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niru
खुद को ही लगने लगी हु मैं खुद से अलग जैसे ये मेरा शरीर ही नही मेरे शरीर और आत्मा की दिशाएं अलग क्यों? एकतरफ मैं बंधी रूढिवादिताओ से एक तरफ मैं इतनी स्वछंद क्यों? एकतरफ ये दुनिया- जमाना एकतरफ खुला आसमां इधर जंजीरो की दुकान तो उधर पैराशूट की भरमार क्या मैं हूं इस दुनिया मे? या चली गई हूं सोच से परे हा हु मैं इसी दुनिया मे जहाँ से निकलना मृत्यु है पर मेरे लिए तो वही स्वछंदता.... ©niru सोच से परे
सोच से परे
read moreDivya Bhandari
हकीकत से परे! ख्वाब में मेरे हकीकत से परे हो तुम, जहां मेरे ख्वाब से होते तुम , वहां मैं तुम्हें उतनी ही पसंद हूं, जितना यहां मुझे हो तुम , काश!ऐसी दुनिया होती, जहां मेरे ख्वाब हकीकत होते, वहां तुम मेरी परवाह उतनी ही करते हो जितनी यहां करती हूं मैं वहां हर एक बात बारीकी से कहती हूं, मैं जितना यहां बताने की करती हूं कोशिश, वहां सिर्फ मैं ही याद नहीं दिलाती तुम्हे अपनी , खुद ही याद करते हो तुम, काश!ऐसी भी कोई दुनिया होती जहां बस मेरे होते तुम! #दिव्या भंडारी हकीकत से परे
हकीकत से परे
read moreआकाश भिलावली वाला
ओये सून एक बार नहीं,हर बार तुझसे मुहब्बत हो जाती है जब-जब तू मेरी नजरों के सामने से गुजर के जाती है तुझे उस रब ने मेरे दिल में तो बसा दिया पर तू किसी और तकदीर में लिख दी है । ©आकाश भिलावली वाला तकदीर से परे
तकदीर से परे
read moreAnkit Mishra
बढ़ा कर हाथ मेरी ओर मेरी उम्मीद़ो से वो खुद को कुछ इस तरह हमसे से बॉध लेते, बिखरने से सम्भल जाता हू दिलाशे भर ही वो बढते हाथ जब मेरे बहते आसूओ को साध लेते है। उम्मीद़ो से परे
उम्मीद़ो से परे
read moreSagar Yashwante
सपनो से उजागर होकर मेरे दिल मे समा गाई थी तुम विश्वास नहि होता जिंदगी पर क्यूंकि मेरे कल्पना से परे थी तुम।।। कल्पना से परे
कल्पना से परे
read moreपंकज कुम्हार
यू सज-धज के न उतरा करो सीढ़ियों से तुम हुस्ने-ए-दीदार से खड़े-खड़े हम गिर जाते है यू तक-तक के न देखा करो निगाहों से तुम आंखों के किनारों से कई तन्हा दिल जल जाते है निगाहों से परे
निगाहों से परे
read moreSAHIL KUMAR
कुछ है बातें मेरी जो मुझ से ही साँझा नही होती कुछ है मेरी बातें दिल की जो मेरे मन से साँझा नही होती, दो तरफा चल रही है जिंदगी कुछ कट रही है अकेलेपन में तो कुछ कह रही है इस दुनियाँ से होकर बेपरवाह, लग रहा है जैसे मैं दो जगह वक्त भुले ही हो एक जैसा, यह कौनसा है दौर ज़िंदगी का ढूंढता हूँ जवाब हर लम्हा कोई हो तो बताएं ज़रूर की है यह कौन सा दौर इस जीवन का? ©SAHIL KUMAR समझ से परे
समझ से परे
read morePrachi Dixit
कुछ बातें शब्दों की मोहताज नहीं होतीं.. उन्हें खामोशी से कहा भी जा सकता है , और समझाया भी बखूबी जा सकता है.. ©PrachiAnshu Dixit # शब्दों से परे..
# शब्दों से परे..
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