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Mukesh Rathore (Bannykrezy4)
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् । ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥ अर्थात् ~ जिस यज्ञमें अर्पण अर्थात् स्रुवा आदि भी ब्रह्म है और हवन किये जानेयोग्य द्रव्य भी ब्रह्म है तथा ब्रह्मरूप कर्ताके द्वारा ब्रह्मरूप अग्निमें आहुति देनारूप क्रिया भी ब्रह्म है उस ब्रह्मकर्ममें स्थित रहनेवाले योगीद्वारा प्राप्त किये जानेयोग्य फल भी ब्रह्म ही है ॥ ~श्रीमद्भागवत गीता ४.२४ ©Mukesh Rathore श्रीमद्भागवत गीता 🙏🏻 . . . #mahadev #Bannykrezy4
श्रीमद्भागवत गीता 🙏🏻 . . . #mahadev #Bannykrezy4
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दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः। वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।। भावार्थ:- दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्बेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा नि:स्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिर बुद्भि कहा जाता है।। ©teachershailesh कुछ सीखें श्रीमद्भागवत गीता से.....!#supersamvaad#geetagyan
कुछ सीखें श्रीमद्भागवत गीता से.....!#supersamvaad#geetagyan
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अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्। दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।। भावार्थ:- मन, वाणी और शरीर किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण, अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग, अन्त:करण की उपरति अर्थात् चित्त की चञ्चलता का अभाव, किसी की भी निन्दादि न करना, सब भूत प्राणियों में हेतुरहित दमा, इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें आसक्ति का न होना कोमलता, लोक और शास्त्र से विरुद्भ आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव।। ©teachershailesh श्रीमद्भागवत गीता अध्याय-16,श्लोक-3.....#supersamvaad#geetagyan
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय-16,श्लोक-3.....#supersamvaad#geetagyan
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श्रीमद्भागवत गीता अध्याय-5,श्लोक-22 #supersamvaad#geetagyan#teachershailesh
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श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 25 #teachershailesh #supersamvaad #geetagyan
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