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Ajita Bansal
White दर्द ने सिखाया खुद से मिलना, राहों में खो जाने से पहले, ख़ुद को जानना ज़रूरी है, तब जाकर कोई सही रास्ता लगे। हर ख्वाब का पीछा करते हुए, सपनों में खो जाते हैं हम, लेकिन जब वो टूटते हैं, तब महसूस होता है, हम कहाँ थे, कहाँ हम। अक्सर दूसरों की नज़र से ही जीते हैं हम, पर सच्ची पहचान तो अंदर से आती है। जो खुद को समझे, वही खुद को पा सकता है, बाकी सब तो बस एक छलावा होता है। अब मेरी आँखों में बस एक सवाल है, क्या मैं सचमुच खुद से प्यार करता हूँ? जब तक ये सवाल हल नहीं होगा, ख़ुद के ही हाल में, ख़ुद से जूझता रहूँगा। ©Ajita Bansal #Sad_Status poem of the day
#Sad_Status poem of the day
read moreLili Dey
ଟିକି ପିଲା ଟିକି ପିଲା ଟିକି ଯେ ତାର ମନ, ତମେ ଭଲସେ ନେବ ତାର ଯତନ । କଅଁଳିଆ ହୃଦୟ କୁ ତାର ସଜାଡ଼ି ଶିଖିବ, ତମେ ଯେମିତି ଗଢିବ ସେ ସେମିତି ହେବ । ସବୁବେଳେ ଶିଖାଇବ ତାକୁ ଭଲ ବ୍ୟବହାର, ତାକୁ ସଦା କହିବ କରିବ ପାଇଁ ପରୋପକାର । ଟିକି ପିଲା ଟିକି ପିଲା ଟିକି ଯେ ତାର ମନ, ତମେ ଭଲସେ ନେବ ତାର ଯତନ । ଲକ୍ଷେ କାମ ଛାଡ଼ି ରଖିବ ତା ଉପରେ ନଜର, ହେଳା କରିଲେ ତା ପ୍ରତି ସେ ଶିଖିବ କେମିତି ସୁବିଚାର । ମାତା ପିତା ତା ପ୍ରତି ଧ୍ୟାନ ଦେଲେ ତା ଜୀବନ ହେବ ଯେ ସୁଖମୟ, ତମ ଠୁ ପାଇ ଭଲ ସଂସ୍କାର ସେ ଦୁନିଆ ରେ ଗଢ଼ିବ ତା ନିଜ ପରିଚୟ । ଟିକି ପିଲା ଟିକି ପିଲା ଟିକି ଯେ ତାର ମନ, ତମେ ଭଲସେ ନେବ ତାର ଯତନ । ©Lili Dey #Childhood
Srinivas
In the face of shared threats, the seeds of enmity wither, and the roots of friendship grow strong ©Srinivas In the face of shared threats, the seeds of enmity wither, and the roots of friendship grow strong.
In the face of shared threats, the seeds of enmity wither, and the roots of friendship grow strong.
read moreKK क्षत्राणी
White कुछ रिश्तों को अगर सही वक़्त पर खुद से दूर करने की हिम्मत आजाय तो फिर कोई भी दर्द नासूर नहीं बन सकता... ©KK क्षत्राणी #thought of the day
#thought of the day
read moreAjita Bansal
White वो रास्ते भी क्या रास्ते थे, जो हमें मंज़िल तक ले जाते थे। कभी धूप में, कभी छाँव में, हम चलते रहे, सफ़र के साथ। हर मोड़ पर, हर इक ठहराव में, मिले हमसे कुछ किस्से नए। कभी हँसाए, कभी रुलाए, वो रास्ते भी हमें सिखाते गए। कभी ठोकरें खाईं, कभी गिरकर उठे, मंज़िल की ओर बढ़ते गए। वो रास्ते हमें समझाते रहे, कि संघर्ष ही है असली जीत का रास्ता। ©Ajita Bansal #Thinking poem of the day
#Thinking poem of the day
read moreमहज़
दर्द को शराब में मिला के पीते गए। फिर यूँ हुआ के हम मुस्कुराते गए। पुरानी तस्वीर जो आंखों में समाई! फिर यादों को धूएं में जलाते गए। अब तो हमें साज़िशें भी जानने लगीं! आंसुओं संग खुद को बहलाते गए। भाड़े के घर को अपना समझा है मैंने! खुद को वफ़ा के सागर में डुबाते गए। करने लगे जब ज़ख्मों ने मुझसे सवाल! खामोशी की चादर खुद पे ओढ़ाते गए। ख्वाहिश थी हमसे दूर जाने की उनको! फिर नजदीकियों पे कांटे बिछाते गए। जब से दिल में बसा लिया मैने उनको! फिर दिल मे यादों के दीये जलाते गए। ©महज़ #Childhood