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Rekha Gakhar

चर्चित कवि गणेश गनी की प्रसिद्ध कविता "वे पूछते हैं पिता से" #Journey

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Nk Pandey

कवि की कविता

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Dayal "दीप, Goswami..

कवि की कविता',,,,,,

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कविता कवि की कल्पना है,
कविता है कवि की आत्मा की आवाज,
कविता है कवि के भावों का दर्पण,
जो करता अपनी लेखनी से दूसरों को अर्पण ।

कवि करता समाज का चित्रण
हटा देता आडम्बरों का आवरण ।
कवि बन जाता समाज का मार्गदर्शक,
बना जाता जीवन को,
 लेखनी से अपने आकर्षक ।

कवि की कविता नहीं होती आधारहीन,
सीखें होती है  उस में बहुत बेहतरीन ।
दीप: कवि की कविता',,,,,,

sweta kumari

कवि की कविता

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Nakoda purnima mandal ogna rajendra seth

कवि की कविता

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Gajendra chadar

हिंदी के प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना जी की कविता प्रस्तुत है आपके सामने #EmotiveTalks

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SilentGoutam

कवि की कविता.... #Gulzar

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....कवि की कविता....


सुबह की चाय और ठंडी हवा
कलम और किताबें 
कोमल हाथों में कोमल भावनाएं
ख्वाहिशों से भरे मन
आंखों में सपनों को पाने की आस
हाथों में लिखने के लिए ललक,
ढेर सारी बातें चलती है मन में।

बेढंगी  दृश्य को मनोरम बनाता
लिखता जाता मन की बात
चाहे सावन का दिन हो या हो  अमावस्या की रात
है वह निरंतर लिखता जाता
जो वो लिखता सब उसका हो जाता 
लिखते लिखते आगे बढ़ जाता।

अपने मन की दुनिया बनाता
सभी किरदारों को बेशक सजाता
चाहे कोई कुछ भी कहें
वह अपनी धुन में निरंतर लिखता जाता।

अपनी कविता से सबको हंसाता
गहरे समंदर में भी तैरना सिखाता
कवि की कल्पना से सब परे है
कवि दिन में भी है चांद दिखलाता।

कवि बस निरंतर लिखता जाता 
चाहे कोई  भी कठिनाई आए 
कठिनाई को कविता बना, उसे भी पार कर जाता
एक कवि ही है जो मन में पूरा संसार दिखलाता
गिर कर, उठ कर फिर ना गिरने की बात बतलाता।

कवि और उनकी कविता बहुत कुछ है सिखाती
जिंदगी को जिंदगी से है  मिलाती
खुद को है खुद से रूबरू कराती।

अकेलेपन से भरे जीवन में
खुद से प्यार करना है सिखाती 
कवि और उनकी कविता है बहुत कुछ सिखाती।

©Silentlover कवि की कविता....

#Gulzar

Pushpendra Pankaj

#Likho कवि की कविता

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Kavi Bharat Bhushan

कवि भूषण की कविता

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Kavi Bharat Bhushan

कवि भूषण की कविता

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वो मेरा बचपन चला गया।                    
बस यादो के पन्ने छोड़ गया।          
मै ढूढू कहा गलियों में                   
 जाने वो किस और गया।                
    बस विचरण करता उन गलियों में       
उन आँगन की रंगरलियों में           
                            बस देखु सुनी गलियों को                                            
सुने आँगन की रंगरलियों को          
अब मेरा मन इस और गया            
मै खेला इन गलियों में                  
कूदा आँगन की रंगरलियों में         
      अब मै कुछ दूर गया                            
पीपल की छाँव में रुक गया           
अब वो भी सुना नज़र आता है,       
अब उसकी नज़र रुक गयी             
उसकी मस्ती छुप गयी।                
को मारे किलकारी दर पे।            
वो भी अब बचपन चाहता है।       
नज़रे उसकी देखे मुझको              
वो भी बचपन मे घूम हो जाता है । 
                                                                        कवि
                                                                     भरत भूषण बैरागी कवि भूषण की कविता
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