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Stories related to जड़ों के रूपांतरण

Parasram Arora

ऋतु चक्र के अनुशासित रूपांतरण

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ये ऋतू चक्र के अनुशासित  बदलाव कुदरत के
करिश्मे हैँ
तभी तों  हर अँधेरे के गर्भ मे उजाला ठाठे मारता  रहता हैँ
बसंत  का आगमन हुआ नही कि पतझड़ी थपड़े भी पीछे से
आ  धमकते हैँ
हर थपेड़ा    लू का  संभावित फुहार  का इंतज़ाम कर जाता हैँ
पहाड़ो से  बहने  वाला हर छोटा बढ़ा झरना  नदियों को
लबालब  कर जाता हैँ
जबकि धुंध की अपारदर्शिता  कवि को उसकी कविता के
लिये नए छंद  दे जाती है.
बादलो से  घिरे खलिहान  वर्षा से लहल्हा उठते है 
 और जंगल मे  खिले फूल  काँटों के बींच भी मुस्कराते हुए देखे जा सकते है



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©Parasram Arora ऋतु चक्र  के अनुशासित रूपांतरण

Parasram Arora

रूपांतरण

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मेरी हथेलियों  क़ी चिकनाहट  मे मेरी लकीरे  फिसल रही है
शायद इसीलिए  अपनी किस्मत का फैसला अपने  हक मे नहीः हुआ है

नफरत के ज़हरीले  बीजो  मे पूरी बस्ती.को विषैला बना दिया है
इसिलए  प्यार क़ी मिठास का  भी कड़वाहट मे
रूपांतरण हो गया है

©Parasram Arora रूपांतरण

Parasram Arora

रूपांतरण

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ज़ब संवेदनाओं  का सुंदर संसार आपके  पास हो.

और अनुभूतियों का दुःखद संग्रह  आपके पास हो

या ज़ब विकास और विनाश दोनों एक पथ पर दिखने लगे
या फिर बात देश की हो या  समाज की हो
या बात  साहित्य  या संस्कार की हो
या बात मानव कि हो या मानवीयस्वाभाव की हो
अनायास कलम ठहर जाती  है
और बहुत कुछ जीवन क़े रंगमच पर  छुपे हुए रहस्यओं
से  पर्दा  उठने  लगता है
तब जीवन मे नए  अर्थ  नए  सन्दर्भॉ से  सांस  लेती हुई
एक नई रूपांतरित दुनिया  दिखने लगती है

©Parasram Arora रूपांतरण

Parasram Arora

रूपांतरण

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यध्यपी मैंने  अपना एक अलग सा ही
प्रसन्न संसार विकसित कर लिया है
लेकिन मेरी यह प्रसन्नता  आदिम  संस्कारो से ग्रसित है
इसलियेज़ब भी मेरे मस्तिष्क मे  तनाव और अवसाद ग्रस्त विचार उठते है
तो मेरी प्रसन्नता   झल्लाहट और उदासी
मे रूपांतरित  हो जाती है

©Parasram Arora रूपांतरण

Parasram Arora

ज़ब  फूटा भाग्य  कली का 
वो   फूल  का  विकास  बन गया 
 अचेतन की   कंदराओं मे  छिपा  था   जो ज्वर  घृणा  का 
आज  चेतनता  का  वो   अनुराग बन गया 
कोशिकाओं मे   छुपा  था जो धुंआ  क्रोध का 
वही रूपसन्तरित होकर करुणा  का वरदान बन गया 
 आसक्ति की  अकुलाहट   से  था जो मन बोझिल 
 अब कहीं जाकर वो  बैरागी बन गया . और 
जो. मौन  व्याप्त था चराचर मे. अब तक 
वो भी    मुखरित होकर  आज  मृदुभाष   बन  गया #रूपांतरण

जगदीश कैंथला

वाक्य रूपांतरण भाग 3

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जगदीश कैंथला

वाक्य रूपांतरण दो

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Anjali Jain

जड़ों में १०.०६.२१ #Trees

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कभी पेड़ की छांह में बैठो
पंछियों की उड़ान को देखो
बहके बहके से कहां तक पहुंच गए तुम
कभी अपनी जड़ों में झांक कर देखो!

© Anjali Jain जड़ों में १०.०६.२१

#Trees

Ek villain

#भारतीय जड़ों से जुड़ने की चाहत Love

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उत्पीड़न और निर्यात किसे दुनिया का कोई कोना छूट नहीं है प्रत्येक जाती है पहचान रंग और धार्मिक मान्यताओं में अंतर के नाते दुनिया भर में अनेक प्रकार की तरह सिद्धियां होती रही है परंतु एक विशेष समुदाय से इसलिए आज से सर्वाधिक पीड़ा सही है यह संभव है भले ही बिक रहा है मगर सबसे बड़ा जिनकी पहचान से जुड़ी इतिहास अभी भी कम से है वहीं उनके साथ भेदभाव अभी जारी है समुदाय स्वभाव से मस्त और काल सिर्फ दूध जिप्सी भी है जिसका संदेश पर अवतार समूह है किंतु इन्हें सभी को संदीप नामक हुआ है जिसके अंत में राम के बच्चे का नाम निरंतर औरत के पहचान से जुड़े रखते हैं इसी नाम की महिमा दुनिया भर में बिखरे हुए हैं लोग प्रति आज के दिन यानी अप्रैल के एकत्रित होते हैं दुनिया भर में इन्हें रोमा समुदाय के नाम से जाना ज्यादा रोमन में यह अपने रचनात्मक अभिव्यक्ति का बदलते समय के साथ अपनी संस्कृति विरासत को बचाने की बढ़ाने की बात होती है ऐसे में हर योजना में सर्वाधिक चर्चा थी कि पलायन निवासियों की होती है आखिर एक समुदाय के तौर पर आने का कारण भी यही है हर गम भूल सकते हैं किंतु भारत में अपनों को नहीं

©Ek villain #भारतीय जड़ों से जुड़ने की चाहत

#Love

Aman Mishra Rahi

मोहब्बत की जड़ों में सुराख हो गया #Mylanguage

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