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~anshul
मुझसे कोई गुनाह करवाएगा,,, ये तेरा निचला होंठ मरवाएगा.... @nshul मुझसे कोई गुनाह करवाएगा,,, ये तेरा निचला होंठ मरवाएगा........ saheli shayer 🙂 indu singh Shipra Verma Ishita Singh Kaju Gautam
मुझसे कोई गुनाह करवाएगा,,, ये तेरा निचला होंठ मरवाएगा........ saheli shayer 🙂 indu singh Shipra Verma Ishita Singh Kaju Gautam
read moreOMG INDIA WORLD
ज़ुल्फ़े खोलकर उसने निचला होंठ दांतों में दबाए रखा है, हम ही जानते है हमने कैसे खुदको बहकने से बचाए रखा हम तो मुद्दतों से गए नहीं मयख़ाने फिर ये मदहोशी कैसी, अच्छा! तो आपने आँखो से हमें ज़ाम पिलाए रखा है। ©OMG INDIA WORLD ज़ुल्फ़े खोलकर उसने निचला होंठ दांतों में दबाए रखा है, हम ही जानते है हमने कैसे खुदको बहकने से बचाए रखा हम तो मुद्दतों से गए नहीं मयख़ाने फ
ज़ुल्फ़े खोलकर उसने निचला होंठ दांतों में दबाए रखा है, हम ही जानते है हमने कैसे खुदको बहकने से बचाए रखा हम तो मुद्दतों से गए नहीं मयख़ाने फ
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गगरी हाथों में लिए , पनघट रही निहार । प्यासे होगें घर पिया , करती रही विचार ।। करती रही विचार , नीर है मैला कुचला । दूजा नही उपाय , जल का स्तर है निचला ।। यही आज है व्याधि , शहर हो या हो नगरी । लिए हाथ में नार , देख लो खाली गगरी ।। पायल झुमका औ कड़ा , पहने दिखती नार । अलकें कुछ लटकी हुई , लगता करे विचार ।। लगता करे विचार , नीर बिन खाली गगरी । जाए वह किस घाट , घाट तो इक ही नगरी ।। सूख-सूख कर आज , गला है पिय का घायल । कैसे करूँ निहाल , बजाकर मैं अब पायल ।। ११/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गगरी हाथों में लिए , पनघट रही निहार । प्यासे होगें घर पिया , करती रही विचार ।। करती रही विचार , नीर है मैला कुचला । दूजा नही उपाय , जल का स्
गगरी हाथों में लिए , पनघट रही निहार । प्यासे होगें घर पिया , करती रही विचार ।। करती रही विचार , नीर है मैला कुचला । दूजा नही उपाय , जल का स्
read moreShree
सबकी चाहतें ही उभरीं तो राहतें कौन देगा, जो उड़ने लगेंगे सब घोंसलें बुनेगा कहो कौन? अनुशीर्षक ---------मन--------- सबकी चाहतें ही उभरीं तो राहतें कौन देगा, जो उड़ने लगेंगे सब घोंसलें बुनेगा कहो कौन? मकान को जो ना रंग सके कितना मजबू
---------मन--------- सबकी चाहतें ही उभरीं तो राहतें कौन देगा, जो उड़ने लगेंगे सब घोंसलें बुनेगा कहो कौन? मकान को जो ना रंग सके कितना मजबू
read moreAbhishek 'रैबारि' Gairola
लबालब फल के रस के ऊपरलपेट कर गत्ते की एक जिल्द चढ़ाई गई है जिसे कोने में दिनों, हफ़्तों, महीनों यूँ ही रखा रहता है। कभी कभी ये हमें सावधान भी किए जाती हैं कि इसे किसी ठंडी जगह रखें,ठंडी और अंधेरी जगह। शायद यह भी हमारी तरह है, हमारी वर्तमान आपे जैसी, केवल ठंडे अंधेरे में ही पनप पाती है। और गर्मी के अभाव में, अधोमुख पड़ी, बहुत ही निचला महसूस करते हुए, खिन्न, दबा दबा सा रहना चाहती हैं। हमारे मूकदर्शन के मानिंद इसका मुख भी मोहरबंद है, इसे तोड़कर ही किसी रक्त धमनी की फुहार सा रस रिसाव होगा। यह कृत्रिम माधुर्य से भरा रस जिव्हा और दाँतों में एक खटास छोड़ जाता है। बड़ी अजीब बात है न? यह वैसा ही है, हमारे मीठे सपनों सा, स्वप्न, जो उत्कर्ष से वंछित रह गए थे, और अब जिन्होंने हमारे चित्त के तालू पर एक खटास छोड़ दी हैं। ©Abhishek 'रैबारि' Gairola लबालब फल के रस के ऊपरलपेट कर गत्ते की एक जिल्द चढ़ाई गई है जिसे कोने में दिनों, हफ़्तों, महीनों यूँ ही रखा रहता है। कभी कभी ये हमें सावधान
लबालब फल के रस के ऊपरलपेट कर गत्ते की एक जिल्द चढ़ाई गई है जिसे कोने में दिनों, हफ़्तों, महीनों यूँ ही रखा रहता है। कभी कभी ये हमें सावधान
read moreAprasil mishra
"उदारवाद बनाम रुढ़िवाद : एक जीवट समावेशी संस्कृति के सन्दर्भ में " 1.सांस्कृतिक अंतर्परिवर्तन- संस्कृति के बाहर किसी अन्य में संस्कृति में होने वाले बदलाव. 2.सांस्कृतिक अंत:परिवर्तन- किसी संस्कृति के भीतर हो
1.सांस्कृतिक अंतर्परिवर्तन- संस्कृति के बाहर किसी अन्य में संस्कृति में होने वाले बदलाव. 2.सांस्कृतिक अंत:परिवर्तन- किसी संस्कृति के भीतर हो
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