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Preeti Chauhan
भारतवर्ष मोहन मुरली की धुन यहां संतो की वाणी सदा। बच्चे की किलकारी में भी मां देखती ब्रह्मांड यहां। शिव-शक्ति का रूप यहां अर्धनारेश्वर पूजते सदा। गणपति सी विनम्रता यहां नन्दी सा है धैर्य सदा । करते गीता का स्मरण यहां भागवत का सार सदा। पुराणो की वाणी यहां करते वेदो को वंदन सदा। मीराबाई सी भक्ति यहां अहिल्याबाई सी बुद्धी सदा। लक्ष्मीबाई सी वीरता यहां सावित्रीबाई सी शिक्षका सदा। कण कण में बसते शिव यहां सबके मुख पर राम सदा। शिव से ही उद्धार यहां। राम नाम ही सत्य सदा। ऐसे भारतवर्ष भूमि पर जन्म होने पर गर्व सदा। ऐसे भारतवर्ष भूमि पर मृत्यु होने पर मौक्ष सदा । - प्रीति चौहान ©Preeti Chauhan भारतवर्ष
भारतवर्ष
read moreकवि ऋषि रंजन
भारतवर्ष जहां सुबह-सबेरे सोने की चिड़िया मधुर संगीत सुनाती है जहां खेतो की सोंधी मिट्टी की खुशबु घर-आँगन महकाती है जहां आज भी अमराई की छाव में कुछ लोग दिन बिताते हैं इस जहाँ में एक देश है ऐसा, जो हर देश से न्यारा-प्यारा है पूछे जब कोई तब बतला देना, वो महान भारतवर्ष हमारा है ।। जहां आज भी नर में पूजे जाते राम और नारी में माता सीता है हो अपार उपदेशों का भंडार जहां और हर घर में रहती गीता है सुधा की धारा बहा रही हो नदियाँ, लहलहाती खेत खलिहान जहां हो अवतरित देवतागण हर युग में हम सबको सवांरा है पूछे जब कोई तब बतला देना, वो महान भारतवर्ष हमारा है ।। जहां हर दिल में प्रेम हो बसता और बातों से अमृत बरसता सुंदर-सुंदर मधुर सी बोली, जहां राम भजन हर घर में बजता नहीं किसी से वैर भावना, जहां संस्कृति सभ्यता कायम हो जहां गंगा-जमुनी हो तहज़ीब हमारी और पैगाम भाईचारा है पूछे जब कोई तब बतला देना, वो महान भारतवर्ष हमारा है ।। जहां सुनाती दादी-नानी आज भी किस्से गीता और रामायण की जहां फैली हो गांवों में हरियाली, दिखती हो मेहनत किसान की शीश झुका शत्-शत् नमन् करता हूँ मैं अपनी मातृभूमि को हो ज्ञात इस दुनिया वालों को इस संसार में जो एक ध्रुव तारा है पूछे जब कोई तब बतला देना, वो महान भारतवर्ष हमारा है ।। ©कवि ऋषि रंजन #Letter_To_Republic_India भारतवर्ष
#Letter_To_Republic_India भारतवर्ष
read moreDharmendra Gopatwar
📖 भारतवर्ष....✍️ By Dharmendra Gopatwar _देश मेरा वो नही जो दिख रहा मानचित्र आज कागज पर । आए मेहमान खाए पिए घर लूट चले गए l खींच दी लकीर भाईयो के बंटवारे कर चले गए। अज्ञानी अंग्रेज ज्ञान पढ़ा कर चले गए । अंग्रेजी पढ़ाकर सदियों के लिए परछाई अपना छोड़ गए । विद्यालयो में पाश्चिमात्य शिक्षा पढ़कर क्या कोई देशभक्त होगा ? संस्कृत छोड़ क्या कोई विवेकानंद रामानुजन कहलाएगा ? उर्दू सीख क्या कोई कलाम फिर से हो पाएगा ? अखंड भारतवर्ष का क्या कोई सौगंध खायेगा l देखे होंगे कभी भगत सिंग ने सपने लाहौर पे तिरंगा होगा अबूल कलम ने दिल्ली पर हिंदुस्तान के देखे होंगे क्वाब DlGopatwar काश जिन्हा को देता अल्ला थोड़ा अक्ल , मेरे भारत के वीरों में आता उनका शक्ल काश मेरे राम आते गांधी के सपनो में काश ये अनर्थ टला होता मेरे भारतवर्ष के सीना आज रंगा ना होता । रेडक्लिप नाम था शायद खींचा लकीर उसने सपने में उसके जीसस ना आया कैसे सुकून से सोया होगा उस रात जब की मेरा देश रो रहा था आज भी वह लकीर रंग रहा लाल खून से भाई _भाई को लड़वाने का शायद मन उसने बनाया था l मेरा परदादा बिना वीजा कराची गया होगा आज वो नसीब नही मेरा , वो भारतवर्ष था सिमटकर भारत हो गया । थोड़ा तो दर्द होता रेडक्लिप और जिन्ना को देश को बांटते वक्त काश सुभाष बाबू होते लकीर बनाते समय ढाका कलकत्ता से बातें कर रहा होता , नेपाली दिल्ली से दिल मिलाते l लंका चेन्नई से जुड़ा होता आज़ाद हिंद की फौज आज होती अफगानिस्तान के सीमा पर l DlGopatwar कितने अच्छे दिखते सुभाष बाबू चंद्रशेखर भगतसिंह मेरे नोटो पर l कितना दर्द लिए खड़ा है मानचित्र मेरे देश का सरकारी दफ्तरों विद्यालयों में याद दिलाता होगा किसका बचपन बीता होगा लाहौर कराची के गलियारों में आज भी द्वारका अयोध्या में होती है सुबह की अज़ान क्या मैं आऊं लाहौर , शिवजी के मंदिर में बैठ कर प्रार्थना करने ? क्या मेरे परदादा के कराची का दोस्त बाबूलाल का पोता आज रहीम के नाम से जाना जाता है l क्या आज भी सुनाई देता है मुझसे बने देश में राम नाम की आवाज और मंदिर की घंटी शायद न मानता रेडक्लिफ लकीर बनाने को काश ये अनर्थ न होता जिन्ना को अक्ल देता अल्हा गांधी नेहरू के सपने में आते राम देश मेरा आज सोने की चिड़िया होता पटेल खींचता लकीर । तिरंगा मेरा सिंध और ब्रह्मपुत्रा तक लहराता काश भारत मेरा आज भारतवर्ष कहलाता ..... l✍️ ©Dharmendra Gopatwar #भारतवर्ष #patriotic