था मेरा उस फर्ज की जमानत न अब तुमसे पाता हूँ पता भी है मुझकों क़ुसूर वक्त का है फिर भी इंसान हूँ मैं भी शब्दों से छलनी हो जाता हूँ शायद नजरों में तुम्हारें ओहदा खो दिया मैंने जब हर बात में ही खुद को कुसूरवार पाता हूँ अब खुश रहोगें तुम जब मुझकों दूर पाओगे चलो वक्त मिलने पर कभी सपनों में आता हूँ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● शशिकान्त वर्मा 'शशि' दिनाँक- ११/०१/२०२३ ©SHASHIKANT #shashikant #Shashikant_Verma #hindi_poetry
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read moreशशिकांत गुरव
मला तुला विसरायला जमलं नाही #nojotomarathi #sadlove #विरह #shashikant1921 #shashikantgurav #Shashi1921
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अकेलेपन में मजा है कितना, तुमकों आज बताता हूँ तन्हाई में जीवन जीने की, एक कहानी तुम्हें सुनाता हूँ उठता है वो सुबह सबेरे, बस काम की चिंता लेकर नहा धो तैयार वो होता, काम को जाता चाय पीकर दिन भर की आपा धापी में, भूलता दोपहर का भोजन न जाने वो क्या पाना चाहे,स्थिर नही होता उसका मन शाम जब भूख है लगती, बाजार से कुछ खा लेता है खाने के समय ही थोड़ा,कुछ ग़ैरों का संग पा लेता है काम कभी खत्म न होता, पर दिन खत्म हो जाता है दिन भर की दौड़ भाग से, कुछ न हाशिल हो पाता है थका हारा रात को वह जब,कमरे पर अपने आता है एकांत कमरे में वो खुद को,बस तन्हाई में ही पाता है सोचता है मन फिर उसका,है क्या कोई मेरा अपना है कहीं क्या आंखे कोई, जो देखती हो मेरा सपना दिन भर की थकान से टूटा,हो बेसुध फिर सो जाता है उसे सच्चाई से सपना प्यारा,जिसमें फिर खो जाता है कोई मिल जाये अपना, सपना रोज देखा करता है इसी तरह से रोज रोज वो, जीने की किश्तें भरता है अकेलापन जब चरम पर हो, तन्हाई अच्छी लगती है कभी कभी तो पूरी रातें बस टक टकी में ही कटती है ©SHASHIKANT #Shashikant_Verma
SHASHIKANT
मुसफीखाने में मेरे मुसाफिर कई आये रिश्तों के गुलदस्तों का तोहफा भी लाये जरूरत पूरी कर खाली छोड़ गए कमरे अब बची तन्हाई संग बचे यादों के साये। सच है एक दिन सभी बस छोड़ जाते है दिल के कोमल दर्पण को तोड़ जाते है समझ न सका बस उनकी फितरत को सब काम निकलने पर मुंह मोड़ जाते है। पास मेरे आया बन कर हर कोई सच्चा मान लिया मैंने भी उसे बिन सोचे अच्छा असल दुनियादारी की समझ न थी मुझमें समझ में अब आया था मैं ही अभी कच्चा। जो होना था हो चुका अब गम न करता हूँ छोड़ गए है जब चलो धीरज भी धरता हूँ पर बचा नही वैसा जो पहले था जैसा बस खुद को खो करके पल पल मरता हूँ। ©SHASHIKANT #SAD #Shashikant_Verma
SHASHIKANT
धन्यवाद हूँ करता उनकों ज्ञापित अधरस्ते छोड़ कर जो चले गए । उनकों तो जाना ही था एक दिन भला हुआ जो पहले चले गए । छल कपट धोखा कभी न जाना होता है ये सब क्या दिखा गए । पानी सा निश्छल हृदय होने का परिणाम वो मुझकों सीखा गए । कष्ट मिला जब मौन हुआ मैं मुझें मौन की महिमा बता गए । मोम था पहले सूर्य हुआ अब भला हो उनका जो सता गए । रिश्तों का मोल बचा है जितना रिश्ता वो उतना ही निभा गए। तप कर मैंने चमक का पाया अच्छे थे अपने जो जला गए। धोखे सहना, एकांत में रोना अनुभव का विष वो पिला गए। अफसोस बस होता है इतना सम्बन्धो को मिट्टी में मिला गए। (स्वरचित व मौलिक) शशिकान्त वर्मा 'शशि' जौनपुर, उत्तर प्रदेश। ©SHASHIKANT #Pain #Shashikant_Verma