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Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी शिकार पर निकला है शिकारी भरम का जाल फैलाता है जीत ना सका दिल जनता का बटोगे तो कटोगे का डर जनता को दिखाता है उन्माद फैलाकर सत्ता को चूमना चाहता है गायब हो गया राष्ट्रवाद ख़ौप का प्रयोग करके चुनावी वैतरणी पार करना चाहता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #life_quotes शिकार पर निकला है शिकारी
#life_quotes शिकार पर निकला है शिकारी
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी लतो के हुये शिकार हम टेक्नोलॉजी अंग अंग खराब कर रही है कमजोर आँखे और कान, देखने और सुनने की शक्ति कम कर रही है अतिवाद की धारणा, पंगु बनाकर छोड़ेगी जवानी की दहलीज में बुढ़ापे की तान छेड़ेगी नही चाहिये अन्धविकास टेक्नोलॉजी मानव को गुलाम बनाकर छोड़ेगी प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Sad_Status लतो के हुये शिकार हम
#Sad_Status लतो के हुये शिकार हम
read moreअदनासा-
MiMi Flix
"आसमान के पार एक अद्भुत यात्रा - रोमांच और सफलता की कहानी" - ऋषि और नीलिमा के साथ आसमान के पार एक रोमांचक यात्रा पर निकलें, जहां वे दूरस्थ
read moreSumitGaurav2005
कौन है यह लोग कहां से आते हैं यह लोग जान इतनी डेरिंग कहां से लाते हैं यह लोग दिखाकर अपनी बेवकूफी शेर के सामने शेर का ही शिकार बन जाते
read morePrerna Singh
हार जीत से पड़े हैं मेरी जिंदगी मैं किसी युद्ध की हिस्सा नहीं। अनभिज्ञ मैं चक्रव्युह कि संरचना से छल और बल की शिकार मेरी काया हुई । गैरो के धोखे से नहीं आहत मेरा मन हैं अपनो से विदीर्ण मेरा सर्वस्व ©Prerna Singh हार जीत से पड़े हैं मेरी जिंदगी मैं किसी युद्ध की हिस्सा नहीं। अनभिज्ञ मैं #चक्रव्युह कि संरचना से छल और बल की शिकार मेरी काया हुई ।गैरो
हार जीत से पड़े हैं मेरी जिंदगी मैं किसी युद्ध की हिस्सा नहीं। अनभिज्ञ मैं #चक्रव्युह कि संरचना से छल और बल की शिकार मेरी काया हुई ।गैरो
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
read moreUmme Habiba
White मेरी कमियाँ निकालने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहे वो, मगर मुझे उड़ने के लिए पंख देने में उनकी जान जाती है, अपने मतलब के लिए मेरा सहारा कभी भी ले लेते हैं वो, और मेरी ज़रूरतें पूरी करने में वही सहारे की लाठी उनके लिए बोझ बन जाती है, मुझे तुम्हारी ये दिखावे भरी दुनिया नहीं चाहिए, जहाँ हम बेटियाँ तुम्हारी हैवानियत का हर रोज़ शिकार बन जाती हैं। ©Umme Habiba हैवानियत की शिकार #Trending #World_Photography_Day #Nojoto #nojotohindi #Shayari #nojotoshayari #writer #nojotowriters #Poetry #nojotopoetry
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read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा जो प्यार सावन का इक नज़र देख लूँ अगर तुमको । तब ही आये करार सावन का वो न आयेगा पास में मेरे क्यों करूँ इंतज़ार सावन का दिल में जबसे बसे हो तुम दिलबर रोज़ होता दीदार सावन का आप आये हो मेरी महफ़िल में चढ़ रहा है खुमार सावन का आस ये आखिरी मेरे दिल की करके आओ शृंगार सावन का आप क्यों अब चले नही आते कुछ तो होगा उधार सावन का बिन सजन मान लो प्रखर तुम भी खो ही जाता करार सावन का महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा
ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा
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